Sunday 18 December 2016

अतुकान्त- कविता

'कविता'
जन्मती है भाव से
शिल्प के साँचे में
शब्दों में गुथकर
बिम्ब का श्रृंगार पा
निरखती है नव-वधू सी
जैसे सेती है धरती
स्वयं के भीतर
अन्न के दाने को
सींचता है किसान
पसीने से
धैर्य से
फिर धीरे धीरे
पीली धरती
हरिया जाती है
निहाल है किसान ;
प्रमुदित है कवि
आज जिया है उसने
अलसाई भोर की नींद को
सर्दी की धूप को
दुधमुँहे की किलकारी को
तरूणी की लाज को
माँ के दुलार को
पिता के स्वप्न को
प्रेयसी के समर्पण को
प्रेमी के विश्वास को
आज फूटे हैं अंकुर
आज जन्मी है 'कविता'

✍ डॉ पवन मिश्र

नवगीत- तुमको क्यूँ लगता है शूल

याद दिलाया उसने रूल,
तुमको क्यूँ लगता है शूल।

तुम भी तो थे खेवनहार,
तुमको भी दी थी पतवार।
मझधारों में नाव फँसा के,
सबको उल्टी राह दिखा के।।
छोड़ सफीना भागे तुम,
बोलो ये है किसकी भूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल,
याद दिलाया उसने रूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल।।

खिलने वाली कली न नोचो,
नव पीढ़ी का भी कुछ सोचो।
क्या उसको हम देकर जायें,
आओ मिलकर देश बनायें।।
अपनी बगिया का वो माली,
कोशिश करता महकें फूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल,
याद दिलाया उसने रूल।
तुमको क्यूँ लगता है शूल।।

      ✍डॉ पवन मिश्र

Saturday 17 December 2016

ग़ज़ल- उनकी आँखों में जब उभरता हूँ


उनकी आँखों में जब उभरता हूँ।
इस ज़माने को तब अखरता हूँ।।

आँधियाँ भी डिगा नहीं पाती।
जब कभी हद से मैं गुजरता हूँ।।

हाल दिल का बयां करूँ लेकिन।
उनकी रुसवाईयों से डरता हूँ।।

डूब जाये कहीं न फिर क़श्ती।
डरके साहिल पे ही ठहरता हूँ।।

जब भी आता हूँ तेरे कूचे में।
धड़कनें थाम के गुजरता हूँ।।

तेरी यादें कुरेद जाती हैं।
जख़्म जब भी मैं यार भरता हूँ।।

देखता हूँ जो चाँदनी रातें।
वो शबे वस्ल याद करता हूँ।।

मौत आई न जी रहा हूँ पवन।
रोज तिल तिल के यार मरता हूँ।।

                 ✍ डॉ पवन मिश्र

रुसवाईयाँ= बदनामियां
साहिल= किनारा
शबे वस्ल= मिलन की रात

Friday 16 December 2016

नवगीत- फिर से बच्चा बनना है

अँकवारी में भर ले माँ,
फिर से बच्चा बनना है।

बंग्ला बहुत बड़ा है मेरा,
ऊँची दीवारों का घेरा।
एसी हीटर की सुविधा है,
निदिया को फिर भी दुविधा है।।
पैसों की खन-खन है हरपल,
आज यहाँ तो वहाँ गये कल।
लेकिन मैया चैन नहीं है,
आज मुझे ये कहना है।
फिर से बच्चा बनना है।।
अँकवारी में भर ले माँ,
फिर से बच्चा बनना है।।

भाग दौड़ से ऊब चुका हूँ,
थक कर मैं तो टूट चुका हूँ।
बंग्ला अब छोटा लगता है,
पैसा भी खोटा लगता है।।
आँचल में तेरे सोना है,
परियों में फिर से खोना है।
अम्मा फेरो हाथ जरा फिर,
स्वप्नों में फिर बहना है।
फिर से बच्चा बनना है।।
अँकवारी में भर ले माँ,
फिर से बच्चा बनना है।

चाँद सितारे फिर दिखला दे,
आसमान की सैर करा दे।
राम कृष्ण की वही कहानी,
फिर गीता नानक की बानी।।
लिये कटोरी दूध भात की,
भागा-भागी निशा प्रात की।
तेरी अँगुली के सम्बल से,
फिर से मुझको चलना है।
फिर से बच्चा बनना है।।
अँकवारी में भर ले माँ,
फिर से बच्चा बनना है।

✍डॉ पवन मिश्र

Saturday 3 December 2016

ग़ज़ल- डूबा हुआ है


रंजो गम में सारा घर डूबा हुआ है।
मेरे दिन का हर पहर डूबा हुआ है।।

इस ज़माने की नहीं परवाह उसको।
इश्क़ में जो बेख़बर डूबा हुआ है।।

ख्वाहिशों सँग उड़ रहा है आसमां में।
इश्क़ में उनके मगर डूबा हुआ है।।

क्यों नहीं फिर से सजाता ख़्वाब अपने।
क्यों गमों में इस कदर डूबा हुआ है।।

मुस्कुराकर जीस्त को आसान कर ले।
दर्द में क्यूँ ये सफ़र डूबा हुआ है।।

खुद फ़ना होकर किया रौशन जहां को।
तीरगी में उसका घर डूबा हुआ है।।

जिंदगी के मायने हैं और लेकिन।
जरपरस्ती में बशर डूबा हुआ है।।

जुल्म पर भी ख़िड़कियाँ हैं बन्द सारी।
किस नशे में ये शहर डूबा हुआ है।।

हो गया हावी अँधेरा ज़िंदगी पर।
दिन में भी सूरज इधर डूबा हुआ है।।

लोग सड़कों पर हैं लेकिन मुक्तदिर वो।
नींद में ही बेख़बर डूबा हुआ है।।

तिश्नगी में जल रहा कैसे पवन जब।
आंसुओ से तर ब तर डूबा हुआ है*।।
             
                         ✍ डॉ पवन मिश्र
*जनाब "शिज्जु शकूर" जी का मिसरा

ज़ीस्त= जिंदगी                     तीरगी= अँधेरा
जरपरस्ती= धन लालसा         बशर= आदमी
मुक्तदिर= सत्तावान                तिश्नगी= प्यास

Monday 21 November 2016

ग़ज़ल- सूखे फूल


सूखे फूल किताबों में जब मिल जाते हैं ।
यादों से तब खुशबू के झोंके आते हैं।।

अपलक तकते रहते हैं जो राह तुम्हारी।
उन पलकों की कोरों को नम कर जाते हैं।।

हर आहट तेरा ही भान कराती हमको।
अक्सर परछाईं से जाकर टकराते हैं।।

अश्क़ छिपा कर हँसकर मिलते हैं वो हमसे।
छुप कर उन नजरों से हम भी रो आते हैं।।

सुर्ख लबों की किस्सा गोई हमसे पूछो।
मय तो है बदनाम होंठ ही बहकाते हैं।।

सब कुछ ले लो इन सूखे फूलों के बदले।
बेज़ार पवन को ये ही तो महकाते हैं।।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र
सुर्ख़= लाल
मय= शराब

Sunday 6 November 2016

ग़ज़ल- पवन खुली किताब है, किताब देखते रहो


ज़लील रहनुमाओं के नक़ाब देखते रहो।
दिखा रहे तुम्हे जो ये सराब देखते रहो।।

छुरी छिपा के दिल में ये ज़ुबाँ के खेल से ही बस।
चुकाते किस तरह से हैं हिसाब देखते रहो।।

लगेगा हाथ कुछ नहीं यहाँ सिवाय ख़ाक के।
है लुत्फ़ तुमको ख़्वाब में तो ख़्वाब देखते रहो*।।

सवाल हैं वही मगर सिखाती जिंदगी यही।
बदलते दौर में नए जवाब देखते रहो।।

हरिक तरह का है चलन जमाने के रिवाज़ में।
ये कैसी बेरुखी कि बस खराब देखते रहो।।

खिली सी धूप को लिये वो सुब्ह फिर से आयेगी।
कि तब तलक फ़लक पे माहताब देखते रहो।।

नहीं है पास कुछ मेरे वफ़ा के नाम के सिवा।
पवन खुली किताब है, किताब देखते रहो।।

                               ✍ डॉ पवन मिश्र

*एहतराम इस्लाम साहब का मिसरा

सराब= मृगतृष्णा
फ़लक= आसमान
माहताब= चंद्रमा

Sunday 2 October 2016

ग़ज़ल- जिंदगी नाम है चलने का तो चलते रहिये

हाथ पे हाथ धरे आप उबलते रहिये।
बातों से देश की तस्वीर बदलते रहिये।।

पांच सालों के लिए आप ने इनको है चुना।
तब तलक इनके इशारों पे उछलते रहिये।।

हार क्यूँ मान ली है देख के तूफानों को।
ये तो आएंगे ही बस आप सँभलते रहिये।।

फूल ही फूल खियाबाँ में खिलेंगे हमदम।
इश्क़ की आँच में बस यार पिघलते रहिये।।

चाँद भी तक रहा शिद्दत से तेरे कूचे को।
चाँदनी रात की ख़ातिर ही निकलते रहिये।।

बस यही बात पवन को नहीं रुकने देती।
जिंदगी नाम है चलने का तो चलते रहिये।।

                               ✍ डॉ पवन मिश्र
खियाबाँ= बाग़

Saturday 24 September 2016

ग़ज़ल- जो साँसे और मिल जाती

*1222  1222  1222 1222*

जो साँसे और मिल जाती तो सूरत और हो जाती।
समझ लेते क़ज़ा को फिर हकीकत और हो जाती।।

हुआ अच्छा कि मज़बूरी बयाँ कर दी हमें आकर।
नहीं तो इस जमाने से बगावत और हो जाती।।

नकाबों में छिपे थे तुम मगर चाहा बहुत हमने।
अगर खुल कर हमें मिलते मुहब्बत और हो जाती।।

सितमगर हाय बारिश ने बचाया ख़ाक बस्ती को।
न बुझती आग जो थोड़ी सियासत और हो जाती।।

जो खींचे कान गर होते समय पर बिगड़े बच्चों के।
बड़प्पन के नजरिये से हिदायत और हो जाती।।

मिला है साथ उनका तो न छूटे सात जन्मों तक।
पवन पर ऐ खुदा इतनी सी रहमत और हो जाती।

                                 ✍ डॉ पवन मिश्र
कज़ा= मृत्यु

ताटंक छन्द- बदलते शब्द


एक दौर जीवन का वो जब, 'क' से कबूतर होता था।
उड़ता था उन्मुक्त गगन में, नींद चैन की सोता था।।
'ख' से खाली जेब थी लेकिन, नित नव सपने बोता था।
'ग' के रँगे गुब्बारों खातिर, 'घ'ड़ी घड़ी मैं रोता था।१।

तितली ही प्यारी लगती थी, 'त'कली मन को भाती थी।
दिन भर होती भागा-दौड़ी, 'थ'कान नजर न आती थी।।
'द'ही जलेबी का लालच दे, अम्मा हमे बुलाती थी।
'ध'नुष-बाण, तलवार तराजू, मेले से वो लाती थी।२।

अद्भुत दिन थे बचपन के वो, याद हमेशा आते हैं।
वर्ण वही हैं माला के पर, शब्द बदलते जाते हैं।।
'क' मुंह फाड़े खड़ा सामने, काम काम चिल्लाता है।
'ख' कहता खुदगर्ज़ बनो और, लाखों 'ग'म दे जाता है।३।

