Sunday 29 May 2016

मुक़्तदिर वो थे बने जिन के लिये


मुक़्तदिर वो थे बने जिन के लिये।
आज कहते कुछ नहीं इन के लिये।।

दे गए वो अश्क़ खुशियों की जगह।
आँख थी ये मुंतज़िर जिन के लिये।।

जानते थे जी नहीं पाओगे तुम।
लौट आये एक लेकिन के लिये।।

इस दफ़ा हमने सताया रूठ कर।
उनसे बदले हमने गिन गिन के लिये।।

छोड़ कर तक़दीर का दामन ज़रा।
हौसला कर गैरमुम्किन के लिये।।

आँधियों का काम था वो कर गयीं।
जूझना है फिर मुझे तिनके लिये।।

खौफ़ आँखों में कयामत का नहीं।
मुन्कसिर हाज़िर है उस दिन के लिये।।

मुतमइन खुद ही नहीं जब ऐ पवन।
मुंतशिर फिर क्यों रहे इन के लिये।।

                  ✍ डॉ पवन मिश्र


मुक़्तदिर= सत्तावान
मुंतजिर= प्रतीक्षारत
गैरमुम्किन= असम्भव
मुन्कसिर= ख़ाकसार
मुतमइन= इत्मीनान/सन्तुष्ट होना
मुंतशिर= परेशान

Thursday 19 May 2016

ग़ज़ल- मुल्क़ के वास्ते गर कहानी नहीं


मुल्क़ के वास्ते गर कहानी नहीं।
कुछ भी कह लो मगर वो जवानी नहीं।।

वक्त है अब भी सँभलो मेरे दोस्तों।
ये जवानी के दिन ग़ैरफ़ानी नहीं।।

नाकसी रहनुमाओं की क्या हम कहें।
लगता है आँख में इनके पानी नहीं।।

नाम उसका भले हो किताबों में गुम।
मीरा जैसी कोई तो दीवानी नहीं।।

जाते जाते बता दे ऐ हमदम मेरे।
लाज़मी क्या कोई भी निशानी नहीं।।

उनके बिन चाँद भी लगता फ़ीका हमें।
रातें लगती हमें अब सुहानी नहीं।।

उन घरों की दीवारें दरक जाती हैं।
नीव में जिनके ईंटे पुरानी नहीं।।

                   ✍डॉ पवन मिश्र

नाकसी= नीचता, अधमता
ग़ैरफ़ानी= शाश्वत


Wednesday 18 May 2016

चौपाई- दधि सपरेटा


आज सुनायें एक कहानी।
बड़ी घमण्डी थी इक रानी।।

उस रानी का ऐसा बेटा।
जैसे मानो दधि सपरेटा।।

हरदम रटता माई माई।
उस पप्पू को अकल न आई।।

उसका इक मौसेरा भाई।
जिसको रानी सोन्या लाई।।

दिन भर ढूंढे नये बहाने।
लगे रायता वो फ़ैलाने।।

मोदी ही है नाव खिवैया।
अच्छे दिन आयेंगे भैया।।

        ✍ डॉ पवन मिश्र

Tuesday 10 May 2016

नवगीत- जीवन है आपाधापी है


कुछ रीत गया, कुछ बाकी है।
जीवन है आपाधापी है।।

कुछ अति कठोर, कुछ भंगुर है।
कुछ क्षणिक मगर कुछ शाश्वत है।।
खुशियाँ है घोर उदासी है।
जीवन है आपाधापी है।।

कुछ स्मृति में, कुछ विस्मृत है।
कुछ पाया कुछ से दूरी है।।
कुछ सम्मुख कुछ आभासी है।
जीवन है आपाधापी है।।

मृगतृष्णा है, जल भी है।
कुछ कल बीता कुछ कल भी है।।
सुख-दुख की हिस्सेदारी है।
जीवन है आपाधापी है।।

  ✍डॉ पवन मिश्र

Monday 9 May 2016

वागीश्वरी सवैया- अँधेरा छटे औ दिखे राह कोई


प्रभो प्रार्थना आज स्वीकार लो ये।
तुम्हारे सिवा और जायें कहाँ।।

अँधेरा छँटे औ दिखे राह कोई।
करो आज ऐसा उजाला यहाँ।।

दुखों की कटे रात आये सवेरा।
यही चाहता देख सारा जहां।।

छुपे हो कहाँ नाथ ये तो बता दो।
तुम्हे ढूंढता मैं यहाँ से वहाँ।।

       ✍डॉ पवन मिश्र

शिल्प- सात यगण + लघु गुरु (१२२×७)+(१२)



Sunday 8 May 2016

नवगीत- माँ पर कुछ लिखना है


इक कठिन परीक्षा
आन पड़ी
लेखन की कैसी
विकट घड़ी
आज कहा जब
आकर उसने
माँ पर कुछ लिखना है

हे मातु शारदा
कृपा करो
शब्दों में
मन के भाव गढ़ो
प्रेम तपस्या त्याग
में गुँथकर
रचना को दिखना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

हे लम्बोदर
हे शिव प्यारे
प्रारम्भ करो
आया द्वारे
है आह्वाहन
लेकर आओ
शब्दकोश जितना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

भाव असीमित
अंतर्मन में
माँ ही मन में
माँ जीवन में
शब्द कहाँ से
मैं ले आऊँ
ज्ञान नहीं इतना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

शब्दों मे
आकाश बाँध लूँ
जलधि तरंगे
कहो साध लूँ
लेकिन जब
लिखना है माँ पर
पवन शून्य कितना है।
माँ पर कुछ लिखना है।।

✍डॉ पवन मिश्र