Thursday 30 June 2016

भुजंगप्रयात छन्द- भजूं मैं कन्हैया


भजूं मैं कन्हैया वही नाथ मेरा।
वही शाम मेरी वही है सवेरा।।
धरा है उसी की सितारे उसी के।
नदी धार में वो किनारे उसी के।१।

वही राधिका का वही गोपियों का।
वही प्रेमियों का वही योगियों का।।
सुनो द्वारिकाधीश तेरा सुदामा।
पुकारे तुम्हें, हे सुनो नाथ श्यामा।२।

                       ✍डॉ पवन मिश्र

शिल्प- चार यगण (१२२*४)

Wednesday 22 June 2016

ग़ज़ल- मुश्तगिल थे इश्क में जो


मुश्तगिल थे इश्क में जो मुफ़्तकिर वो हो गए।
जीस्त का हर चैन खो कर मुंतशिर वो हो गए।।

बाप ने एड़ी घिसी औलाद की ख़ातिर मगर।
चार पैसे क्या कमाये? मुंजजिर वो हो गए।।

ज़िम्मेदारी जिनपे थी जुम्हूर के आवाज़ की।
दाम के चक्कर में देखो मुश्तहिर वो हो गए।।

चापलूसी खुदफ़रोशी ही चलन जिनका यहाँ।
आज बैठे तख़्त पे हैं, मुक़्तदिर वो हो गए।।

जूतियों से रौंदते थे आम को जो ख़ास बन।
साल जो आया चुनावी मुन्कसिर वो हो गए।।

पाकतीनत, पाकनीयत, पाकबीं जो थे पवन।
वक्त की करवट में गोया मुस्ततिर वो हो गए।।

                                 ✍ डॉ पवन मिश्र

मुश्तगिल= लग्न, तल्लीन
मुफ़्तकिर= दरिद्र, कंगाल
जीस्त= जिंदगी
मुंतशिर=अस्त व्यस्त, परेशान
मुंज़जिर=अलग रहने वाला
जुम्हूर= अवाम, जनता
मुश्तहिर= विज्ञापक
खुदफ़रोशी= धन/पद के लोभ में खुद को बेचना, गद्दारी करना
मुक़्तदिर= सत्तावान
मुन्कसिर= नम्र
पाकतीनत= स्वच्छ प्रकृति वाला
पाकनीयत= स्वच्छ मन वाला
पाकबीं= जो बुरा न देखे, समदर्शी
मुस्ततिर= गुप्त, गायब

Tuesday 21 June 2016

गज़ल- तेरा आना, मुस्कुराना

तेरा आना, मुस्कुराना।
याद है हर इक फ़साना।।

सामने आकर दुज़ानू।
दिल की सब बातें बताना।।

याद मुझको गेसुओं में।
उँगलियां तेरा फिराना।।

आज तक फिर भी न समझा।
आके तेरा लौट जाना।।

सोचना फ़ुर्सत मिले तो।
क्या मिला चुनकर ज़माना।।

फूल से बेज़ार होकर।
क्यों चुना काँटे सजाना।।

बस पवन की आरज़ू ये।
लौट आये वो ज़माना।।

        ✍ डॉ पवन मिश्र

दुज़ानू= घुटने के बल बैठने की मुद्रा

Sunday 19 June 2016

ग़ज़ल- हमारा दिल


बला की उन अदाओं से मचलता है हमारा दिल।
रहे काबू में फिर कैसे बहकता है हमारा दिल।।

न ख्वाहिश है गुलों की औ न चाहत है खियाबाँ की।
तुम्हारे प्यार से हर पल महकता है हमारा दिल।।

अकेले में जो आती हैं कहाँ की ये सदायें हैं।
तुम्हारी याद है या फिर धड़कता है हमारा दिल।।

तेरे जानू पे सर रख कर लटों से खेलना शब भर।
सुखन की ऐसी रातों को तरसता है हमारा दिल।।

बहुत मजबूर हैं महफ़िल में मुस्काना जरूरी है।
अकेले में तो अक्सर ही सिसकता है हमारा दिल।।

खिलौनों की जगह हाथों में छाले आ गए जिनके।
वो बच्चे देख कर यारों तड़पता है हमारा दिल।।