लेकिन रिमझिम बूंदें अब भी, अंतर्मन छू जाती हैं।
यादों में कागज की नावें, हलचल खूब मचाती हैं।।
वही कबूतर, तकली, तितली, सपने में ललचाते हैं।
बचपन की गलियों में फिर से, हमको रोज बुलाते हैं।४।


                                     ✍डॉ पवन मिश्र

कुण्डलिया- हिंदी

हिन्दी तो अनमोल है, मीठी सुगढ़ सुजान।
देवतुल्य पूजन करो, मात-पिता सम मान।।
मात-पिता सम मान, करो इसकी सब सेवा।
मिले मधुर परिणाम, कि जैसे फल औ मेवा।।
कहे पवन ये बात, सुहागन की ये बिन्दी।
इतराता साहित्य, अगर भाषा हो हिन्दी।१।

दुर्दिन जो हैं दिख रहे, इनके कारण कौन।
सबकी मति है हर गई, सब ठाढ़े हैं मौन।।
सब ठाढ़े हैं मौन, बांध हाथों को अपने।
चमत्कार की आस, देखते दिन में सपने।।
सुनो पवन की बात, प्रीत ना होती उर बिन।
होती सच्ची चाह, न आते इसके दुर्दिन।२।

सरकारी अनुदान में, हिन्दी को बइठाय।
अँग्रेजी प्लानिंग करें, ग्रोथ कहाँ से आय।।
ग्रोथ कहाँ से आय, ट्रबल में हिंदी अपनी।
मदर टन्ग असहाय, यही बस माला जपनी।।
कहे पवन कविराय, करें ये बस मक्कारी।
हिंदी कोसे भाग्य, देख फाइल सरकारी।३।

जब सोंचे हिन्दी सभी, हिन्दी में हो काम।
हिन्दी में ही बात हो, भली करेंगे राम।।
भली करेंगे राम, बढ़ेगी हिंदी तबही।
हिंदी में हर लेख, करो ये निश्चय अबही।।
हिंदी कोमल जीव, विदेशी मिल सब नोंचे।
होगी ये बलवान, सभी मिलकर जब सोंचे।४।

                                  ✍डॉ पवन मिश्र

Monday 19 September 2016

ताटंक छन्द- उरी हमले के संदर्भ में

*दिनांक 18/09/16 को हुए उरी हमले के संदर्भ में*
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नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।
रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।
सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।
चींख रही हैं बहिने फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।

सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।
प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।
अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।
माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।

वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली मानेगी।
आर-पार का अंतिम निर्णय, कब ये दिल्ली ठानेगी।।
दिल काला है खूं है काला, कब कालों को जानेगी।
कुत्ते की दुम टेढ़ी रहती, सच ये कब पहचानेगी।३।

अबकी प्रश्न नहीं हैं उनसे, पूछ रहा हूं दिल्ली से।
कब तक शावक ही हारेंगे, कायर कुत्सित बिल्ली से।।
कैसे मोल चुकाओगे तुम, इन सत्रह बलिदानों का।
जंग लग रही तलवारों में, मुँह खोलो अब म्यानों का।४।

                                       ✍डॉ पवन मिश्र

Sunday 18 September 2016

तरही ग़ज़ल- सितारे रक़्स करते हैं


उन्हें देखें जो बेपर्दा सितारे रक़्स करते हैं।
नज़र जो उनकी पड़ जाए नज़ारे रक़्स करते हैं।।

तेरे पहलू में होने से शबे दैजूर भी रौशन।
बरसती चाँद से खुशियाँ सितारे रक़्स करते हैं।।

तुम्हे है इल्म मेरी जिंदगी कुछ भी नही तुम बिन।
इन्हीं वजहों से तो नख़रे तुम्हारे रक़्स करते हैं।।

कभी तो तुम ही आओगे शबे हिज़्रां मिटाने को ।
इसी उम्मीद से अरमां हमारे रक़्स करते हैं।।

जड़ों की कद्र तो केवल समझते हैं वही पत्ते।
शज़र की टहनियों के जो सहारे रक़्स करते हैं।।

उसी की जीत है यारों लड़े खामोश रहकर जो।
सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।।*

करूं मैं शुक्रिया कैसे तेरे अहसान हैं कितने।
पवन के शेर भी तेरे सहारे रक़्स करते हैं।।

                                ✍ डॉ पवन मिश्र

* जनाब आफ़ताब अकबराबादी की ग़ज़ल का मिसरा

रक़्स= नृत्य, नाच
शबे दैजूर= अमावस की रात
इल्म= जानकारी
शबे हिज़्रां= विरह की रात
शज़र= पेड़
सफ़ीने= जहाज, जलपोत

Sunday 11 September 2016

चौपई- खाट पर चर्चा

अबकी गांव लगी चौपाल,
मत पूछो तुम उसका हाल।
कोशिश थी कि बने भौकाल,
लेकिन जमकर हुआ बवाल।१।

ये बातों के बब्बर शेर,
हवामहल सब इनके ढ़ेर।
हरदम करते केवल बात,
बातों में बीते दिन रात।२।

पी के भरने आया जोश,
फुर्र हुआ उसका भी होश।
वोटों की लगवाई हाट,
खान्ग्रेस की लुट गई खाट।३।

भीड़ न देखे आव न ताव,
बस बूझे खटिया का भाव।
ऐसी कस कर रेलमपेल,
हुइगा पप्पू फिर से फेल।४।

पप्पू भागा मम्मी पास,
बोला ये सब है बकवास।
राजनीति है कड़वी नीम,
दिखला दे बस छोटा भीम।५।

               ✍डॉ पवन मिश्र

Wednesday 7 September 2016

ग़ज़ल- चाहत को मेरी यूँ न सनम आजमाइये


चाहत को मेरी यूँ न सनम आजमाइये।
तन्हा बहुत है जीस्त ये अब आ भी जाइये।।

भरता नहीं है वक्त मेरे दिल के घाव भी।
नासूर बन रहा है ये मरहम लगाइये।।

दीदार को तरस रहीं आँखों की क्या ख़ता।
चिलमन की ओट से न इन्हें यूँ सताइये।।

बेताब हैं महकने को कलियाँ बहार की।
काँटों से पाक उनके ये दामन बचाइये।।

मदहोश करती है बहुत आवाज ये तेरी।
इक बार तो मेरी भी ग़ज़ल गुनगुनाइये।।

कब तक रहेंगे आप पवन से खफ़ा खफ़ा।
अब रात संग बात गई मान जाइये।।

                          ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday 4 September 2016

ग़ज़ल- छुआ उसने तो चंदन हो गया है


छुआ उसने तो चंदन हो गया है।
ये जीवन एक मधुबन हो गया है।।

बताऊँ क्या तुम्हे जबसे मिला वो।
मेरे सीने की धड़कन हो गया है*।।

मुसीबत के पहाड़ों से उलझ कर।
बड़ा पथरीला बचपन हो गया है।।

पुकारे अब किसे सीता बिचारी।
लखन भी आज रावन हो गया है।।

हज़ारों चूहे खाकर आज बिल्ला।
सुना है पाक़ दामन हो गया है।।

बड़े जबसे हुए हैं घर के बच्चे।
बहुत सँकरा सा आँगन हो गया है।।

सुनो मत आजमाना इस 'पवन' को।
तपा कर खुद को कुंदन हो गया है।।

                      ✍ डॉ पवन मिश्र

* आदरणीय समर कबीर साहब का मिसरा

Friday 2 September 2016

ग़ज़ल- इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ


इश्क़ की राहों में हैं रुसवाईयाँ।
हैं खड़ी हर मोड़ पर तन्हाईयाँ।।

क्या करे तन्हा बशर फिर धूप में।
साथ उसके गर न हो परछाईयाँ।।

चाहता हूं डूबना आगोश में।
ऐ समंदर तू दिखा गहराईयाँ।।

दिल दिवाने का दुखा, किसको ख़बर ?
रात भर बजती रही शहनाईयाँ।।

तुम गये तो जिंदगी तारीक है।
हो गयी दुश्मन सी अब रानाईयाँ।।

दूर हो जाये जड़ों से ये 'पवन'।
ऐ खुदा इतनी न दे ऊँचाईयाँ।।

                 ✍ डॉ पवन मिश्र

बशर= आदमी
तारीक= अंधकारमय

Sunday 28 August 2016

मनहरण घनाक्षरी- बाढ़

जीवन आधार है जो, सृष्टि के जो मूल में है।
लूटने चला है देखो, धरा के बहार को।।
नभ से बरसता जो, बूँद बूँद अमिय सा।
उसकी ही अतिवृष्टि, सज्ज है संहार को।।
नगर डगर सब, जल में समा गए हैं।
जीवट भी देखो अब, तक रहा हार को।।
काल विकराल बन, रूप महाकाल धर।
लीलने चला है जल, जीवन की धार को।१।

खेत खलिहान सँग, नेत्र भी हैं जलमग्न।
रात बनी काली और, दिन भी हैं स्याह से।।
त्राहि त्राहि कर रहे, जीव जंतु मर रहे।
गुंजित धरा है बस, करुण कराह से।।
आहत हैं नर-नारी, जीवन पे जल भारी।
देखते विभीषिका हैं, कातर निगाह से।।
ईश तेरा ही प्रसाद, बन रहा श्राप अब।
प्रभु करो रक्षा इस, प्रलय प्रवाह से।२।

                         ✍डॉ पवन मिश्र

Sunday 21 August 2016

ग़ज़ल- आँख से हटता अगर परदा नहीं


आँख से हटता अगर परदा नहीं।
आईने में साफ़ कुछ दिखता नहीं।।

बेवफ़ा ही याद आता है इसे।
दिल मेरा मेरी सदा सुनता नहीं।।

आज भी तन्हा खड़ा हूँ मोड़ पर।
दूर तक वो रहनुमा दिखता नहीं।।

वक्त के हाथों अभी मज़बूर हूँ।
हौसला बेबस मगर मेरा नहीं।।

राहे मुश्किल आजमाएगी तुझे।
ऐ पवन सुन तू अभी घबरा नहीं।।

दफ़्न कर दो रंजिशें दिल की सभी।
इससे कुछ हासिल तुम्हें होगा नहीं।।

                          ✍ डॉ पवन मिश्र

सदा= आवाज



Monday 15 August 2016

ताटंक छन्द- आजादी


चिन्तन मनन करो नित सोचो, आजादी क्यूँ पाई है।
सन् सैतालिस तो उद्भव था, बाकी बहुत लड़ाई है।
लक्ष्य मात्र इतना ही था क्या, अंग्रेजों से आजादी।
मुख्य धार से जुड़ ना पाई, अब भी आधी आबादी।१।

नग्न देह पर वस्त्र नहीं है, पेट तरसता रोटी को।
साहस से बस मात दिये है, हिमपर्वत की चोटी को।।
दिन में चूल्हा जला अगर तो, भूखे सोते रातों में।
स्वप्न देखते नेताओं की, कोरी कोरी बातों में।२।

कुछ घर में किलकारी है तो, कहीं चीखते हैं बच्चे।
झूठों की जयकार मची है, सूली पर चढ़ते सच्चे।।
काँटों को शह देती सत्ता, कली मसल दी जाती है।
वंचित तो वंचित ही रहता, फिर कैसी आजादी है।३।

