Sunday, 5 October 2025

स्नेह सम्मिलन- ७

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, मार्ग रहा है हेर।

राम-लखन का रस्ता देखें, ज्यों शबरी के बेर।।

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, मार्ग रहा है हेर।।


एक वर्ष के बाद आई है, नेह-मिलन की वेला।

संगम तट पर खूब सजेगा वाणीजन का मेला।।

लोकगीत की धुन पर सारे नाचेंगे-झूमेंगे।

बाटी-चोखा, खीर-कचौड़ी स्वाद सभी चक्खेंगे।।

जल्दी से अब टिकट करा लो हो न जाये देर।

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, मार्ग रहा है हेर।।

पहली बार किशनपुर वाले भूल गए क्या वो पल,

एकडला के गन्नों का रस वो यमुना का कल-कल।

याद नहीं क्या प्रथम मिलन की नेह भरी वो बतिया,

जौ मकई की सोंधी रोटी वो अमरूद की बगिया।।

वाणी के उस प्रथम मंच से खूब दहाड़े शेर,

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, मार्ग रहा है हेर।।

दूजी बार गए ददरा अब्दुल हमीद के गांव,

अबकी बार थी अमराई और उसकी ठंडी छाँव।

चटक धूप में सभी मगन थे नेह की चादर ताने,

ढोल मंजीरे से उल्लासित कजरी के दीवाने।।

उमड़ घुमड़ कर वही भाव फिर हमें रहा है टेर,

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, मार्ग रहा है हेर।।

उसके बाद सभी वाणीजन पहुंचे थे इक मरुथर,

कुछ ने पकड़ी ट्रेन हावड़ा कुछ ने थामी मरुधर।

ग्राम उदासर ने अद्भुत सत्कार किया था सबका,

राजस्थानी भोजन था और था वाणी का तबका।।

अद्भुत मंच सजा था उस दिन नगर था बीकानेर,

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, मार्ग रहा है हेर।।

याद करो वो चौथी बारी, गंगा तट का रंग

बाबा भोले की नगरी में हुआ था जब हुड़दंग।

कतकी मेला के पहले ही मिले थे जब दीवाने,

शमा जलाने स्नेह मिलन की आए थे परवाने।।

ढोल-मँजीरा हरमोनियम को, बैठे थे सब घेर।

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, मार्ग रहा है हेर।।

पंचम न्यौता हरियाणा से, मिला था वानीजन को।

शहर भिवानी में जाकर ही, तृप्ति मिली थी मन को।।

लोकगीत की धुन पर सारे नाचे थे झूमे थे।

ज्वार बाजरा ग्वार फली हर थाली में घूमे थे।।

छोटी काशी के कवियों सँग वाणी के थे शेर।

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, मार्ग रहा है हेर।।

छठवां मौका सबने पाया, चित्रकूट नगरी में।

स्नेह समर्पण मानो जैसे, भरा था हर गगरी में।।

गीतों की रसवर्षा में जब भीझे थे वानीजन।

साथ घूमने की मस्ती में, वाणी का अपनापन।।

गीत ग़ज़ल की शुभ संध्या में डूबे शब्द-कुबेर।

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, मार्ग रहा है हेर।।

राम-लखन का रस्ता देखें, ज्यों शबरी के बेर।।


                                  ✍ डॉ पवन मिश्

Monday, 15 September 2025

ग़ज़ल- वो हमारे स्नेह का अपमान करते रह गए

वो हमारे स्नेह का अपमान करते रह गए
स्वार्थवश सम्बंध का नुकसान करते रह गए

आपने सम्बंध के अनुबंध को समझा नहीं
एक हम जो हर कहे का मान करते रह गए

भूमि धन सबकुछ दिया हमने पड़ोसी मानकर
वो हमारा किंतु बस नुकसान करते रह गए

आपको सत्ता मिली थी राष्ट्र के उत्थान हित
आप केवल स्वयं का उत्थान करते रह गए

लोकस्वर भरता रहा बस राजपथ पर सिसकियां
और चारण राज्य का गुणगान करते रह गए

वंचितों की सुध कभी सत्ता को होगी क्या पवन
जो महज लाइन में लग मतदान करते रह गए


✍️ डॉ पवन मिश्र

Sunday, 17 August 2025

ग़ज़ल- अपने बच्चों के लिये दुनिया सजा कर जाऊंगा

अपने बच्चों के लिये दुनिया सजा कर जाऊंगा
यह ज़मीं शादाब हो खुद को खपा कर जाऊंगा

ज़िंदगी की दौड़ में चलते ही रहना है मुझे
बाप हूँ मैं फ़र्ज़ अपने सब निभा कर जाऊंगा

