Wednesday 25 April 2018

ग़ज़ल- सियासत क्यों सिखाती है महज तकरार की बातें


कभी मंदिर कभी मस्ज़िद कभी प्रतिकार की बातें।
सियासत क्यों सिखाती है महज तकरार की बातें।।

कभी तकरार की बातें कभी इनकार की बातें।
अरे सँगदिल कभी तो टूट कर कह प्यार की बातें।।

नहीं लगता कहीं ये दिल नजारों में नहीं रंगत।
मुझे बस याद आती हैं मेरे दिलदार की बातें।।

कहूँ कुछ भी करूँ कुछ भी तुम्हें बस दाद देनी है।
यही फरमान आया है सुनो सरकार की बातें।।

वतन के वास्ते कर्तव्य अपने भूल बैठा है।
लिए झंडे फ़क़त करता है वो अधिकार की बातें।।

सियासतदां यहां मशगूल हैं बस ज़रपरस्ती में।
कहाँ फ़ुर्सत इन्हें जो सुन सकें लाचार की बातें।।

गरीबी भी मिटेगी अम्न भी अब मुल्क में होगा।
चुनावी साल है प्यारे सुनो सरकार की बातें।।

तेरी मीज़ान में ताकत नहीं जो तौल पाएगी।
मेरी ग़ज़लें बताएंगी मेरे किरदार की बातें।।

                                 ✍ *डॉ पवन मिश्र*

सँगदिल= पत्थर दिल
ज़रपरस्ती= धन का लोभ
मीज़ान= तराजू

Sunday 15 April 2018

दोहे- समसामयिक दोहे


बिलख रही माँ भारती, नेता गाते फाग।
सोन चिरइया जल रही, हरसूँ फैली आग।१।

बगिया में अब क्या बचा, जिस पर होवे नाज।
काँटों को पुचकारते, माली दिखते आज।२।

राजनीति में हो रहा, केर बेर का मेल।
धर्म जाति की ओट में, चले सियासी खेल।३।

कंगूरे इतरा रहे, करते लोग प्रणाम।
दफ़्न हुए जो नींव में, आज हुए गुमनाम।४।

जद में आएंगे सभी, क्यों बैठे अंजान।
धर्मयुद्ध है पार्थ ये, करो शस्त्र संधान।५।

                        
                            ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday 8 April 2018

ग़ज़ल- तेरी तस्वीर से बातें की हैं


तू न आया तेरी तस्वीर से बातें की हैं।
तीरगी में भी युँ तन्वीर से बातें की हैं।।

इस जमाने की निगाहों में गुनहगारी की।
मैंने जब भी मेरी उस हीर से बातें की हैं।।

अब तो ज़ानों पे मेरे सर को रखो, बात करो।
अब तलक तो तेरी तस्वीर से बातें की हैं।।

शिकव ए ग़ैर में मशगूल सभी हैं लेकिन।
क्या कभी अपनी ही तक़्सीर से बातें की हैं?

मौत का ख़ौफ़ भला उसको पवन क्या होगा?
जिसने ताउम्र ही शमशीर से बातें की हैं।।


                            ✍ *डॉ पवन मिश्र*
तीरगी= अंधेरा
तन्वीर= उजाला, नूर
ज़ानों= घुटना, गोद
शिकव ए ग़ैर= गैर की शिकायत
तक़्सीर= कमी, भूल

Sunday 1 April 2018

नवगीत- पुराने मित्र देखे


पुरानी एलबम में कुछ पुराने चित्र देखे।
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।।

यकायक दृश्य कुछ सम्मुख मेरे खिंचने लगे,
वो सूखे फूल बहते अश्रु से सिंचने लगे।
लगा जैसे किसी ने थामकर बोला मुझे,
अबे आ जा सुहाना कुछ दिखाता हूँ तुझे।।
दीवारें हॉस्टल की फांदकर मूवी को जाना,
पकड़ जाने पे झूठा सा कोई किस्सा सुनाना।
खुरचकर बेंच औ दीवार पे वो नाम लिखना,
हमेशा क्लास में पीछे की सीटों पे ही दिखना।।
जली रोटी को लेकर मेस में वो हल्ला मचाना,
जरा सी देर हो तो थालियां चम्मच बजाना।
वो हर छोटी बड़ी मुश्किल में सबका साथ आना,
परीक्षा के दिनों में रात भर पढ़ना पढ़ाना।।
न जाने कितने ही ऐसे सुहाने चित्र देखे,
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।।

मगर रोटी की अब जद्दोजहद में पड़ गए सारे,
छुड़ाकर हाथ फोटो फ्रेम में ही जड़ गए सारे।
समय की डोर से बांधे पखेरू उड़ गए सारे,
हवा जिस ओर की पाई उधर को मुड़ गए सारे।।
मगर क्या मित्रता कमतर हुई दूरी के बढ़ने से ?
पुरानी मूर्तियां धूमिल पड़ीं नवमूर्त गढ़ने से ?
नहीं दूरी मिटा सकती है इस अहसास को यारों,
न कोई भी डिगा सकता है इस विश्वास को यारों।।
समंदर के थपेड़ों से हमें लड़ना सिखाती है,
तमस की रात में अँगुली पकड़ रस्ता सुझाती है।
अरे ये मित्रता हर सांस के सँग याद आती है,
समय की कब्र में भी बैठकर हल्ला मचाती है।।
उसी अहसास में डूबे दिवाने मित्र देखे,
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।

पुरानी एलबम में कुछ पुराने चित्र देखे,
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।।

                           
                           ✍ डॉ पवन मिश्र