आज भूल बैठे हैं हम क्यूँ, भगत सिंह के नारों को।
बिस्मिल सुभाष शेखर के उन, हर हर के जयकारों को।।
भूल गये मेरठ काकोरी, चम्पारन की आंधी को।
छद्म गांधियों के चक्कर में, भूले असली गांधी को।४।

तुष्टिकरण की राजनीति में, पूज रहे गद्दारों को।
महिमामण्डित करते रहते, जेहादी हत्यारों को।।
कुछ तो मान रखो वीरों का, वीरों की आशाओं का।
बल्लभ भाई रोते होंगे, हाल देख सीमाओं का।५।

वीर शहीदों की आँखों का, सपना अभी अधूरा है।
माँ का आँचल छिन्न भिन्न है, मानचित्र नहि पूरा है।।
उस दिन ही सच्चे अर्थों में, आजादी कहलायेगी।
जब गिलगित से गारो तक भू, जन गण मंगल गायेगी।६।

                                   ✍डॉ पवन मिश्र

Wednesday 10 August 2016

हरिगीतिका छन्द- प्रेम


यह प्रेम अद्भुत भाव मानो,
पवन शीतल मन्द हो।
पिंगल रचित निर्दोष मनहर,
मान कोई छन्द हो।।
गीता स्वरूपी देववाणी,
वेद का यह सार है।
पावन पुनीता शिव दुलारी,
सुरसरी की धार है।१।

चातक पिपासा है तरसता,
स्वाति की बूँदे मिलें।
रिमझिम छुवन उन्मुक्त कर दे,
सीप में मोती खिलें।
आकुल चकोरा ढूँढता है,
चन्द्रमा को क्लान्त हो।
रजनीश आओ चाँदनी ले,
तन-तपन कुछ शान्त हो।२।

बेला मिलन की है कभी तो,
है विरह की रैन भी।
चितवन मनोहर हैं कहीं तो,
अश्रुपूरित नैन भी।।
बेकल हृदय संत्रास सहता,
पिय दरस की आस में।
रति भाव हिय में ले हिलोरें,
मीत हो जब पास में।३।

ईश्वर सदृश यह प्रेम होता,
सृष्टि का उद्भव यही।
है व्यर्थ जीवन प्रेम के बिन,
बात ये ही है सही।।
जो हिय बसाये प्रेम अपने,
प्रेम से ही जो खिले।
उस जीव का जीवन सफल है,
पूर्णता उसको मिले।४।

✍डॉ पवन मिश्र

Saturday 6 August 2016

ज़ुल्म की साजिश को कुचल दो


आवाज़ उठा ज़ुल्म की साजिश को कुचल दो।
नापाक इरादों की ये सरकार बदल दो।।

घोला है जहर जिसने फ़िज़ाओं में चमन के।
फ़न सारे सपोलों के चलो आज कुचल दो।।

मुर्दा न हुए हो तो भरो जोश लहू में।
*तूफान से टकराओ हवाओं को बदल दो*।।

कुछ भी न मिलेगा जो किनारों पे खड़े हैं।
बेख़ौफ़ समन्दर की हरिक मौज मसल दो।।

अरमान सजाये न सितारों के पवन ने।
बस प्यार में डूबे वो हसीं चार ही पल दो।।

                             ✍ डॉ पवन मिश्र

*जोश मलीहाबादी साहब का मिसरा

Sunday 24 July 2016

कुण्डलिया- आया सावन झूम के

आया सावन झूम के, पुरवाई के संग।
सोंधी ज्यों महकी धरा, महका हर इक अंग।।
महका हर इक अंग, लगे पेड़ो में झूले।
स्वागत हे ऋतुराज, पुष्प सरसों के फूले।।
कहे पवन ये मास, बहुत मनभावन आया।
तन मन की सुध लेन, सुनो ये सावन आया।१।

अब तक मानो थी धरा, बिन वस्त्रों की नार।
हरियाली साड़ी लिये, सावन आया द्वार।।
सावन आया द्वार, मिटाने सारी तृष्णा।
मधुर मिलन का रास, कि जैसे राधा कृष्णा।।
करें सभी आनन्द, रहे ये मौसम जब तक।
हर बगिया मुस्काय ,तरसती थी जो अब तक।२।

                                  ✍डॉ पवन मिश्र

Sunday 17 July 2016

सियासत छोड़ कर घाटी सँवारें


सियासत छोड़ कर घाटी सँवारें।
मेरे कश्मीर को ग़म से उबारें।।

छुपे किरदार जो दाढ़ी के पीछे।
तकाज़ा वक्त का उनको नकारें।।

फ़िज़ाओं में है बस बारूद फैला।
हुई काफ़ूर शबनम की फुहारें।।

मिटाये बाग़ जब खुद बाग़बाँ ही।
मदद की चाह में किसको पुकारें।।

लहू की फ़स्ल जब से बो रहे वो।
ख़िजाँ हावी हुई गुम हैं बहारें।।

भटकना छोड़ कर मोमिन मेरी सुन।
चलो केशर की क्यारी फिर सँवारें।।
                 
                     ✍ डॉ पवन मिश्र

ख़िजाँ= पतझड़
मोमिन= मुस्लिम युवक

चलों ऐसा करें रिश्ता सँवारें


चलो ऐसा करें रिश्ता सँवारें।
धुली सी चाँदनी में शब गुज़ारें।।

सफ़र की तयशुदा मंजिल वही है ।
मगर फिर भी चलो रस्ते बुहारें।।

मुक़द्दर में हमारे तिश्नगी है।
मिलेंगी कब हमें रिमझिम फुहारें।।

बनी परछाइयाँ भी अजनबी अब।
अँधेरी राह है किसको पुकारें।।

खड़ी कर ली थी तुमने दरमियां जो।
दरकती क्यों नहीं हैं वो दिवारें।।

पवन की कोशिशें जारी रहेंगी।
कि जब तक आ नहीं जाती बहारें।।

                    ✍ डॉ पवन मिश्र

Wednesday 13 July 2016

चौपाई- अद्भुत छवि मनमोहन जी की


अद्भुत छवि मनमोहन जी की,
करहुँ आरती सोहन जी की।
लाल अधर पर मुरली साजे,
कानन कुण्डल सहित विराजे।१।

पुष्प माल वक्षस्थल शोभे,
मोर मुकुट मस्तक पर लोभे।
मृगनैनन में काजल रेखा,
अप्रतिम ऐसा रूप न देखा।२।

पीत तिलक अति सुंदर लागे,
हर्षित गोप वृन्द बड़ भागे।
चक्र सुदर्शन कर में धारे,
मातु यशोदा रूप निहारे।३।

कनक समान देह अति मोहे,
मन्द हँसी मुखड़े पर सोहे।
हाथ जोड़ सब खड़े दुआरे
क्लेश हरो हे नन्द दुलारे।४।

               ✍डॉ पवन मिश्र


Saturday 9 July 2016

कुण्डलिया- भैय्या बक बक कम करो


भैय्या बक बक कम करो, मानो हमरी बात।
सोच समझ कर बोलिये, पड़ि जायेगी लात।।
पड़ि जायेगी लात, जीभ पर संयम धर लो।
बिन विचार नहि बोल, आज यह निश्चय कर लो।।
कहे पवन ये बात, करोगे दैय्या दैय्या।
लाख टके की बात, सोच के बोलो भैय्या।१।

कूपहिं के सब मेंढकी, करें बकैती लाख।
लप लप मारे अगन की , तीरे खाली राख।।
तीरे खाली राख, शेर बस बातों के ही।
दो कौड़ी औकात, असल में पिद्दी से ही।।
सुनो पवन की बात, दिखे बस चलनी सूपहिं।
उथले उथले लोग, दिखावें खुद को कूपहिं।२।

                                     ✍डॉ पवन मिश्र


Friday 8 July 2016

ग़ज़ल- बात करनी नहीं तो बुलाते हो क्यों


बात करनी नही तो बुलाते हो क्यों।
वक्त बेवक्त मुझको सताते हो क्यों।।

दिल की आवाज को अनसुना करके तुम।
अजनबी की तरह पेश आते हो क्यों।।

मेरा किरदार है कुछ नहीं तेरे बिन।
जानते हो तो फिर दूर जाते हो क्यों।।

कोई परदा नहीं दरमियां जब सनम।
अश्क़ आँखों के हमसे छुपाते हो क्यों।।

रंग औ नूर ही जब चमन ने दिया।
नोच कर गुल ख़ियाबां मिटाते हो क्यों।।

बस्तियाँ पूछती रहनुमाओं से अब।
वोट पाने को घर तुम जलाते हो क्यों।।

लो पवन आ गया रूबरू अब कहो।
बात कुछ भी नहीं तो बढ़ाते हो क्यों।।

                           ✍ डॉ पवन मिश्र

खियाबाँ= बाग़



Thursday 7 July 2016

महाभुजंगप्रयात छन्द- यही कामना है प्रिये


यही कामना है प्रिये आज मेरी,
जुदा हो सभी से हमारी कहानी।
नहीं साथ ये जिस्म है तो हुआ क्या,
सदा संग होगी तुम्हारी निशानी।
अँधेरा घनेरा कभी जो डराये,
करो याद वो रात जो थी सुहानी।
भले दूर जाओ यहाँ से कहीं भी,
कभी भूल जाना न बातें पुरानी।१।

तुम्हारी अदाएं हमे याद सारी,
निगाहें चुरा के बहाने बनाना।
कभी तल्ख़ बातें कभी प्रेम पींगें,
कभी रूठ जाना कभी मान जाना।
अविश्वास की बात होगी कभी ना,
भले लाख बाते बनाये जमाना।
भुलाया मुझे है तुम्हारे जिया ने,
खुदा भी कहे तो न माने दिवाना।२।

                    ✍डॉ पवन मिश्र

शिल्प- आठ यगण (१२२*८)

Sunday 3 July 2016

ग़ज़ल- इश्क रहमत है खुद की


इश्क रहमत है खुदा की जिसने समझाया मुझे।
पा लिया उसको अगर, फिर और क्या पाना मुझे।।

सूझता कुछ भी न था बस तीरगी ही तीरगी।
आ गया वो नूर लेकर मिल गया रस्ता मुझे।।

ख़्वाब आँखों को दिखा कर अश्क़ क्यूँ वो दे गया।
सोचता हूँ मैं ये अक्सर क्यूँ वो टकराया मुझे।।

इश्क की बातें बहुत करता था जो शामो शहर।
छोड़ कर इक मोड़ पर वो कर गया तन्हा मुझे।।

वक्त ने जब भर दिया उससे मिले हर जख़्म को।
बेवफा हमदम वही फिर याद है आया मुझे।।

                       ✍ डॉ पवन मिश्र

Thursday 30 June 2016

भुजंगप्रयात छन्द- भजूं मैं कन्हैया


भजूं मैं कन्हैया वही नाथ मेरा।
वही शाम मेरी वही है सवेरा।।
धरा है उसी की सितारे उसी के।
नदी धार में वो किनारे उसी के।१।

वही राधिका का वही गोपियों का।
वही प्रेमियों का वही योगियों का।।
सुनो द्वारिकाधीश तेरा सुदामा।
पुकारे तुम्हें, हे सुनो नाथ श्यामा।२।

                       ✍डॉ पवन मिश्र

शिल्प- चार यगण (१२२*४)

Wednesday 22 June 2016

ग़ज़ल- मुश्तगिल थे इश्क में जो


मुश्तगिल थे इश्क में जो मुफ़्तकिर वो हो गए।
जीस्त का हर चैन खो कर मुंतशिर वो हो गए।।