                                 ✍ डॉ पवन मिश्र

खियाबाँ= बाग़
जानू= गोद

Friday 17 June 2016

दोहे- हिन्द और हिन्दू


सरस मृदु सरिता जल में, किसने घोला खार।
शीतलता अब तज रही, गंगा जमुना धार।१।

तुष्टिकरण की चाशनी, मिलकर रहे पकाय।
सत्तालोलुप सोच से, देश गर्त में जाय।२।

मोमिन पट्टी बाँध के, करने चला ज़िहाद।
भूला सारी आयतें, कठमुल्ला बस याद।३।

शीलवान हिन्दू बना, झेला हर आघात।
काश्मीर से कैराना, हुए घात पर घात।४।

हिन्दू के इस मौन को, कायरता नहि मान।
रौद्र रूप जो धर लिया, होगा प्रलय समान।५।

हिन्द ये मेरा देश है, बूझो इसका अर्थ।
हिन्दी हिन्दू मूल है, बाकी बातें व्यर्थ।६।

                        ✍ डॉ पवन मिश्र

Monday 13 June 2016

कुण्डलिया- जल ही जीवन है


आया बालक भागता, लगी तपन की मार।
पहुँचा नल के पास जब, मिली नहीं जलधार।।
मिली नहीं जलधार, यत्न सारे कर डाले।
कुछ बूँदे को पाय, कहाँ से प्यास बुझा ले।।
सुनो पवन की बात, नीर बिन चले न काया।
सूखे जल के स्रोत, समय ये कैसा आया।१।

तपती जाती ये धरा, बदल रहा भूगोल।
पानी की हर बूँद का, अब तुम समझो मोल।।
अब तुम समझो मोल, सूखती जाये नदिया।
बिन पानी सब क्लान्त, न पुष्पित कोई बगिया।।
कहे पवन ये बात, धरा जो रो रो कहती।
जल संरक्षण लक्ष्य, बचा लो धरती तपती।२।

                        ✍ डॉ पवन मिश्र

Saturday 11 June 2016

ताटंक छन्द- राजनीति


राजनीति की गन्दी गलियां, तुमको आज दिखाता हूँ।
स्वार्थ वशी कुछ गद्दारों की, करतूतें बतलाता हूँ।।
जनसेवा वो भूल गए हैं, दिल ही उनका काला है।
राजनीति के पुण्य पंथ को, अब दूषित कर डाला है।१।

जाति धर्म की खाद मिला कर, ये जो फसलें बोते हैं।
उनके गन्दे फल का बोझा, नन्हें पौधे ढोते हैं।।
तुष्टिकरण ही मूल मन्त्र है, राजनीति के पण्डों का।
जब चाहे ये सौदा करते, भारत के भू खण्डों का।२।

राजनीति में उथली बातें, जो जितनी कर लेता है।
भारत का वह भाग्य विधाता, वो ही अव्वल नेता है।।
आज बना वो खुद मुखिया अरु, बेटा उसका भावी है।
देश प्रेम तो कोरी बातें, पुत्र मोह बस हावी है।३।

सत्ता के गलियारों में तो, शब्द गढ़े नित जाते हैं।
अक्सर झूठे नारों के ही, भोग लगाए जाते हैं।।
नारों में ही हटी गरीबी, वतन तरक्की करता है।
किसको चिंता है गरीब की, जो तिल-तिल कर मरता है।४।

बिलियन ट्रिलियन अर्थ व्यवस्था, लेकिन होरी भूखा है।
नेताओं के ग्लास भरे हैं, लेकिन पनघट सूखा है।।
लोकतंत्र की नैया उसके, नाविक ही उलझाये हैं।
सारे सत्तालोलुप नेता, अमरबेल बन छाये हैं।५।

लेकिन इक दिन राजनीति में, इक अवतारी आयेगा।
गन्दे शूकर अरु कीटों से, वो ही मुक्ति दिलायेगा।
उस दिन ये दलदल भी अपनी, मुग्धा पर इतरायेगा।
इस कीचड़ में जिस दिन यारों, मात्र कमल रह जायेगा।६।

                                                ✍ डॉ पवन मिश्र

Thursday 9 June 2016

भुजंगप्रयात छन्द- जपो नाम कान्हा


जपो नाम कान्हा वही है सहारा।
वही तारता है वही है किनारा।।
करे धर्म रक्षा वही मोक्षदाता।
सुनो विश्व का है वही तो विधाता।१।

उसी के सहारे धरा बोझ ढोती।
उसी की कृपा दृष्टि सर्वत्र होती।।
हमारी कन्हैया यही प्रार्थना है।
न कोई दुखी हो यही याचना है।२।

             ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday 5 June 2016

ताटंक छन्द- थर्रायी धरती फिर देखो


(२ जून २०१६ को जवाहर बाग़, मथुरा की हृदयविदारक घटना के सन्दर्भ में)

थर्रायी धरती फिर देखो, कुछ कुत्सित मंसूबों से।
स्वार्थ वशी हो कुछ अन्यायी, फिर बोले बंदूकों से।।
माँ का आँचल लाल हुआ फिर, रक्त बहा है वीरों का।
मुरली की तानों से हटकर, खेल हुआ शमशीरों का।१।

पूछ रही मानवता तुमसे, क्या तुम मनु के जाये हो।
ऐसा क्या दुष्कर्म किया जो, भारत भू पर आये हो।।
सत्याग्रह का चोला ओढ़े, तुम किस मद में खोये हो।
मथुरा की पावन धरती पर, क्यों अंगारे बोये हो।२।

