Monday 10 June 2019

लावणी छंद- गुड़िया (अलीगढ़ की घटना पर आधारित)

(अलीगढ़ के टप्पल से 30 मई 2019 को तीन वर्ष की बच्ची के अपहरण बाद हत्या और शरीर के क्षत विक्षत किये जाने की हृदयविदारक घटना के संदर्भ में)

तीन वर्ष की प्यारी गुड़िया, ठुमक ठुमक कर चलती थी।
मम्मी पापा की आंखों में, प्रखर ज्योति सी जलती थी।।
घर आंगन महकाती थी वो, नाजों से वो पलती थी।
लेकिन तीन वर्ष की गुड़िया, शैतानों को खलती थी।१।

नन्ही बुलबुल फुदक रही थी, आंगन में गलियारे में।
क्रूर बाज ने घात लगाकर, खींच लिया अँधियारे में।।
लील गई कड़वी निर्धनता, मीठी शक्कर की पुड़िया।
दस हजार की ख़ातिर देखो, स्वाहा लाखों की गुड़िया।२।

फूलों सी वो नाजुक बिटिया, कूड़ेघर में पड़ी रही।
वहशी हिंसक शैतानों के, साथ अंत तक अड़ी रही।।
और दरिंदे ने फिर उसको, गला घोंट कर मार दिया।
जाहिल ज़ाहिद मुझे बता तू, क्यूं ये अत्याचार किया ३?

रेत रहे थे तुम गर्दन जब, तुमने हाथ उखाड़ा था।
सच बतलाओ क्या अंतस ने, तुझको नही पुकारा था ?
कितना पत्थर दिल है तेरा, जो अश्कों से नहीं बहा ?
बोलो अंत समय क्या उसने, तुमको चाचा नहीं कहा ४?

दोष नहीं है मात्र तुम्हारा, जो तुमने यह कर्म किया।
दूषित है तालीम तुम्हारी, जिसने ऐसा मर्म दिया।।
दोषी है वो कोख कि जिसने, नरपिशाच का भरण किया।
दोष वीर्य की उन बूंदों का, जिसने तुमको जन्म दिया।५।

बचपन से ही जीवों के प्रति, निर्ममता का पाठ पढ़ा।
बकरे की फिर गर्दन रेती, सँग हिंसा के पला बढ़ा।।
भोजन में भी रक्त समाहित, गर्दन पैरों के टुकड़े।
तो कैसे महसूस करेगा, आंखों से बहते दुखड़े।६।

दूषित करने गांव-शहर को, छोड़ कबीले तुम आए।
मगर कबीलाई संस्कृति से, खुद को मुक्त न कर पाए।।
दोष तुम्हारे संस्कारों का, जिसको पा तुम पले बढ़े।
लानत उस समाज पर जिसने, तेरे जैसे दंश गढ़े।७।

इंसां कैसे कह दूं ये तो, गिद्धों से भी बदतर हैं।
इनके अपराधों के बदले, महज सलाखें कमतर हैं।।
इन हत्यारों के सँग कोई, नहीं रियायत की जाए।
चौराहे पे सरेआम ही, इनको फांसी दी जाए।८।
     
                                         ✍️ डॉ पवन मिश्र