बाप ने एड़ी घिसी औलाद की ख़ातिर मगर।
चार पैसे क्या कमाये? मुंजजिर वो हो गए।।

ज़िम्मेदारी जिनपे थी जुम्हूर के आवाज़ की।
दाम के चक्कर में देखो मुश्तहिर वो हो गए।।

चापलूसी खुदफ़रोशी ही चलन जिनका यहाँ।
आज बैठे तख़्त पे हैं, मुक़्तदिर वो हो गए।।

जूतियों से रौंदते थे आम को जो ख़ास बन।
साल जो आया चुनावी मुन्कसिर वो हो गए।।

पाकतीनत, पाकनीयत, पाकबीं जो थे पवन।
वक्त की करवट में गोया मुस्ततिर वो हो गए।।

                                 ✍ डॉ पवन मिश्र

मुश्तगिल= लग्न, तल्लीन
मुफ़्तकिर= दरिद्र, कंगाल
जीस्त= जिंदगी
मुंतशिर=अस्त व्यस्त, परेशान
मुंज़जिर=अलग रहने वाला
जुम्हूर= अवाम, जनता
मुश्तहिर= विज्ञापक
खुदफ़रोशी= धन/पद के लोभ में खुद को बेचना, गद्दारी करना
मुक़्तदिर= सत्तावान
मुन्कसिर= नम्र
पाकतीनत= स्वच्छ प्रकृति वाला
पाकनीयत= स्वच्छ मन वाला
पाकबीं= जो बुरा न देखे, समदर्शी
मुस्ततिर= गुप्त, गायब

Tuesday 21 June 2016

गज़ल- तेरा आना, मुस्कुराना

तेरा आना, मुस्कुराना।
याद है हर इक फ़साना।।

सामने आकर दुज़ानू।
दिल की सब बातें बताना।।

याद मुझको गेसुओं में।
उँगलियां तेरा फिराना।।

आज तक फिर भी न समझा।
आके तेरा लौट जाना।।

सोचना फ़ुर्सत मिले तो।
क्या मिला चुनकर ज़माना।।

फूल से बेज़ार होकर।
क्यों चुना काँटे सजाना।।

बस पवन की आरज़ू ये।
लौट आये वो ज़माना।।

        ✍ डॉ पवन मिश्र

दुज़ानू= घुटने के बल बैठने की मुद्रा

Sunday 19 June 2016

ग़ज़ल- हमारा दिल


बला की उन अदाओं से मचलता है हमारा दिल।
रहे काबू में फिर कैसे बहकता है हमारा दिल।।

न ख्वाहिश है गुलों की औ न चाहत है खियाबाँ की।
तुम्हारे प्यार से हर पल महकता है हमारा दिल।।

अकेले में जो आती हैं कहाँ की ये सदायें हैं।
तुम्हारी याद है या फिर धड़कता है हमारा दिल।।

तेरे जानू पे सर रख कर लटों से खेलना शब भर।
सुखन की ऐसी रातों को तरसता है हमारा दिल।।

बहुत मजबूर हैं महफ़िल में मुस्काना जरूरी है।
अकेले में तो अक्सर ही सिसकता है हमारा दिल।।

खिलौनों की जगह हाथों में छाले आ गए जिनके।
वो बच्चे देख कर यारों तड़पता है हमारा दिल।।

                                 ✍ डॉ पवन मिश्र

खियाबाँ= बाग़
जानू= गोद

Friday 17 June 2016

दोहे- हिन्द और हिन्दू


सरस मृदु सरिता जल में, किसने घोला खार।
शीतलता अब तज रही, गंगा जमुना धार।१।

तुष्टिकरण की चाशनी, मिलकर रहे पकाय।
सत्तालोलुप सोच से, देश गर्त में जाय।२।

मोमिन पट्टी बाँध के, करने चला ज़िहाद।
भूला सारी आयतें, कठमुल्ला बस याद।३।

शीलवान हिन्दू बना, झेला हर आघात।
काश्मीर से कैराना, हुए घात पर घात।४।

हिन्दू के इस मौन को, कायरता नहि मान।
रौद्र रूप जो धर लिया, होगा प्रलय समान।५।

हिन्द ये मेरा देश है, बूझो इसका अर्थ।
हिन्दी हिन्दू मूल है, बाकी बातें व्यर्थ।६।

                        ✍ डॉ पवन मिश्र

Monday 13 June 2016

कुण्डलिया- जल ही जीवन है


आया बालक भागता, लगी तपन की मार।
पहुँचा नल के पास जब, मिली नहीं जलधार।।
मिली नहीं जलधार, यत्न सारे कर डाले।
कुछ बूँदे को पाय, कहाँ से प्यास बुझा ले।।
सुनो पवन की बात, नीर बिन चले न काया।
सूखे जल के स्रोत, समय ये कैसा आया।१।

तपती जाती ये धरा, बदल रहा भूगोल।
पानी की हर बूँद का, अब तुम समझो मोल।।
अब तुम समझो मोल, सूखती जाये नदिया।
बिन पानी सब क्लान्त, न पुष्पित कोई बगिया।।
कहे पवन ये बात, धरा जो रो रो कहती।
जल संरक्षण लक्ष्य, बचा लो धरती तपती।२।

                        ✍ डॉ पवन मिश्र

Saturday 11 June 2016

ताटंक छन्द- राजनीति


राजनीति की गन्दी गलियां, तुमको आज दिखाता हूँ।
स्वार्थ वशी कुछ गद्दारों की, करतूतें बतलाता हूँ।।
जनसेवा वो भूल गए हैं, दिल ही उनका काला है।
राजनीति के पुण्य पंथ को, अब दूषित कर डाला है।१।

जाति धर्म की खाद मिला कर, ये जो फसलें बोते हैं।
उनके गन्दे फल का बोझा, नन्हें पौधे ढोते हैं।।
तुष्टिकरण ही मूल मन्त्र है, राजनीति के पण्डों का।
जब चाहे ये सौदा करते, भारत के भू खण्डों का।२।

राजनीति में उथली बातें, जो जितनी कर लेता है।
भारत का वह भाग्य विधाता, वो ही अव्वल नेता है।।
आज बना वो खुद मुखिया अरु, बेटा उसका भावी है।
देश प्रेम तो कोरी बातें, पुत्र मोह बस हावी है।३।

सत्ता के गलियारों में तो, शब्द गढ़े नित जाते हैं।
अक्सर झूठे नारों के ही, भोग लगाए जाते हैं।।
नारों में ही हटी गरीबी, वतन तरक्की करता है।
किसको चिंता है गरीब की, जो तिल-तिल कर मरता है।४।

बिलियन ट्रिलियन अर्थ व्यवस्था, लेकिन होरी भूखा है।
नेताओं के ग्लास भरे हैं, लेकिन पनघट सूखा है।।
लोकतंत्र की नैया उसके, नाविक ही उलझाये हैं।
सारे सत्तालोलुप नेता, अमरबेल बन छाये हैं।५।

लेकिन इक दिन राजनीति में, इक अवतारी आयेगा।
गन्दे शूकर अरु कीटों से, वो ही मुक्ति दिलायेगा।
उस दिन ये दलदल भी अपनी, मुग्धा पर इतरायेगा।
इस कीचड़ में जिस दिन यारों, मात्र कमल रह जायेगा।६।

                                                ✍ डॉ पवन मिश्र

Thursday 9 June 2016

भुजंगप्रयात छन्द- जपो नाम कान्हा


जपो नाम कान्हा वही है सहारा।
वही तारता है वही है किनारा।।
करे धर्म रक्षा वही मोक्षदाता।
सुनो विश्व का है वही तो विधाता।१।

उसी के सहारे धरा बोझ ढोती।
उसी की कृपा दृष्टि सर्वत्र होती।।
हमारी कन्हैया यही प्रार्थना है।
न कोई दुखी हो यही याचना है।२।

             ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday 5 June 2016

ताटंक छन्द- थर्रायी धरती फिर देखो


(२ जून २०१६ को जवाहर बाग़, मथुरा की हृदयविदारक घटना के सन्दर्भ में)

थर्रायी धरती फिर देखो, कुछ कुत्सित मंसूबों से।
स्वार्थ वशी हो कुछ अन्यायी, फिर बोले बंदूकों से।।
माँ का आँचल लाल हुआ फिर, रक्त बहा है वीरों का।
मुरली की तानों से हटकर, खेल हुआ शमशीरों का।१।

पूछ रही मानवता तुमसे, क्या तुम मनु के जाये हो।
ऐसा क्या दुष्कर्म किया जो, भारत भू पर आये हो।।
सत्याग्रह का चोला ओढ़े, तुम किस मद में खोये हो।
मथुरा की पावन धरती पर, क्यों अंगारे बोये हो।२।

क्रांति दूत खुद को हो कहते, तुमको शर्म नही आई।
कुछ एकड़ की भूमि देखकर, बन बैठे तुम सौदाई।।
दो वर्षों तक सांठ-गांठ से, तूने मथुरा को लूटा।
आंदोलन का पहन मुखौटा, स्वांग रचाया था झूठा।३।

तूने थोड़ी शह क्या पाई, सत्ता के गलियारों से।
सूर्य बुझाने निकल पड़े तुम, हाथ मिला अँधियारों से।।
राम नाम की मर्यादा का, कुछ तो मान रखा होता।
जिनकी जड़ से अलग हुए हो, उनका भान रखा होता।४।

तेरी ये काली करतूतें, इक दिन मोल चुकायेंगी।
आख़िर बकरों की अम्मायें, कब तक ख़ैर मनायेंगी।।
सुन लो ज्यादा दिन तक अब तुम, छुपकर ना रह पाओगे।
कान्हा की गलियों में ही तुम, जल्दी मारे जाओगे।५।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र

ग़ज़ल- दो चार पल में सारा नज़ारा बदल गया

221 2121 1221 212

दो चार पल में सारा नज़ारा बदल गया।
वो मेरे क्या हुए ये ज़माना बदल गया।।

सोचा कि दिल के राज़ बता दे उन्हें सभी।
आये जो रूबरू तो इरादा बदल गया।।

पाँवों पड़ी जो बेड़ियाँ रस्मो रिवाज़ की।
मेरे तुम्हारे प्यार का रिश्ता बदल गया।।

हासिल भले हुआ न हो कुछ तुझको ऐ सनम।
पर मेरी जिंदगी का सलीका बदल गया।।

वादे इरादे तोड़ के जाने गया किधर।
क्या हो गया जो यार वो इतना बदल गया।।

गढ़ता है रोज आयतें अपने हिसाब से।
सत्ता की तिश्नगी में ख़लीफ़ा बदल गया।।

खुद को बदलते जो यहाँ कपड़ों की ही तरह ।
देते हैं दोष वक्त ये कितना बदल गया।।

हर्फ़े निहाँ में अक़्स तेरा आ गया पवन।
यारों मेरी ग़ज़ल का तो लहज़ा बदल गया।।


                          ✍ डॉ पवन मिश्र
आयतें= क़ुरान के वाक्य
तिश्नगी= प्यास
ख़लीफ़ा= प्रतिनिधि
हर्फ़े निहाँ= छुपे हुए शब्द

