Friday 26 January 2018

मुक्तक- वन्दे मातरम


प्राण है विहान है ये गान वन्दे मातरम,
मान है महान है ये गान वन्दे मातरम।
मातु भारती की पुण्य साधना का मंत्र ये,
आन बान शान है ये गान वन्दे मातरम।१।

भीरुता का दाह है ये गान वन्दे मातरम,
शौर्य का गवाह है ये गान वन्दे मातरम।
सुप्त देश भावना से जम चुकी शिराओं में,
रक्त का प्रवाह है ये गान वन्दे मातरम।२।

                              ✍ डॉ पवन मिश्र

Thursday 25 January 2018

त्रिभंगी छन्द- हे कृष्ण मुरारी


हे कृष्ण मुरारी, वंशीधारी, नन्दबिहारी, आओ तो।
प्रभु दे दो दर्शन, रूपाकर्षन, चक्र सुदर्शन, लाओ तो।
नव स्वांग गढ़ रहे, वक्ष चढ़ रहे, दुष्ट बढ़ रहे, धरती पे।
क्यों मौन खड़े हो, दूर अड़े हो, शांत पड़े हो, गलती पे।१।

लेकर दोधारी, हाहाकारी, अत्याचारी, घूम रहा।
अब पतित हुआ जग, न्याय पड़ा मग, पापी के पग, चूम रहा।
सद्मार्ग दिखाओ, अब आ जाओ, नाथ बचाओ, वसुधा को।
अब वंशी त्यागो, चक्र उठाओ, सबक सिखाओ, पशुता को।२।

                             ✍ डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 10,8,8,6 में निहित 32 मात्राओं के चार चरण, चरणान्त में गुरु की अनिवार्यता, दो दो चरणों की तुकांतता मान्य


Sunday 21 January 2018

ग़ज़ल- करो कोशिश तो पत्थर टूटता है

१२२२    १२२२     १२२
करो कोशिश तो पत्थर टूटता है।
मेरी मानों तो अक्सर टूटता है।।

हवाई ही महल जो बस बनाते।
उन्हीं आंखों का मंजर टूटता है।।

अजब है इश्क़ की दुनिया दीवानों।
यहां अश्कों से पत्थर टूटता है।।

वफ़ा ही है हमारे दिल में लेकिन।
बताओ क्यूं ये अक्सर टूटता है।।

दरकती हैं जो ईंटें नींव की तो।
कहूँ क्या यार हर घर टूटता है।।

सुखनवर जानता है ये सलीका।
कलम से ही तो खंजर टूटता है।।

                ✍ *डॉ पवन मिश्र*

सुखनवर= कवि

Sunday 14 January 2018

गीत- वाणी यायावरी परिवार (व्हाट्सएप समूह) के सम्मिलन हेतु विशेष

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।।

पकड़ो गाड़ी हावड़ा या प्रताप या मरुधर,
चाहे दिल्ली होकर आओ राह तके है मरुथर।
माह फरवरी की ग्यारह को मिलना है दीवानों,
शमा जली है स्नेह मिलन की आ जाओ परवानों।।
जल्दी से अब टिकट करा लो हो न जाये देर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।।

पहली बार किशनपुर वाले भूल गए क्या वो पल,
एकडला के गन्नों का रस वो यमुना का कल-कल।
याद नहीं क्या प्रथम मिलन की नेह भरी वो बतिया,
जौ मकई की सोंधी रोटी वो अमरूद की बगिया।।
वाणी के उस प्रथम मंच से खूब दहाड़े शेर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।।

दूजी बार गए ददरा अब्दुल हमीद के गांव,
अबकी बार थी अमराई और उसकी ठंडी छाँव।
चटक धूप में सभी मगन थे नेह की चादर ताने,
ढोल मंजीरे से उल्लासित कजरी के दीवाने।।
उमड़ घुमड़ कर वही भाव फिर हमें रहा है टेर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।।

