Sunday, 22 June 2025

ग़ज़ल- बैठा हूँ इंतज़ार में रस्ता दिखाई दे

बैठा हूँ इंतज़ार में रस्ता दिखाई दे
मेरे ख़ुदा के नूर का जलवा दिखाई दे

कब तक इधर-उधर की तू बातें बनाएगा
कुछ ऐसा कह कि जिससे तू अपना दिखाई दे

हाथों में मेरा हाथ ले कांधे पे मेरा सर
कोई तो हमनवा मुझे ऐसा दिखाई दे

दो चार पल खुशी के बिता उसके साथ भी
जो शख़्स आसपास में तन्हा दिखाई दे

जबसे हुआ है इश्क़ कसम खा के कह रहा
मुझको भी इश्क आग का दरिया दिखाई दे

तुम साथ हो पवन के तो कट जाएगा सफ़र
वरना तो सब्ज़ बाग भी सहरा दिखाई दे

✍️ डॉ पवन मिश्र