बाद मेरे ये ज़माना याद मुझको रख सके
कम से कम इक शेर ऐसा मैं सुना कर जाऊंगा

लोग कहते चांद आता है तुम्हारे बाम पर
आज उसकी चांदनी में मैं नहा कर जाऊंगा

इश्क़ गर कोई ख़ता है तो अकेले तुम नहीं
एक दिन मैं भी कोई ऐसी ख़ता कर जाऊंगा

ज़िंदगी में आपसे बढ़कर नहीं है ख़ास कुछ
जाते जाते आपको सबकुछ बता कर जाऊंगा

✍️ डॉ पवन मिश्र

Sunday, 20 July 2025

ग़ज़ल- फिजाओं में गुलों के रंग-ओ-बू में

फ़िज़ाओं में गुलों के रंग-ओ-बू में
उसे ही ढूंढता हूँ कू-ब-कू में

जिसे परवा नहीं मेरी तनिक भी
वही शामिल है मेरी आरजू में

छुड़ाकर हाथ उसने राह बदली
मैं तो अब भी फँसा हूँ गू-मगू में

जो तुम हो तो बहारें रक्स करतीं
नहीं तो बू नहीं है मुश्कबू में

सियासतदां अभी पुरनींद में हैं
कसर बाकी है शायद हाव-हू में

वतन की साख पर जब बात आए
उबाल आना जरूरी है लहू में

✍️ डॉ पवन मिश्र

कू-ब-कू= इस गली-उस गली, सर्वत्र
गू-मगू= असमंजस
रक्स= नृत्य
मुश्कबू= कस्तूरी की गंध
हाव-हू= शोर-शराबा

Sunday, 22 June 2025

ग़ज़ल- बैठा हूँ इंतज़ार में रस्ता दिखाई दे

बैठा हूँ इंतज़ार में रस्ता दिखाई दे
मेरे ख़ुदा के नूर का जलवा दिखाई दे

कब तक इधर-उधर की तू बातें बनाएगा
कुछ ऐसा कह कि जिससे तू अपना दिखाई दे

हाथों में मेरा हाथ ले कांधे पे मेरा सर
कोई तो हमनवा मुझे ऐसा दिखाई दे

दो चार पल खुशी के बिता उसके साथ भी
जो शख़्स आसपास में तन्हा दिखाई दे

जबसे हुआ है इश्क़ कसम खा के कह रहा
मुझको भी इश्क आग का दरिया दिखाई दे

तुम साथ हो पवन के तो कट जाएगा सफ़र
वरना तो सब्ज़ बाग भी सहरा दिखाई दे

✍️ डॉ पवन मिश्र

Saturday, 31 May 2025

संस्मरण- समर कैम्प, बच्चों का उत्साह और मैं...

समर कैम्प, बच्चों का उत्साह और मैं...

                     पिछले कई दिनों से मन हो रहा था कि बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये परिषदीय विद्यालयों में चल रहे समर कैम्प का हिस्सा बना जाए। प्रतिदिन व्हाट्सअप के जरिये प्राप्त होने वाले चित्र और वीडियोज से इसके प्रति मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी। प्राप्त हो रहे वीडियोज में बच्चों का अनुशासित होकर योग-व्यायाम करना हो या किसी गतिविधि के पश्चात उन्मुक्त होकर उनका नाचना-कूदना, मिट्टी में सने हाथों से कल्पनाओं को मूर्त रूप देना हो या कमर पर टिके हूलाहूप को तेजी से गोल-गोल घुमाना....सब कुछ करीब से महसूस करना चाहता था, देखना चाहता था बस्ते के बोझ के बिना बच्चों की उड़ान को।