                                  ✍ डॉ पवन मिश्र

Saturday 13 January 2018

गीत- उत्तरायण हो रहे रवि को नमन (मकर संक्रांति विशेष)


शुभ रश्मियों का हो रहा है आगमन,
किस विधि से आज कर लूँ आचमन।
पुन्य वेला में निरखती ये धरा है,
उत्तरायण हो रहे रवि को नमन।।

प्राणियों में प्रेम का संचार हो,
बस परस्पर मेल का व्यवहार हो।
हम बढ़ें तुम भी बढ़ो यह भाव हो,
आचरण हो शुद्ध औ सद्भाव हो।।
अब नहीं टूटन रहे ना ही चुभन,
उत्तरायण हो रहे रवि को नमन।।

मैं अकिंचन राह दिखलाओ प्रभो,
मूढ़ मति हूँ ज्ञान भर जाओ प्रभो।
स्वार्थ का तम बढ़ रहा संसार में,
हर नाव देखो फंस गई मंझधार में।।
हे दिवाकर पाप का कर दो शमन,
उत्तरायण हो रहे रवि को नमन।।

                  ✍ डॉ पवन मिश्र

Thursday 11 January 2018

ग़ज़ल- सुनो जिस रोज मेरे इश्क का सूरज ये निकलेगा


सुनो जिस रोज मेरे इश्क़ का सूरज ये निकलेगा।
अरे वो संगदिल आकर मेरी बाहों में पिघलेगा।।

मेरे भोले से इस दिल को दिखाते ख्वाब हो कोरे।
बताओ बस उमीदों से भला कब तक ये बहलेगा।।

चमकना काम है उसका वो देगा नूर ही सबको।
अँधेरे की कहाँ हिम्मत मेरे जुगनू को निगलेगा।।

बहुत हल्ला हुआ यारों चलो अब जंग हम छेड़ें।
रगों में बंद ही बस कब तलक ये ज्वार उबलेगा।।

भले कितनी मुहब्बत से उसे अमृत पिलाओ तुम।
सपोला है तो काटेगा वो हरदम ज़ह्र उगलेगा।।

न जाओ मैकदे में छोड़कर मुझको मेरे साकी।
पवन ये लड़खड़ाया तो बता फिर कैसे सँभलेगा।।


                               ✍ *डॉ पवन मिश्र*

संगदिल= पत्थर दिल

Sunday 7 January 2018

ग़ज़ल- झूठे वादों से बहलाया जाता है


झूठे वादों से बहलाया जाता है।
और सियासत को चमकाया जाता है।।

मन्दिर-मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम को लेकर।
कितना झूठा पाठ पढ़ाया जाता है ?

जन्नत के कुछ ख़्वाब दिखा कर मोमिन को।
बस नफ़रत का ज़ह्र पिलाया जाता है।।

दिल के भीतर शक-ओ-शुब्हा की मिट्टी से।
दीवारों को सख़्त बनाया जाता है।।

आज सियासत में ऊंचाई पाने को।
जिंदा लोगों को दफ़नाया जाता है।।

गुल को ख़ौफ़ज़दा रखने की नीयत से।
वहशी काँटों को पनपाया जाता है।।

                   ✍ *डॉ पवन मिश्र*


मोमिन= मुस्लिम युवक

ग़ज़ल- ख़्वाब दिखा कर पास बुलाया जाता है


ख्वाब दिखा कर पास बुलाया जाता है।
फिर आशिक को खूब सताया जाता है।।

झूठे किस्से लैला मजनू के कहकर।
लोगों को कितना भरमाया जाता है।।

मैख़ाने में जाने वाले क्या जानें ?
आंखों से भी जाम पिलाया जाता है।।

जलने से पहले  परवाना यूं बोला।
देखो ऐसे इश्क़ निभाया जाता है।।

एक सुखनवर को देखा तब ये जाना।
टूटे दिल से भी तो गाया जाता है।।


                     ✍ *डॉ पवन मिश्र*