Saturday 4 June 2016

मनहरण घनाक्षरी- भारती के मस्तक पे


भारती के मस्तक पे, शोभित मुकुट सा है।
भू के उस स्वर्ग हेतु, शत्रु बेकरार है।।
जा के समझाओ उसे, बात से या लात से कि।
उसकी सारी कोशिशें, तो अब बेकार है।।
ढीढ बन पीठ पर, बार बार वार करे।
शूकरों की फ़ौज का जो, बना सरदार है।।
खुद के हालात किये, बिना लाठी लंगड़े सी।
अपनी दशा का तो वो, खुद जिम्मेदार है।१।

बातें तो वो बड़ी बड़ी, रटता है घड़ी घड़ी।
रोटियों के टुकड़े को, खुद जो लाचार है।।
मांग मांग भरता जो, पेट अमरीका से है।
काश्मीर विजय का वो, रखता विचार है।।
भारतीय शावकों का, सामना करेगा कैसे।
रक्त नहीं नब्ज़ में तो, खौलता अंगार है।।
दुस्साहसी गीदड़ों की, टोलियाँ समक्ष खड़ी।
जिनकी शिराओं में तो, पानी की बहार है।२।

याद है इकहत्तर या भूले कटे हाथ को।
फिर वैसा लक्ष्य तेरे, शीश का लगाएंगे।।
सारे पुत्र भारती के, देख रहे स्वप्न यही।
कब इस्लामाबाद में, ध्वजा फहराएंगे।।
देखो ज्वार जोश के ये, कब तक मौन रहे।
कभी तो ये घटा जैसे, घोर गहराएंगे।।
भड़केगी अग्नि जब, हर गांव कूचे से तो।
देखे दिल्ली वाले इसे, कैसे रोक पाएंगे।३।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र
          

Thursday 2 June 2016

भुजंगप्रयात छन्द- दिलों में सदा

दिलों में सदा प्रेम ही हो हमारे।
डिगे ना कभी पाँव देखो तुम्हारे।।
भले सामने हो घना सा अँधेरा।
निराशा न थामो मिलेगा सवेरा।१।

हमेशा चलो सत्य की राह पे ही।।
जलाओ दिए नेह के नेह से ही।।
चलो आज सौगन्ध लेके कहेंगे।
सदा दूसरों की भलाई करेंगे।२।

             ✍डॉ पवन मिश्र

शिल्प- यगण की चार आवृत्ति (१२२*४)

Sunday 29 May 2016

मुक़्तदिर वो थे बने जिन के लिये


मुक़्तदिर वो थे बने जिन के लिये।
आज कहते कुछ नहीं इन के लिये।।

दे गए वो अश्क़ खुशियों की जगह।
आँख थी ये मुंतज़िर जिन के लिये।।

जानते थे जी नहीं पाओगे तुम।
लौट आये एक लेकिन के लिये।।

इस दफ़ा हमने सताया रूठ कर।
उनसे बदले हमने गिन गिन के लिये।।

छोड़ कर तक़दीर का दामन ज़रा।
हौसला कर गैरमुम्किन के लिये।।

आँधियों का काम था वो कर गयीं।
जूझना है फिर मुझे तिनके लिये।।

खौफ़ आँखों में कयामत का नहीं।
मुन्कसिर हाज़िर है उस दिन के लिये।।

मुतमइन खुद ही नहीं जब ऐ पवन।
मुंतशिर फिर क्यों रहे इन के लिये।।

                  ✍ डॉ पवन मिश्र


मुक़्तदिर= सत्तावान
मुंतजिर= प्रतीक्षारत
गैरमुम्किन= असम्भव
मुन्कसिर= ख़ाकसार
मुतमइन= इत्मीनान/सन्तुष्ट होना
मुंतशिर= परेशान

Thursday 19 May 2016

ग़ज़ल- मुल्क़ के वास्ते गर कहानी नहीं


मुल्क़ के वास्ते गर कहानी नहीं।
कुछ भी कह लो मगर वो जवानी नहीं।।

वक्त है अब भी सँभलो मेरे दोस्तों।
ये जवानी के दिन ग़ैरफ़ानी नहीं।।

नाकसी रहनुमाओं की क्या हम कहें।
लगता है आँख में इनके पानी नहीं।।

नाम उसका भले हो किताबों में गुम।
मीरा जैसी कोई तो दीवानी नहीं।।

जाते जाते बता दे ऐ हमदम मेरे।
लाज़मी क्या कोई भी निशानी नहीं।।

उनके बिन चाँद भी लगता फ़ीका हमें।
रातें लगती हमें अब सुहानी नहीं।।

उन घरों की दीवारें दरक जाती हैं।
नीव में जिनके ईंटे पुरानी नहीं।।

                   ✍डॉ पवन मिश्र

नाकसी= नीचता, अधमता
ग़ैरफ़ानी= शाश्वत


Wednesday 18 May 2016

चौपाई- दधि सपरेटा


आज सुनायें एक कहानी।
बड़ी घमण्डी थी इक रानी।।

उस रानी का ऐसा बेटा।
जैसे मानो दधि सपरेटा।।

हरदम रटता माई माई।
उस पप्पू को अकल न आई।।

उसका इक मौसेरा भाई।
जिसको रानी सोन्या लाई।।

दिन भर ढूंढे नये बहाने।
लगे रायता वो फ़ैलाने।।

मोदी ही है नाव खिवैया।
अच्छे दिन आयेंगे भैया।।

        ✍ डॉ पवन मिश्र

Tuesday 10 May 2016

नवगीत- जीवन है आपाधापी है


कुछ रीत गया, कुछ बाकी है।
जीवन है आपाधापी है।।

कुछ अति कठोर, कुछ भंगुर है।
कुछ क्षणिक मगर कुछ शाश्वत है।।
खुशियाँ है घोर उदासी है।
जीवन है आपाधापी है।।

कुछ स्मृति में, कुछ विस्मृत है।
कुछ पाया कुछ से दूरी है।।
कुछ सम्मुख कुछ आभासी है।
जीवन है आपाधापी है।।

मृगतृष्णा है, जल भी है।
कुछ कल बीता कुछ कल भी है।।
सुख-दुख की हिस्सेदारी है।
जीवन है आपाधापी है।।

  ✍डॉ पवन मिश्र

Monday 9 May 2016

वागीश्वरी सवैया- अँधेरा छटे औ दिखे राह कोई


प्रभो प्रार्थना आज स्वीकार लो ये।
तुम्हारे सिवा और जायें कहाँ।।

अँधेरा छँटे औ दिखे राह कोई।
करो आज ऐसा उजाला यहाँ।।

दुखों की कटे रात आये सवेरा।
यही चाहता देख सारा जहां।।

छुपे हो कहाँ नाथ ये तो बता दो।
तुम्हे ढूंढता मैं यहाँ से वहाँ।।

       ✍डॉ पवन मिश्र

शिल्प- सात यगण + लघु गुरु (१२२×७)+(१२)



Sunday 8 May 2016

नवगीत- माँ पर कुछ लिखना है


इक कठिन परीक्षा
आन पड़ी
लेखन की कैसी
विकट घड़ी
आज कहा जब
आकर उसने
माँ पर कुछ लिखना है

हे मातु शारदा
कृपा करो
शब्दों में
मन के भाव गढ़ो
प्रेम तपस्या त्याग
में गुँथकर
रचना को दिखना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

हे लम्बोदर
हे शिव प्यारे
प्रारम्भ करो
आया द्वारे
है आह्वाहन
लेकर आओ
शब्दकोश जितना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

भाव असीमित
अंतर्मन में
माँ ही मन में
माँ जीवन में
शब्द कहाँ से
मैं ले आऊँ
ज्ञान नहीं इतना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

शब्दों मे
आकाश बाँध लूँ
जलधि तरंगे
कहो साध लूँ
लेकिन जब
लिखना है माँ पर
पवन शून्य कितना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

✍डॉ पवन मिश्र

Saturday 30 April 2016

ग़ज़ल- हमारी तरक्की से जलने लगा है


हमारी तरक्की से जलने लगा है।
पड़ोसी मेरा घात करने लगा है।।

रँगे हाथ उसको पकड़ जब लिया तो।
कहानी नई फिर वो गढ़ने लगा है।।

मेरे हौसलों से तो टकरा के यारों।
वो पत्थर भी देखो दरकने लगा है।।

जऱा सी चमक में कलम बेच के वो।
सियासत न जाने क्यूँ करने लगा है।।

बिठाया था दिल में जिसे हसरतों से।
नज़र से मेरी वो उतरने लगा है।।

मेरे मुल्क़ की नेकनीयत भुला के।
दिलों में जहर अब वो भरने लगा है।।

खियाबाँ को किसकी नज़र लग गयी अब।
कि गुल बाग़बाँ से ही डरने लगा है।।

                       ✍डॉ पवन मिश्र

खियाबाँ= बाग़        बाग़बाँ= माली

Thursday 28 April 2016

प्रमाणिका छन्द- जगो सपूत भूमि के


जगो सपूत भूमि के,
उठो कि शस्त्र चूमि के।

पुकारती तुझे धरा,
कि घाव है अभी हरा।

प्रहार वक्ष पे सहो,
अजेय भाव में बहो।

करो विनाश पाप का,
कि राष्ट्र धर्म आपका।

 ✍डॉ पवन मिश्र



Tuesday 26 April 2016

मुक्तक


कर लो कोशिश मगर याद मैं आऊंगा,
प्रीत की शबनमी बूँदें धर जाऊंगा।
चाहे कर लेना तुम लाख इन्कार पर,
आँख से बह के लब तक पहुँच जाऊँगा।।

इस जहाँ से भी आगे नगर एक है,
मिलना ही है हमें जब डगर एक है।
इश्क की राह में उस जगह आ गए,
ज़िस्म हैं दो सही जाँ मगर एक है।।

प्रीत के रीत की वाहिका तुम बनो,
पुन्य ये यज्ञ है साधिका तुम बनो।
डोर विश्वास की न ये टूटे कभी,
कृष्ण बन जाऊँगा राधिका तुम बनो।।


             ✍डॉ पवन मिश्र

Sunday 24 April 2016

ग़ज़ल- उन्हें देखकर दिल मचलने लगा है


उन्हें देखकर दिल मचलने लगा है।
उन्हीं के तसब्बुर में रहने लगा है।।

नज़र ढूँढती हर बशर में उन्हीं को।
फ़िज़ाओं में वो ही महकने लगा है।।

बहुत संगदिल मेरा दिलबर है लेकिन।
तपिश से मेरी वो पिघलने लगा है।।

नहीं चोर था उनके दिल में अगर तो।
दबे पाँव क्यूँ वो गुजरने लगा है।।

दुआऐं किसी की असर कर रही हैं।
ये देखो मेरा जख़्म भरने लगा है।।

मिला है पवन को तेरा साथ जब से।
ज़माना न जाने क्यूँ जलने लगा है।।

                    -डॉ पवन मिश्र
बशर= आदमी

Saturday 23 April 2016

ग़ज़ल- जिसे तुझसे मुहब्बत हो वो दीवाना किधर जाए


जिसे तुझसे मुहब्बत हो वो दीवाना किधर जाए।
खुदा तू ही दिखा रस्ता बता दे किस डगर जाए।।

बहुत बेज़ार कर डाला हमे तेरे तग़ाफ़ुल ने।
कहीं ऐसा न हो तेरा दिवाना अब बिखर जाए।।

तुझे ही जब नहीं फ़ुरसत मेरे गम को मिटाने की।
बुझाने तिश्नगी अपनी ये दीवाना किधर जाए।।

मेरी दुनिया मुकम्मल है उसी किरदार के कारण।
वही दिखता है अब हमको जहां तक भी नज़र जाए।।

