*कुण्डलिया*
मदहोशी में श्वान को, रम में दिखते राम।
उसकी दूषित सोच है, कुत्सित सारे काम।।
कुत्सित सारे काम, अरे सुन रे ओ थेथर।
जरा पैग में देख, बोल दिखते पैगम्बर ?
सुनो पवन की बात, त्यागकर अब बेहोशी।
कुछ दिन की मेहमां, तुम्हारी ये मदहोशी।१।
जनता है सब देखती, इनके काले काम।
बड़े बड़े धूमिल हुए, लोकतंत्र यहि नाम।।
लोकतंत्र यहि नाम, चले ना कोई सिक्का।
जनता का विश्वास, तुरुप का होता इक्का।।
जितने नेता आज, हिंद हिन्दू के हन्ता।
उनको हरि का भजन, सिखायेगी ये जनता।२।
✍ डॉ पवन मिश्र
मदहोशी में श्वान को, रम में दिखते राम।
उसकी दूषित सोच है, कुत्सित सारे काम।।
कुत्सित सारे काम, अरे सुन रे ओ थेथर।
जरा पैग में देख, बोल दिखते पैगम्बर ?
सुनो पवन की बात, त्यागकर अब बेहोशी।
कुछ दिन की मेहमां, तुम्हारी ये मदहोशी।१।
जनता है सब देखती, इनके काले काम।
बड़े बड़े धूमिल हुए, लोकतंत्र यहि नाम।।
लोकतंत्र यहि नाम, चले ना कोई सिक्का।
जनता का विश्वास, तुरुप का होता इक्का।।
जितने नेता आज, हिंद हिन्दू के हन्ता।
उनको हरि का भजन, सिखायेगी ये जनता।२।
✍ डॉ पवन मिश्र