Sunday 23 July 2017

कुण्डलिया- रम में बसते राम ?

*कुण्डलिया*

मदहोशी में श्वान को, रम में दिखते राम।
उसकी दूषित सोच है, कुत्सित सारे काम।।
कुत्सित सारे काम, अरे सुन रे ओ थेथर।
जरा पैग में देख, बोल दिखते पैगम्बर ?
सुनो पवन की बात, त्यागकर अब बेहोशी।
कुछ दिन की मेहमां, तुम्हारी ये मदहोशी।१।

जनता है सब देखती, इनके काले काम।
बड़े बड़े धूमिल हुए, लोकतंत्र यहि नाम।।
लोकतंत्र यहि नाम, चले ना कोई सिक्का।
जनता का विश्वास, तुरुप का होता इक्का।।
जितने नेता आज, हिंद हिन्दू के हन्ता।
उनको हरि का भजन, सिखायेगी ये जनता।२।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र

Friday 21 July 2017

ग़ज़ल- ये बारिश की बूंदें


ये बारिश की बूँदें सताती बहुत हैं।
न चाहूँ मैं फिर भी भिगाती बहुत हैं।।

ये गालों को छूके लबों पे थिरक के।
विरह वेदना को जगाती बहुत हैं।।

दबे पाँव सँग तेरी यादें भी आकर।
भिगाती बहुत हैं रुलाती बहुत हैं।।

फ़लक से ये गिरकर ज़मींदोज़ होतीं।
ये जीवन का दर्शन सिखाती बहुत हैं।।

हुईं जज़्ब मिट्टी में बारिश की बूँदें।
मगर फिर भी मुझको जलाती बहुत हैं।।

ज़मीं सींचती हैं फुहारें ये लेकिन।
टपकती छतों को चिढ़ाती बहुत हैं।।

                     ✍ डॉ पवन मिश्र

Wednesday 19 July 2017

ग़ज़ल- पिता


पसीना भी छुपाता है वो आंसू भी छुपाता है।
अरे वो बाप है जज़्बात कब खुल के जताता है।।

समंदर पार करने को वो बच्चों के लिये अपने।
कभी क़श्ती बनाता है कभी पतवार लाता है।।

परों पे अपने ढोता है वो नन्हें से परिंदे को।
लिये ख़्वाबों की नगरी में फ़लक के पार जाता है।।

उसे तूफ़ान बारिश कुछ नहीं दिखती मुहब्बत में।
थपेड़े सारे सह कर भी घरौंदा वो बनाता है।।

बहुत कम ज़र्फ़ है जो बाप को तकलीफ दे, लेकिन।
दुआओं में  कहां वालिद उसे भी भूल पाता है।।

कसीदे शान में उसकी मुझे पढ़ने की कूवत दे।
जो काँधे पे बिठा दुनिया का हर मेला घुमाता है।।

ज़मीं पे वो फरिश्ता है पवन की दीद में यारों।
खपा कर जिंदगी अपनी जो बच्चों को बनाता है।।

                         ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday 16 July 2017

ग़ज़ल- मेरे किरदार में वो है मेरे दिन रात में है


मेरे किरदार में वो है मेरे दिन रात में है।
याद कैसे न करूँ जज़्ब खयालात में है।।

मेरे आईने में इक अक़्स उभरने है लगा।
देख ये कैसा असर एक मुलाकात में है।।

लब पे मुस्कान लिये आ तो गया महफ़िल में।
*एक तूफ़ान सा लेकिन मेरे जज़्बात में है।।*

देगा फिर कौन जवाबों को मेरे, तू ही बता।
रहनुमा ही जो घिरा आज सवालात में है।।

बदहवासी में चरागों को बुझाने वाली।
ए हवा देख तो ले क्या मेरी औक़ात में है।।

                        ✍ डॉ पवन मिश्र

जज़्ब= समाया हुआ
*दाग देहलवी साहब का मिसरा

Tuesday 11 July 2017

ताटंक छन्द- अमरनाथ श्रद्धालुओं पर हमले के संदर्भ में

(अमरनाथ श्रद्धालुओं पर 10/07/17 को हुए हमले के संदर्भ में)