बड़ी मुश्किल से आये आज वो मेरे बुलाने पर।
न आये कोई अब आफत कि दिन यूँ ही गुज़र जाए।।

वही रस्ता वही मंजिल वही हैं रहनुमा मेरे।
पवन की बस यही चाहत जिधर वो हों उधर जाए।।

                                       ✍डॉ पवन मिश्र

तग़ाफ़ुल= उपेक्षा          तिश्नगी= प्यास

Thursday 21 April 2016

ग़ज़ल- मेरी यादों में ख्वाबों में


मेरी यादों में ख्वाबों में हर बात में।
छा गए इस तरह तुम ख़यालात में।।

चाँद भी है यहां और तारे भी हैं।
एक तू ही नहीं साथ इस रात में।।

कुछ भी हासिल न होगा सिवा ख़ाक के।
क्यों बढ़ाते हो बातें यूँ तुम बात में।।

कारवां में सियासत के शामिल जो हैं।
मिल ही जायेगा कुछ उनको खैरात में।।

फ़िक्र करना नहीं लोगों की बात का।
ऐसे मेढ़क निकलते हैं बरसात में।।

जश्न में भूल जाना हमें चाहे तुम।
याद करना मगर हमको आफ़ात में।।
     
                             -डॉ पवन मिश्र

Sunday 3 April 2016

ग़ज़ल- क्या कहें किससे कहें


क्या कहें किससे कहें सुनता नहीं कोई।
ज़ख्म पे मरहम मेरे धरता नहीं कोई।।

भीड़ की नजरों का मैं हूँ मुंतज़िर कब से।
मुफ़्तकिर ऐसा हुआ रुकता नहीं कोई।।

आरज़ू किससे कहें तारीक जीस्त की।
रोशनी के ख़्वाब अब बुनता नहीं कोई।।

ख्वाहिशें ऐसी की सब गुलज़ार हो जाये।
बाग़ से काँटे मगर चुनता नहीं कोई।।

अर्श पे जो था परिंदा फ़र्श पर अब है।
वक्त की चाबुक से तो बचता नहीं कोई।।

वोट की खातिर करे है रहनुमाई वो।
मुल्क की बातें यहाँ करता नहीं कोई।।

बुलहवस अब हो गया इंसान भी गोया।
बेवज़ह सजदे में अब झुकता नहीं कोई।।

                                 -डॉ पवन मिश्र

मुफ़्तकिर= दरिद्र, कंगाल       मुंतज़िर= प्रतीक्षारत
तारीक= अंधकारमय            ज़ीस्त= जिंदगी
बुलहवस= लालची                गोया= मानो

Saturday 26 March 2016

ग़ज़ल- कुछ बड़े क्या हो गए


कुछ बड़े क्या हो गए प्रतिकार वो करने लगे।
रोटियाँ देकर के अब उपकार वो करने लगे।।

धीरे धीरे ही सही स्वीकार वो करने लगे।
दिल हमारा था मगर अधिकार वो करने लगे।।

आप से ही जिंदगी की सारी खुशियां है जुड़ीं।
जो कहा है आपने सरकार वो करने लगे।।

थे गरीबों के मसीहा सब चुनावी दौर में।
मिल गया जो तख़्त तो इन्कार वो करने लगे।।

भीड़ का विज्ञान भी अब अर्थ पर ही टिक गया।
आँख पे पट्टी धरे जयकार वो करने लगे।।

पद प्रतिष्ठा के लिये अब जी हुजूरी आम है।
क्या कहें जब मूर्ख का सत्कार वो करने लगे।।

जो अभावों में पले हाथों में था सामर्थ्य पर।
स्वप्न जीवन के सभी साकार वो करने लगे।।

                                        - डॉ पवन मिश्र

Tuesday 22 March 2016

कुण्डलिया- होली


इस होली में आपको, मिले प्रेम का रंग।
जीवन के हर रंग में, खुशियों का हो संग।।
खुशियों का हो संग, न कोई सपना टूटे।
हिय में होवे प्रेम, न कोई अपना रूठे।।
कहे पवन दिन रात, दवा है मीठी बोली।
कर भेदों का दाह, रहो मिलके इस होली।।

होली में हर रंग से, रँग दूँ तेरे गात।
तू राधा सी गोरिया, मैं कान्हा की जात।।
मैं कान्हा की जात, प्रेममय करके हर रँग।
आज गुलाबी लाल, करूँगा तेरा अँग अँग।।
सुनो पवन की बात, नहीं ये हँसी ठिठोली।
तन मन दूँ सब रंग, मनाऊँ ऐसी होली।।

                              -डॉ पवन मिश्र

            

Sunday 20 March 2016

ग़ज़ल- आज आएंगे हमरे दुआरे पिया


आज आएंगे हमरे दुआरे पिया।
रंग बरसेंगे चाहत के सारे पिया।।

हो गयी हूँ गुलाबी यही सोच के।
रंग का काम क्या अब बता रे पिया।।

याद में आँसुओं ने जलाया बहुत।
प्यास तन मन की आके बुझा रे पिया।।

इस विरह की अगन में तो तुम भी जले।
सूख के हो गए हो छुआरे पिया।।

जा रहा था बिना रंग फागुन मेरा।
रंग लेकर हैं आये हमारे पिया।।

होश चोली चुनर का किसे अब यहाँ।
डूबना चाहती हूँ डुबा रे पिया।।

बाद होरी के भी जो न छूटे कभी।
रंग ऐसा रँगो अब पियारे पिया।।

रंग में अपने ही रँग दिया है मुझे।
लाखों में एक मेरे दुलारे पिया।।

                    -डॉ पवन मिश्र





Friday 11 March 2016

ग़ज़ल- जाने क्या बात हुई


जाने क्या बात हुई जो न पुकारा उसने।
क्या खता थी कि किया मुझसे किनारा उसने।।

मेरे साये से भी कर ली है बला की दूरी।
वक्त इस कदर अकेले ही गुजारा उसने।।

ये सवालात मेरे हैं कि तग़ाफ़ुल उसका।
क्या हुआ जो कभी देखा न दुबारा उसने।।

चाहता था कि मिले साथ हमेशा उसका।
पर मेरा साथ कई बार नकारा उसने।।

ज़िन्दगी उनके बिना है मेरी बेताब बहुत।
काश जाने का किया होता इशारा उसने।।

लोग अक्सर चले आते हैं दिलासा लेकर।
जब से छीना मेरे जीने का सहारा उसने।।

ये ज़माने का सितम था या कि मर्ज़ी उसकी।
जो यूँ मझधार में क़श्ती से उतारा उसने।।

बाद उसके न दिखी हमको बहारें कोई।
मेरी आँखों को दिया मस्ख़ नज़ारा उसने।।

                              -डॉ पवन मिश्र
मस्ख़= विकृत
तग़ाफ़ुल= उपेक्षा

Tuesday 8 March 2016

ग़ज़ल- बड़ी बेरंग महफ़िल है


बड़ी बेरंग महफ़िल है जरा सी रोशनी भर दो।
तरसती शाम है आकर इसे तुम खुशनुमा कर दो।।

लगा कर आग यूँ दिल में चले जाते हो तड़पा के।
सुलगते ज़िस्म पर थोड़ी फुहारें हुस्न की कर दो।।

बहुत बेचैन रहता हूँ न आती नींद रातों में।
ज़रा मौजूदगी की तुम यहाँ तासीर ही धर दो।।

डसे तन्हाइयां हमको है आलम बेक़रारी का।
बहुत गहरा अँधेरा है तेरे दीदार का फ़र दो।।

नहीं सुनता दीवाना ये तेरे ही ख्वाब में रहता।
हसीं ख्वाबों के जैसी ही मेरी अब जीस्त भी कर दो।।

समन्दर के थपेड़ो सा है मंजर दिल के अंदर का।
ये क़श्ती डूबने को है ज़रा सा आसरा भर दो।।

तुझे भी तो सताती है शबे तन्हाईयां अक्सर।
सुकूँ मिल जायेगा तुमको मेरे ज़ानू पे सर धर दो।।

तेरी आँखों सा गहरा हो तेरी धड़कन सी हो मौजे।
लिए क़श्ती खड़ा हूँ मैं मुझे ऐसा समन्दर दो।।

इसी उम्मीद से आया तेरे दर पे मेरे मौला।
पवन की आरज़ू बस ये कि उनकी दीद का ज़र दो।।

                                       -डॉ पवन मिश्र

फ़र= चमक, प्रकाश          ज़ीस्त= ज़िन्दगी
ज़ानू= गोद                      ज़र= दौलत, सम्पत्ति  

Saturday 5 March 2016

ग़ज़ल- हाले दिल वो ही नहीं सुनते


हाले दिल वो ही नहीं सुनते तो बोलो क्या करें।
अश्क़ आँखों में नहीं रुकते तो बोलो क्या करें।।

बात दिल की वो नहीं कहते तो बोलो क्या करें।
फूल अब लब से नहीं झरते तो बोलो क्या करें।।

वक्त की तासीर है या हम बुरे ठहरे यहाँ।
लोग अब खुल कर नहीं मिलते तो बोलो क्या करें।।

जिनकी ख़ातिर हो गयी मेरी सभी से दुश्मनी।
वो ज़माने का यकीं करते तो बोलो क्या करें।।

सेंकनी थी रोटियाँ तो बस्तियां जलने लगी।
वो खुदा से भी नहीं डरते तो बोलो क्या करें।।

वोट की ख़ातिर लड़ाते आदमी से आदमी।
चाल अक्सर वो यही चलते तो बोलो क्या करें।।

ओढ़ कर चोला जिहादी भूल कर अम्नो वफ़ा।
मुल्क़ से अब वो दग़ा करते तो बोलो क्या करें।।

                                     -डॉ पवन मिश्र

Friday 4 March 2016

ग़ज़ल- क्या कहूँ मेरे दिल में


क्या कहूँ मेरे दिल में छुपा कौन है।
पलकों की कोर पे ये रुका कौन है।।

इश्क में नूर बसता खुदाया का है।
इश्क से इस ज़मी पे जुदा कौन है।।

शाम बेरंग थी रंग किसने भरा।
गुल के जैसे महकता हुआ कौन है।।

मैं उसी मोड़ पर आज भी मुंतजिर।
पूछ लो आईने से गया कौन है।।

माना हमसे तुझे अब मोहब्बत नहीं।
फिर तुझे हिचकियाँ दे रहा कौन है।।

सारे इल्ज़ाम जब कर लिये अपने सर।
अब पवन क्या कहे बेवफा कौन है।।

                        -डॉ पवन मिश्र

मुंतजिर= प्रतीक्षारत





















Tuesday 1 March 2016

ग़ज़ल-उसे मुझसे यही शिकवा गिला है


उसे मुझसे यही शिकवा गिला है।
बताता क्यों नहीं दिल जो दुखा है।।

तुम्हे ही जब नहीं कुछ भी पता है।
किसी को क्या बताऊँ क्या हुआ है।।

मेरे आँखों तले कुछ ख्वाब पलते।
दिखाऊँ कैसे जो मुझको दिखा है।।

बहुत बेचैन कर दी जीस्त उसने।
दिखा के आइना कैसा गया है।।

लड़ा के आदमी को आदमी से।
कहे खुद को बड़ा वो रहनुमा है।।

ख़ुशी घर में ले आया आज चूल्हा।
कई शब बीतने पर ये जला है।।

बराहे रास्त आओ पास मेरे।
बताओ तो ज़रा क्या माजरा है।।

छिपा के अश्क़ आँखों में हँसे वो।
पवन जैसा दीवाना लग रहा है।।

                     -डॉ पवन मिश्र

जीस्त= जिंदगी
बराहे रास्त= सीधे तौर पर, बिना किसी को बीच में डाले हुए

Saturday 27 February 2016

ग़ज़ल- हो गयी दुश्मनी जमाने से


हो गई दुश्मनी जमाने से।
लोग जलने लगे दीवाने से।।

मिलने आते थे जो बहाने से।
अब वो आते नहीं बुलाने से।।

आरजू दिल में दफ़्न कर के हम।
लौट आये तेरे मैखाने से।।

उनसे इज़हार अब जरूरी है।
देखें कब तक उन्हें बहाने से।।

रहनुमा फूल भी खिला दें गर।
पायें फ़ुर्सत जो घर जलाने से।।

तेरा मक्नून भाप जाता हूँ।
कुछ न होगा तेरे छिपाने से।।

मेरी तकदीर में नहीं था जो।
मिल गया हौसला दिखाने से।।

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर क्यों।
खुश नहीं वो पवन के जाने से।।