  इन्हीं आकर्षणों के वशीभूत होकर आज निश्चित किया कि कुछ विद्यालयों के समर कैम्प का हिस्सा बनना है और प्रातः 6 बजे के आसपास निकल पड़ा घर से। सड़क पर लगभग सन्नाटा ही था, कार तेजी से चल पड़ी कानपुर जनपद के सरसौल विकास खण्ड की तरफ। बीस मिनट बाद ही विकास खण्ड की सीमा में प्रवेश किया तब विचार आया कि किस विद्यालय से आरंभ करनी है आज की यात्रा ? किन-किन विद्यालयों में जाना है यह तो तय ही नहीं किया अभी? व्हाट्सअप समूह में आने वाले चित्र और वीडियोज के साथ उनके विद्यालयों के नाम धीरे-धीरे मस्तिष्क में उभरने लगे। विचारों की चक्की तेजी से चलने लगी और कार तो अपनी गति से चल ही रही थी। थोड़ी ही देर में स्वयं को विकास खण्ड मुख्यालय के सामने पाया। तब तक मन ही मन निश्चित भी कर चुका था कि उसी स्कूल से आज का दिवस प्रारम्भ करना है जहाँ से नित्य नए-नए वीडियोज आते हैं। जहां के प्रधानाध्यापक, समर कैम्प में ऐच्छिक उपस्थिति के विभागीय निर्देश होने के बाद भी ससमय विद्यालय आते हैं। जिनकी जीवंतता वीडियोज में देखते ही बनती है। जहां के वीडियोज में दिखती है शिक्षा मित्रों के सहयोग से होने वाली दैनिक गतिविधियों में बच्चों की गहरी भागीदारी, उनका उल्लास और उनका उत्साह। थोड़ी ही देर में मां गंगा के कटरी क्षेत्र में स्थित विकास खण्ड के एक दूरस्थ विद्यालय के सामने कार रुकी। सम्मुख था, कानपुर के सरसौल विकास खण्ड का पीएम श्री कम्पोजिट विद्यालय दिबियापुर।

 घड़ी पर निगाह पड़ी तो 7.10 हो चुके थे। विद्यालय की साफ-सफाई हो चुकी थी। बच्चे प्रार्थना के लिये पंक्तिबद्ध हो रहे थे। सभी से औपचारिक अभिवादन बाद मैं भी उस प्रार्थना सभा का हिस्सा बना, जिसमें विद्यालय के इंचार्ज प्रधानाध्यापक के साथ, उनके सहयोगी शिक्षा मित्र, रसोइए और बच्चे थे। प्रार्थना के बाद इंचार्ज प्रधानाध्यापक आशीष सिंह जी ने बच्चों को योग-व्यायाम आदि कराए। उसी बीच मैंने देखा कि विद्यालय के शिक्षा मित्र कुछ सजावटी सामान, ग्रीन बोर्ड आदि के साथ विद्यालय के एक हिस्से को सजाने में जुटे हैं। जानकारी मिली कि चूंकि आज 31 मई है, अतः विद्यालय में महारानी अहिल्याबाई होल्कर की जंयती मनाई जानी है। जब तक बच्चे व्यायाम कर रहे थे इधर शिक्षा मित्रद्वय ने मंच जैसा एक स्थान सज्जित कर दिया, ग्रीन बोर्ड पर कार्यक्रम का विवरण लिखा गया था, प्रतीकात्मक रूप से बच्चों के घोड़े वाले खिलौने, बेंच, कुर्सी आदि की सहायता से एक रथ जैसा सेटअप भी तैयार किया गया था। व्यायाम सत्र सम्पन्न हुआ। थोड़ी ही देर बाद एक कक्ष से 'ॐ नमः शिवाय' का जाप आना प्रारम्भ हुआ और देखा कि विद्यालय की एक बालिका वीरांगना अहिल्याबाई होल्कर का रूप धरे, हाथों में शिवलिंग पकड़े, जाप करती चली आ रही है। उसके साथ बच्चों की टोली, 'महारानी की जय हो' के नारे लगाते हुए मंच की तरफ बढ़ने लगी। यह सब मेरे लिये तनिक आश्चर्यचकित करने वाला रहा क्योंकि मैं इस तरह के किसी कार्यक्रम की कल्पना नहीं कर रहा था। मैं अचंभित सा जड़वत हो इस गतिविधि को निहारे जा रहा था। धीरे-धीरे बच्चों के उत्साह, महारानी बनी बालिका के चेहरे के तेज और 'ॐ नमः शिवाय' के निरंतर हो रहे जाप ने मुझे भी कार्यक्रम के रंग में पूरी तरह रँग दिया। अहिल्याबाई बनी वह बालिका रथ पर आसीन हुई जिसकी लगाम एक सारथी बने बालक ने थाम रखी थी। मैंने और आशीष सिंह जी ने बच्चों को महारानी अहिल्याबाई होल्कर के विषय में जानकारी दी, किस्से सुनाए और बच्चों ने आनन्दित मन से सब सुना। 