दहशतगर्दी फिर चिल्लाई, भाड़े के हथियारों से।
देखो माँ की छाती फिर से, छलनी है गद्दारों से।।
गूंज रही थी सारी घाटी, हर हर के जयकारों से।
घात लगाकर गीदड़ आये, जेहादी दरबारों से।१।

शर्म जरा सी भी ना आई, उन श्वानों के ज़ायों को।
हरि भक्तों पर घात लगाया, मार दिया असहायों को।।
आखिर क्यूँ दिल्ली की अब भी, बंदूकों से दूरी है।
कुत्ते की दुम सीधी करने, की कैसी मजबूरी है।२।

गांधी के बन्दर जैसा ही, गर मोदी भी गायेगा।
छप्पन इंची सीने का फिर, मतलब क्या रह जायेगा।।
पकड़ गिरेबाँ खींच निकालों, उन कुत्सित हत्यारों को।
जीप छोड़ कर लटकाओ अब, फंदे से गद्दारों को।३।

चुन चुन कर हर छाती रौंदों, नृत्य करो अरिमुण्डों पे।
न्यायालय भी बन्द करे अब, दया दिखाना गुंडों पे।।
ये विषधर के वंशज सारे, अपना रंग दिखायेंगे।
दूध पिला लो चाहे जितना, इक दिन ये डस जाएंगे।४।

सेना को आदेश करो तुम, अब तो रण छिड़ जाने दो।
रौद्र रूप धर जगदम्बा को, अरि का रक्त बहाने दो।।
क्षत विक्षत पापी का तन जब, हिमखण्डों पर छायेगा।
फिर बाबा बर्फानी के घर, हत्यारा ना आयेगा।५।

                                            ✍ डॉ पवन मिश्र

(अमरनाथ श्रद्धालुओं पर 10/07/17 को हुए हमले के संदर्भ में)

Saturday 8 July 2017

दोहे- गुरु की महिमा


सत्य सनातन श्रेष्ठ है, सकल सृष्टि का सार।
गुरु चरणों में स्वर्ग है, वंदन बारम्बार।१।

जीवन दुर्गम जलधि सम, भ्रमित फिरें नर-नार।
गुरु किरपा ही कर सके, भवसागर से पार।२।

मानव माटी मान लो, गुरु जानो कुमहार।
थाप-पीट औ तपन से, गढ़ता नव आकार।३।

गुरु की महिमा क्या कहूँ, गुरु से गुरुतर कोय।
गुरुवर के आशीष से, सुफल मनोरथ होय।४।

धन-मद में जो चूर हैं, सुनो पवन के बोल।
मात, पिता, गुरु तीन ये, जगती पर अनमोल।५।

                                   ✍ डॉ पवन मिश्र




Sunday 2 July 2017

ग़ज़ल- नाम लेता है


खुदा का नाम ये बन्दा तो सुबहो शाम लेता है।
कोई पूछे खुदा है क्या तो तेरा नाम लेता है।।

जिसे तुम छोड़ आये थे ज़माने की रवायत में।
वो आशिक आज भी अक्सर तुम्हारा नाम लेता है।।

अगर मुझसे मुहब्बत है तो साहिल पे खड़ा है क्यूँ।
वो आकर क्यूँ नहीं पतवार, क़श्ती थाम लेता है।।

समझ पे ताले जड़ जाते बीमारी इश्क़ है ऐसी।
लगी जिसको भला कब अक्ल से वो काम लेता है।।

न साकी चाहिये मुझको न चाहत मैकदे की ही।
पवन मदहोश है ये बस नज़र के जाम लेता है।।

                                 ✍ डॉ पवन मिश्र