                  -डॉ पवन मिश्र

मक्नून= मंशा, मन की बात


Saturday 20 February 2016

मुक्तक


इस हृदय ने वरण कर लिया है तुम्हे।
श्वास विश्वास सब दे दिया है तुम्हे।
प्रीत पे मेरी बस तुम भरोसा रखो,
कृष्ण की राधिका सा जिया है तुम्हे।१।

शांत एकांत वन में ना विचरण करो।
हे प्रिये हे सखे थोड़ा धीरज धरो।
प्रेम की रौशनी से छंटेगा धुँआ,
स्नेह का नेह जीवन में अब तुम भरो।२।

पुष्प आशाओं के कुछ महक जाने दो।
आज थोड़ा हमें तुम बहक जाने दो।
मैं हूँ चातक बनो स्वाति की बूंद तुम,
सूखे अधरों पे अमृत छलक जाने दो।३।

                        - डॉ पवन मिश्र






Monday 15 February 2016

ताटंक छन्द- सुना अभी उस गुरुकुल से


सुना अभी उस गुरुकुल से स्वर, देश विरोधी आये हैं।
अफज़ल अफज़ल चिल्लाते जो, वो श्वानों के जाये हैं।।

मार्क्सवाद का ढोंग रचा के, खुद को कहे सयाना है।
देश कलंकित करने का तो, इसका कृत्य पुराना है।।

नवयुवकों में देश द्रोह का, बीज यही तो बोते हैं।
आतंकी जब मारे जाते, ये चिल्लाते रोते हैं।।

नाम कला का लेकर के ये, नग्न नाच दिखलाते हैं।
आने वाली पीढ़ी को बस, भौतिकता सिखलाते हैं।।

कह दो उनसे जाकर कोई, दाल न अब गल पायेगी।
विद्या के मन्दिर पे केवल, ज्ञान घटा ही छायेगी।।

चुन चुन के सारे गीदड़ अब, दूर भगाये जायेंगे।
बहुत हो गया लाल लाल अब, रँग भगवा लहरायेंगे।।

                                          -डॉ पवन मिश्र






Friday 5 February 2016

मुक्त छन्द- केमेस्ट्री


बउवा बईठो पास हमाये, केमेस्ट्री तुम्हे पढ़ाइत है।
सब चीजन का मूल इहे है, सबका इहे बनाइत है।१।

स्टेबिल्टी झगरा की जड़, इलेक्ट्रान का खेला है।
जिनके तीरे इक दुई गड़बड़, उनही का रेलमपेला है।२।

धातु अधातु का झंडा लइके, सबरे तत्व जो ठाढ़े हैं।
एस पी डी एफ़ पढ़ि लेओ बस, ई सब ओहि के मारे हैं।३।

हैलोजन तो बड़ी अम्मा है, कार्बन का फइलार बहुत।
हाईड्रोजन पिले सभी से, अक्सीजन के यार बहुत।४।

सोडियम भईया बहुते तेज, उई पनियों में बर जात है।
प्लेटिनम ससुरा इत्ता लुल्ल, जाने मेटल काहे कहात है।५।

नीला लिटमस लाल बना दे, तब उनका एसिड मानो।
जऊन लाल को नीला कर दे, उहे बेस हैं इतना जानो।६।

एकहि कार्बन के चक्कर मा, देखो कईसी आफत है।
इथेनॉल तो खूब झुमाए, मिथेनॉल लई डारत है।७।

मार चुपाई बईठे हैं सब, उई जो आखिर मा रहिते।
न कउनो से रिश्तेदारी , उनका सब नोबल कहिते।८।

                                      -डॉ पवन मिश्र

Thursday 28 January 2016

ताटंक- इक नापाक पड़ोसी


इक नापाक पड़ोसी की मैं बात बताने आया हूँ।
दिल में इसके जहर भरा है वही दिखाने आया हूँ।१।

काश्मीर की बात है करता ये ढोंगी अन्यायी है।
माँ बेटी की लाज लूटते इसको शर्म न आयी है।।
केसर की धरती पर इसने ख़ूनी फसलें बोई है।
शिवशंकर के आँगन ने खुद की सुन्दरता खोई है।१।

सुलग रही कश्मीरी घाटी इसने ग्रहण लगाया है।
द्रुपद सुता का दुर्योधन बन चीर हरण करवाया है।।
जेहादी चोले में रखके आतंकी भिजवाता है।
खुद के मंसूबो की ख़ातिर बच्चों को मरवाता है।२।

फूलों की घाटी में इसने गन्ध भरी बारूदों की।
सत्तर हूरों की है ख्वाहिश इन जैसे मर्दूदों की।।
पाकिस्तानी आकाओं के कुछ चमचे घाटी में भी।
आस्तीन के सांप के जैसे कुछ अपनी माटी में भी।३।

कश्मीरी गलियों में इनकी शह पर रूदन होता है।
भाड़े के हथियारों के जख्मों को भारत ढोता है।।
उसकी इन घटिया चालों को मैं बतलाने आया हूँ।
इक नापाक पड़ोसी की मैं बात बताने आया हूँ।४।
दिल में इसके जहर भरा है वही दिखाने आया हूँ।।

श्वानों के जाये हैं जो वो सिंहो से टकराते हैं।
अमरीकी दामाद बने वो गिद्धों से मडराते है।।
भूल गया तू तब करगिल पे कैसे चढ़ के बैठा था।
हिम खण्डों में कब्र बनी थी जब तू हमसे ऐंठा था।५।

ढाका में काटा था बाजू अबकी मस्तक तोड़ेंगे।
ना सुधरा तो रावलपिण्डी भारत में हम जोड़ेंगे।।
खाने के लाले हैं फिर भी बन्दूकों से भौंके है।
खुद के घर में आग लगी पर हमको रण में झोंके है।६।

अपनी काली करतूतों से बाज न तू गर आयेगा।
सैतालिस औ पैंसठ आके फिर खुद को दुहरायेगा।।
गर तुझमें साहस है तो अब खुल के आ मैदानों में।
देखें कितनी शक्ति भरी है तुझ जैसे शैतानों में।७।

तोते जैसा रट ले लेकिन काश्मीर नहीं पायेगा।
भारत के बेटों के हाथों फिर तू रौंदा जायेगा।।
काश्मीर का ख़्वाब ना पालो ये समझाने आया हूँ।
इक नापाक पड़ोसी की मैं बात बताने आया हूँ।८।
दिल में इसके जहर भरा है वही दिखाने आया हूँ।।

कब तक इसकी करनी का फल हम पर लादा जायेगा।
क्यूँ मातम का बादल पहले भारत पर ही छायेगा।।
कब तक इसकी करतूतें माँ के कोखों को लूटेगी।
विधवाओं की चूड़ी कब तक भारत भू पर टूटेगी।९।

देश हमारा आखिर कब तक इन दंशों को झेलेगा।
कब तक ये भारत माता के आँचल से यूँ खेलेगा।।
क्यों दिल्ली अब तक ना समझी इसके छद्म प्रपंचो को।
शांति दौर अब बहुत हो चुका खोलो तोप तमंचो को।१०।

चीख रहा इतिहास पुराना भूत नहीं ये बातों के।
इनकी दुम टेढ़ी ही रहती ये तो बस हैं लातों के।।
क्या डरना अमरीका से जब छप्पन इंची सीना है।
कूटनीति के मारे कब तक विष का प्याला पीना है।११।

इसके सच को नंगा कर दो आज भरे बाजारों में।
मानचित्र से ये मिट जाए रह जाए अख़बारो में।।
सोई दिल्ली के सीने में अलख जगाने आया हूँ।
इक नापाक पड़ोसी की मैं बात बताने आया हूँ।१२।
दिल में इसके जहर भरा है वही दिखाने आया हूँ।।

                                     ✍️ डॉ पवन मिश्र




Tuesday 26 January 2016

ग़ज़ल- इक़रार है इज़हार है


इकरार है इजहार है।
तो फिर कहाँ तकरार है।।

आँखे झुकी हैं शर्म से।
होठों को पर इनकार है।।

मीज़ान पर धर दी कलम।
कहता कि वो फ़नकार है।।

बोझिल शबों के साये में।
अब जिंदगी दुश्वार है।।

फरमान लेके तुगलकी।
जिद पे अड़ी सरकार है।।

करते नहीं वो साजिशें।
जिनको वतन से प्यार है।।

        -डॉ पवन मिश्र

मीज़ान= तराजू




Monday 25 January 2016

गंगोदक सवैया- हे प्रिये मान लो


हे प्रिये मान लो बात ये जान लो।
प्रीत की रीत को यूँ निभाते रहो।।

कालिमा रात की भी रहेगी नहीं।
राह में दीप कोई जलाते रहो।।

साथ कोई रहे या न हो साथ में।
साथ मेरे पगों को बढ़ाते रहो।।

स्वप्न पालो इसी मोतियों के तले
नीर को आँख से क्यों बहाते रहो।।

                   -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- चार चार पर यति के साथ आठ रगण अर्थात् २१२×8

Saturday 23 January 2016

ग़ज़ल- तेरे आने से दिल बहलता है


तेरे आने से दिल बहलता है।
तिश्नगी को सुकून मिलता है।।

देख कर हुस्न वो सरे महफिल।
देखें कैसे कोई सँभलता है।।

मेरा ग़म भी तेरा दीवाना है।
तेरे पहलू में आ पिघलता है।।

कोई रौशन करे शमा को भी।
तन्हा परवाना कबसे जलता है।।

जा ब जा तू मिले हमे हरपल।
आँखों में ख़्वाब ये ही पलता है।।

                    -डॉ पवन मिश्र

तिश्नगी= प्यास
जा ब जा= जगह जगह, जहाँ-तहाँ

Friday 22 January 2016

ताटंक छन्द- अब जाग जवानी देर न कर

अब जाग जवानी देर न कर, आग लगा दे पानी में।
पापी सारे जल मर जायें, अपनी भरी जवानी में।।

देश घिरा है संकट में अब, अरिदल घात लगाये हैं।
देख जरा इन दुष्टों को जो, घर तक में घुस आये हैं।।

मानवता को लील रही अब, अन्यायी काली छाया।
अत्याचारी पनप रहे पर, तुझको होश नहीं आया।।

मोह-पाश अब काट फेंक दे, कर्तव्यों की आरी से।
हाथ बढ़ाये शत्रु अगर तो, कर दे वार दुधारी से।।