क्रांति दूत खुद को हो कहते, तुमको शर्म नही आई।
कुछ एकड़ की भूमि देखकर, बन बैठे तुम सौदाई।।
दो वर्षों तक सांठ-गांठ से, तूने मथुरा को लूटा।
आंदोलन का पहन मुखौटा, स्वांग रचाया था झूठा।३।

तूने थोड़ी शह क्या पाई, सत्ता के गलियारों से।
सूर्य बुझाने निकल पड़े तुम, हाथ मिला अँधियारों से।।
राम नाम की मर्यादा का, कुछ तो मान रखा होता।
जिनकी जड़ से अलग हुए हो, उनका भान रखा होता।४।

तेरी ये काली करतूतें, इक दिन मोल चुकायेंगी।
आख़िर बकरों की अम्मायें, कब तक ख़ैर मनायेंगी।।
सुन लो ज्यादा दिन तक अब तुम, छुपकर ना रह पाओगे।
कान्हा की गलियों में ही तुम, जल्दी मारे जाओगे।५।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र

ग़ज़ल- दो चार पल में सारा नज़ारा बदल गया

221 2121 1221 212

दो चार पल में सारा नज़ारा बदल गया।
वो मेरे क्या हुए ये ज़माना बदल गया।।

सोचा कि दिल के राज़ बता दे उन्हें सभी।
आये जो रूबरू तो इरादा बदल गया।।

पाँवों पड़ी जो बेड़ियाँ रस्मो रिवाज़ की।
मेरे तुम्हारे प्यार का रिश्ता बदल गया।।

हासिल भले हुआ न हो कुछ तुझको ऐ सनम।
पर मेरी जिंदगी का सलीका बदल गया।।

वादे इरादे तोड़ के जाने गया किधर।
क्या हो गया जो यार वो इतना बदल गया।।

गढ़ता है रोज आयतें अपने हिसाब से।
सत्ता की तिश्नगी में ख़लीफ़ा बदल गया।।

खुद को बदलते जो यहाँ कपड़ों की ही तरह ।
देते हैं दोष वक्त ये कितना बदल गया।।

हर्फ़े निहाँ में अक़्स तेरा आ गया पवन।
यारों मेरी ग़ज़ल का तो लहज़ा बदल गया।।


                          ✍ डॉ पवन मिश्र
आयतें= क़ुरान के वाक्य
तिश्नगी= प्यास
ख़लीफ़ा= प्रतिनिधि
हर्फ़े निहाँ= छुपे हुए शब्द

Saturday 4 June 2016

मनहरण घनाक्षरी- भारती के मस्तक पे


भारती के मस्तक पे, शोभित मुकुट सा है।
भू के उस स्वर्ग हेतु, शत्रु बेकरार है।।
जा के समझाओ उसे, बात से या लात से कि।
उसकी सारी कोशिशें, तो अब बेकार है।।
ढीढ बन पीठ पर, बार बार वार करे।
शूकरों की फ़ौज का जो, बना सरदार है।।
खुद के हालात किये, बिना लाठी लंगड़े सी।
अपनी दशा का तो वो, खुद जिम्मेदार है।१।

बातें तो वो बड़ी बड़ी, रटता है घड़ी घड़ी।
रोटियों के टुकड़े को, खुद जो लाचार है।।
मांग मांग भरता जो, पेट अमरीका से है।
काश्मीर विजय का वो, रखता विचार है।।
भारतीय शावकों का, सामना करेगा कैसे।
रक्त नहीं नब्ज़ में तो, खौलता अंगार है।।
दुस्साहसी गीदड़ों की, टोलियाँ समक्ष खड़ी।
जिनकी शिराओं में तो, पानी की बहार है।२।

याद है इकहत्तर या भूले कटे हाथ को।
फिर वैसा लक्ष्य तेरे, शीश का लगाएंगे।।
सारे पुत्र भारती के, देख रहे स्वप्न यही।
कब इस्लामाबाद में, ध्वजा फहराएंगे।।
देखो ज्वार जोश के ये, कब तक मौन रहे।
कभी तो ये घटा जैसे, घोर गहराएंगे।।
भड़केगी अग्नि जब, हर गांव कूचे से तो।
देखे दिल्ली वाले इसे, कैसे रोक पाएंगे।३।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र
          

Thursday 2 June 2016

भुजंगप्रयात छन्द- दिलों में सदा

दिलों में सदा प्रेम ही हो हमारे।
डिगे ना कभी पाँव देखो तुम्हारे।।
भले सामने हो घना सा अँधेरा।
निराशा न थामो मिलेगा सवेरा।१।

हमेशा चलो सत्य की राह पे ही।।
जलाओ दिए नेह के नेह से ही।।
चलो आज सौगन्ध लेके कहेंगे।
सदा दूसरों की भलाई करेंगे।२।

             ✍डॉ पवन मिश्र

शिल्प- यगण की चार आवृत्ति (१२२*४)