इसके बाद बच्चों को बिस्किट का वितरण किया गया। अब बच्चे तैयार थे आज की तीसरी गतिविधि के लिये, 'रीडिंग कैम्पेन'। विद्यालय के सुव्यवस्थित पुस्तकालय में बच्चे सलीके से बैठे। विद्यालय में पुस्तकों का समृद्ध संग्रह था। बच्चों ने अपनी-अपनी मनपसंद पुस्तकों को लिया और पूरे मनोयोग से पढ़ने लगे। सामने पुस्तकालय था, पुस्तकें थी, बच्चे पढ़ रहे थे तो मैं भी भीतर के शिक्षक को रोक नहीं पाया और पुस्तकालय में चला गया। पुस्तक-पठन को लेकर बच्चों से खूब चर्चा हुई। उन्हें एपीजे अब्दुल कलाम जी के जीवन का पुस्तक पढ़ने से संदर्भित एक किस्सा भी सुनाया। बच्चों सँग अत्यंत सहज संवाद स्थापित हो चुका था और पता ही नहीं चला कि कब दस बज गए। वैसे तो मेरी योजना थी दो-तीन विद्यालयों के समर कैम्प का हिस्सा बनने की। लेकिन दिबियापुर विद्यालय के बच्चों के उत्साह, उमंग, आनन्द और जीवंत भागीदारी ने समय का पता ही न चलने दिया। अंत में बच्चे पुनः अनुशासित रूप से पंक्तिबद्ध होकर राष्ट्रगान के लिये एकत्रित हुए। एक स्वर में राष्ट्रगान हुआ तत्पश्चात बॉय सर, बॉय सर की आवाज लगाते बच्चे अपने-अपने घरों को जाने लगे। विद्यालय स्टाफ से औपचारिक अभिवादन के बाद मैंने भी कार स्टार्ट की और वापसी की राह पकड़ी। कानों में बॉय सर, बॉय सर की आवाज मद्धिम पड़ने लगी थी, गूंज थी तो बस आज बच्चों सँग हुए संवाद की, उनके उत्साह की, उनके उमंग की और शायद यही इस समर कैम्प की सफलता के मापदंड भी हैं। विषम परिस्थितियों में होने वाले इन समर कैम्प की सफलता और असफलता को लेकर भिन्न-भिन्न विचार हो सकते हैं लेकिन इतना तो तय है कि जब गंगा कटरी जैसे क्षेत्र में अवस्थित दिबियापुर जैसे दूरस्थ विद्यालय में समर कैम्प का इतनी सफलता से संचालन किया जा सकता है तो स्वप्रेरणा, दृढ़ इच्छाशक्ति और स्टाफ के आपसी समन्वय से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। अपने ही लिखे एक शेर से इस लेख को समाप्त कर रहा हूँ। 


   "करो कोशिश तो पत्थर टूटता है।

     मेरी मानो तो अक्सर टूटता है।।"


✍️ डॉ पवन मिश्र

     (एआरपी- विज्ञान)

     सरसौल, कानपुर नगर

Sunday, 27 April 2025

ग़ज़ल- दिये में तेल जब भरपूर होगा

दिये में तेल जब भरपूर होगा
निराशा का अँधेरा दूर होगा

हमेशा स्याह रातें ही न होंगी
कभी तो चांद ये पुरनूर होगा

हमारी बात सुन लो बाद उसके
हमें हर फैसला मंजूर होगा

रहेगा वो मेरे शेरों में हरदम
मेरी बाहों से माना दूर होगा

मिला है ज़ख्म तो जल्दी दवा दो
वगरना एक दिन नासूर होगा

सपोलों को मिलेगी सीख तब ही
यक़ीनन वार जब भरपूर होगा

ये जो बिखरा पड़ा है सरहदों पर
किसी की मांग का सिंदूर होगा

✍️ डॉ पवन मिश्र