Monday 21 November 2016

ग़ज़ल- सूखे फूल


सूखे फूल किताबों में जब मिल जाते हैं ।
यादों से तब खुशबू के झोंके आते हैं।।

अपलक तकते रहते हैं जो राह तुम्हारी।
उन पलकों की कोरों को नम कर जाते हैं।।

हर आहट तेरा ही भान कराती हमको।
अक्सर परछाईं से जाकर टकराते हैं।।

अश्क़ छिपा कर हँसकर मिलते हैं वो हमसे।
छुप कर उन नजरों से हम भी रो आते हैं।।

सुर्ख लबों की किस्सा गोई हमसे पूछो।
मय तो है बदनाम होंठ ही बहकाते हैं।।

सब कुछ ले लो इन सूखे फूलों के बदले।
बेज़ार पवन को ये ही तो महकाते हैं।।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र
सुर्ख़= लाल
मय= शराब

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