Friday 16 December 2016

नवगीत- फिर से बच्चा बनना है

अँकवारी में भर ले माँ,
फिर से बच्चा बनना है।

बंग्ला बहुत बड़ा है मेरा,
ऊँची दीवारों का घेरा।
एसी हीटर की सुविधा है,
निदिया को फिर भी दुविधा है।।
पैसों की खन-खन है हरपल,
आज यहाँ तो वहाँ गये कल।
लेकिन मैया चैन नहीं है,
आज मुझे ये कहना है।
फिर से बच्चा बनना है।।
अँकवारी में भर ले माँ,
फिर से बच्चा बनना है।।

भाग दौड़ से ऊब चुका हूँ,
थक कर मैं तो टूट चुका हूँ।
बंग्ला अब छोटा लगता है,
पैसा भी खोटा लगता है।।
आँचल में तेरे सोना है,
परियों में फिर से खोना है।
अम्मा फेरो हाथ जरा फिर,
स्वप्नों में फिर बहना है।
फिर से बच्चा बनना है।।
अँकवारी में भर ले माँ,
फिर से बच्चा बनना है।

चाँद सितारे फिर दिखला दे,
आसमान की सैर करा दे।
राम कृष्ण की वही कहानी,
फिर गीता नानक की बानी।।
लिये कटोरी दूध भात की,
भागा-भागी निशा प्रात की।
तेरी अँगुली के सम्बल से,
फिर से मुझको चलना है।
फिर से बच्चा बनना है।।
अँकवारी में भर ले माँ,
फिर से बच्चा बनना है।

✍डॉ पवन मिश्र

3 comments:

  1. काश बचपन में हम लौट पाते,उम्दा गीत पवन जी।

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  2. बहुत ही स्पर्शी👍

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  3. काश बचपन में हम लौट पाते,उम्दा गीत पवन जी।

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