तिलक लगा ले माथे पर अब, खड्ग उठा ले हाथो में।
समय आ गया है उठकर अब,ज्वार बसा ले सांसो में।।

मत भूल जवानी क्या है तू, पीठ किये क्यों विघ्नों से।
सम्पूर्ण विश्व है दुविधा में, राह दिखा पदचिन्हों से।।

                                        -डॉ पवन मिश्र

Thursday 21 January 2016

ग़ज़ल- चाँद से उनकी निगाहें मिल गयी


चाँद से उनकी निगाहें मिल गई।
देख कर ये चांदनी भी खिल गई।।

उनका आना ज़िन्दगी में जब हुआ।
दो जहाँ की जैसे खुशियाँ मिल गई।।

रुखसती की जब खबर हमको मिली।
पाँव के नीचे जमीने हिल गई।।

तेरे बिन कटता नहीं कोई भी पल।
दिन गया दुश्वार शब बोझिल गई।।

भेड़ जैसे क्यों खड़े हो भीड़ में।
जब ये पूछा तो जुबां ही सिल गई।।

मुश्किलें भी बढ़ रही हैं अब पवन।
तू गया तो रौनके महफ़िल गई।।

                     -डॉ पवन मिश्र

Wednesday 20 January 2016

दुर्मिल सवैया- मति में सबके बस स्वार्थ भरा


मति में सबके बस स्वार्थ भरा।
यह देश चला किस ओर अहो।।

कलियाँ खुद मालिन नोच रहा।
फिर कौन चुने अब कंट कहो।।

नत माथ यही विनती प्रभु जी।
तम की गहरी अब रात न हो।।

अब ज्ञान सरोवर रूप बना।
सबके हिय में करतार बहो।।

                 -डॉ पवन मिश्र

Monday 18 January 2016

ताटंक छन्द- हे मानव अब तो सँभलो


हे मानव अब तो सँभलो तुम, कब तक भटकोगे यूँ ही।
मानवता की कब्र बना के, कब तक रह लोगे यूँ ही।१।

कर्तव्य जला के राख किये, अधिकारों की भठ्ठी में।
देख सजोया क्या तूने है, अपनी खाली मुठ्ठी में।२।

अपनी सारी युक्ति लगा दी, धन-वैभव को पाने में।
सारा जीवन व्यर्थ किया बस, भंगुर-अर्थ कमाने में।३।

सुबह शाम का भोजन तो सब, पशु भी पा ही जाते हैं।
ये ही लक्ष्य हमारा तो हम, मानव क्यों कहलाते हैं।४।

जीवन मूल्यों की बलि देते, हाथों को अब टोको तो।
पतन द्वार तक जा पहुँचे हो, पैरों को अब रोको तो।५।

अर्थ उपासक बन कर के तू, क्या अर्जित कर पाया है।
सोच सको तो सोचो अब तक, क्या खोया क्या पाया है।६।

                                    -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 16,14 मात्राओं पर यति तथा पदांत में तीन गुरु

Saturday 16 January 2016

ग़ज़ल- चैन मिलता हमें एक पल का नहीं


चैन मिलता हमें एक पल का नहीं।
अश्क़ रुकते नहीं जख़्म भरता नहीं।।

जो दुखायेंगे दिल अपने माँ बाप का।
माफ़ उनको खुदा भी करेगा नहीं।।

छोड़ दे आप मेरा वतन शौक से।
मुल्क पर आपको जब भरोसा नहीं।।

जिंदगी साथ में थी बहुत पुर सुकूँ।
बाद तेरे मिला एक लम्हा नहीं।।

मेरे किरदार की तो वजह तुम ही थे।
बिन तुम्हारे जियेंगे ये सोचा नहीं।।

शब जली साथ में दिन भी तपता रहा।
उसके बिन एक भी पल गुजरता नहीं।।

है शिकायत हमें आज भी आपसे।
खुद ही रुकते अगर हमने रोका नहीं।।

                    -डॉ पवन मिश्र

पुर सुकूँ= सुकून भरी, शांतिमय

Wednesday 13 January 2016

ग़ज़ल- चाँद भी क्या किसी से डरता है


चाँद भी क्या किसी से डरता है।
दूर क्यों आसमाँ में रहता है।।

बेबदल है बहुत अदा उसकी।
आँखों से दिल में वो उतरता है।।

रू ब रू आओ तो कहूँ कुछ मैं।
तेरा पर्दा हमे अखरता है।।

दफ़्न जज्बात हैं मगर फिर भी।
बन के धड़कन वो ही धड़कता है।।

तू नहीं है मगर ये दिल देखो।
वक्त बे वक्त याद करता है।।

            -डॉ पवन मिश्र

बेबदल= अद्वितीय

देश का मुकुट हमारा


देश का मुकुट हमारा, प्राणों से जो हमको प्यारा।
ऐसे कश्मीर के लिए वो बेकरार है।।
समझाओ उसे जा बात से या लात से कि।
उसकी सारी कोशिशें तो अब बेकार है।१।

ढीढ बन पीठ पर करे है बार बार वार।
शूकरों की फ़ौज का वो बना सरदार है।।
खुद के हालात किये बिना लाठी लंगड़े सी
अपनी दशा का तो वो खुद जिम्मेदार है।२।

भारतीय शावकों का सामना करेगा कैसे।
रक्त नहीं नब्ज़ में तो खौलता अंगार है।।
इनकी समानता करेंगे कैसे वो नापाक।
जिनकी शिराओं में तो पानी की बहार है।३।

इकहत्तर में तो उखाड़ ही दिया था एक बाजू।
अबकी बाजी तेरे शीश की लगाएंगे।।
भारती का हर सपूत देख रहा स्वप्न यही।
कब इस्लामाबाद में तिरंगा फहराएंगे।४।

मन के ज्वार कब तक रहेंगे मन ही में।
कभी तो ये घटा जैसे घोर गहराएंगे।।
भड़केगी अग्नि जब हर गली कूचे से तो।
देखे दिल्ली वाले इसे कैसे रोक पाएंगे।५।

                          -डॉ पवन मिश्र

Sunday 10 January 2016

सार छन्द- राजनीति की बातें


सुन लो भैया सुन लो भैया, राजनीति की बातें।
बातों की ही खाते हैं सब, बातें ही दिन रातें।१।

सुन लो भैया सुन लो भैया, ऊ है बड़का नेता।
मुख में राम बगल में छूरी, जो अपने रख लेता।२।

सुन लो भैया सुन लो भैया, इनकी कारस्तानी।
करना-धरना कुछौ नहीं बस, जारी जंग जुबानी।३।

सुन लो भैया सुन लो भैया, सब मौसेरे भाई।
माल बाँट के आपस में सब, ढोंगी करे लड़ाई।४।

सुन लो भैया सुन लो भैया, पैसा के ये लोभी।
पल भर में ईमान बेच दें, दाम मिले बस जो भी।५।

सुन लो भैया सुन लो भैया, ये मेढ़क बरसाती।
इनकी बारिश बड़ी अनोखी, पांच साल में आती।६।

सुन लो भैया सुन लो भैया, ईश्वर दया दिखाये।
सन्मति इनको आ जाये तो, देश स्वर्ग बन जाये।७।

                                        -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 16,14 मात्राओं पर यति तथा पदांत में दो गुरु।






Saturday 9 January 2016

ग़ज़ल- वक्त की तासीर देखो


वक्त की तासीर देखो।
ख़ाक में जागीर देखो।।

भूख से बच्चे बिलखते।
उनकी क्या तकसीर देखो।।

रहनुमा खुद ही भटकते।
मुल्क की तकदीर देखो।।

बन के ठेकेदार देते।
मज़हबी तकफीर देखो।।

खुद को जेहादी बताना।
कुफ़्र की तकबीर देखो।।

नीव में जिसके पसीना।
उसकी तुम तामीर देखो।।

             -डॉ पवन मिश्र

तासीर= मिजाज, स्वभाव    तकसीर= दोष, भूल
तकफीर= मुसलमान पर कुफ़्र का फतवा लगाना
कुफ़्र= धर्म विरूद्ध                तामीर= बनावट
तकबीर= अल्लाहो अकबर कहना

Thursday 7 January 2016

दुर्मिल सवैया- छल दम्भ बढ़ा

   
छल दम्भ बढ़ा जग में इतना।
निज स्वार्थ बिना अब स्नेह नहीं।।

सब भाग रहे धन वैभव को।
परमारथ को अब देह नहीं।।

मनुपुत्र सभी मद चूर हुए।
मिलता अब कोय सनेह नहीं।।

हर अंतस डूब रहा तम में।
मनदीपक में अब नेह नहीं।।

             डॉ पवन मिश्र

शिल्प- आठ सगण (११२×8)




Wednesday 6 January 2016

ताटंक छन्द- पठानकोट आक्रमण के सन्दर्भ में


उस नापाक पड़ोसी ने फिर, भारत को ललकारा है।
घात लगा के कुछ श्वानों ने, फिर सिंहो को मारा है।।
अपनी कुत्सित चालों का फिर, उसने दिया इशारा है।
विश्व गुरू बन जाये भारत, उसको नहीं गवारा है।।

दिल्ली वाले मौन बने क्यों, अब तो अपनी बारी है।
शांति पाठ ही होवे हरदम, ऐसी क्या लाचारी है।।
निर्णय करलो अबकी उसको, सीखें ऐसी दी जायें।
मानचित्र ले हाथों में वो, ढूंढे अपनी सीमायें।।

                                     -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 16,14 मात्राओं पर यति तथा पदांत में तीन गुरु

Tuesday 5 January 2016

मदिरा सवैया- दूर गए मनमोहन तो


दूर गए मनमोहन तो, अब नैनन चैन कहाँ रहिये।
पीर बसी हिय गोपिन के, अब कौन उपाय प्रभो कहिये।।
नाथ अनाथ बनाय चले, कर जोरि कहे हमरी सुनिये।
भक्त करें बिनती तुमसे, अब तो बृज धाम चले चलिये।।

आकुल व्याकुल लोग सभी, खग कूजत ना अब कानन में।
रोअत आँखिन, धूमिल से तन, कान्ति नहीं अब आनन में।।
खार हुआ जमुना जल भी, बहु पीर भरी दुखिया जन में।
हे चितचोर हृदेश सुनो, अब धीर भरो सबके मन में।।

                                           - डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 7 भगण (२११×७)+१ गुरू, सामान्यतः 10,12 वर्णों पर यति। 

Monday 4 January 2016

कुण्डलिया- सब मिल साथ रहे सदा


सब मिल साथ रहे सदा, मन में यही विचार।
ईश भजन करते रहे, पूरे हो सब कार।।
पूरे हो सब कार, किसी की आस न टूटे।
मस्त मगन सब रहे, किसी का साथ न छूटे।।
पवन करे अरदास, सितारे चमके झिलमिल।
गहरे तम की रात, मिटावें आओ सब मिल।१।

समरथ हे प्रभु आप हो, पूर्ण करो हर काज।
शीश नवाये हूँ खड़ा, दर्शन दीजो आज।।
दर्शन दीजो आज, पुकारूँ निस दिन तुमको।
कष्टों को हर नाथ, मिटाओ गहरे तम को।।
करे प्रार्थना पवन, दिखा दो हमको सतपथ।
तुम बिन कौन उपाय, प्रभो तुम सबसे समरथ।२।

                                  -डॉ पवन मिश्र