Saturday 26 March 2016

ग़ज़ल- कुछ बड़े क्या हो गए


कुछ बड़े क्या हो गए प्रतिकार वो करने लगे।
रोटियाँ देकर के अब उपकार वो करने लगे।।

धीरे धीरे ही सही स्वीकार वो करने लगे।
दिल हमारा था मगर अधिकार वो करने लगे।।

आप से ही जिंदगी की सारी खुशियां है जुड़ीं।
जो कहा है आपने सरकार वो करने लगे।।

थे गरीबों के मसीहा सब चुनावी दौर में।
मिल गया जो तख़्त तो इन्कार वो करने लगे।।

भीड़ का विज्ञान भी अब अर्थ पर ही टिक गया।
आँख पे पट्टी धरे जयकार वो करने लगे।।

पद प्रतिष्ठा के लिये अब जी हुजूरी आम है।
क्या कहें जब मूर्ख का सत्कार वो करने लगे।।

जो अभावों में पले हाथों में था सामर्थ्य पर।
स्वप्न जीवन के सभी साकार वो करने लगे।।

                                        - डॉ पवन मिश्र

Tuesday 22 March 2016

कुण्डलिया- होली


इस होली में आपको, मिले प्रेम का रंग।
जीवन के हर रंग में, खुशियों का हो संग।।
खुशियों का हो संग, न कोई सपना टूटे।
हिय में होवे प्रेम, न कोई अपना रूठे।।
कहे पवन दिन रात, दवा है मीठी बोली।
कर भेदों का दाह, रहो मिलके इस होली।।

होली में हर रंग से, रँग दूँ तेरे गात।
तू राधा सी गोरिया, मैं कान्हा की जात।।
मैं कान्हा की जात, प्रेममय करके हर रँग।
आज गुलाबी लाल, करूँगा तेरा अँग अँग।।
सुनो पवन की बात, नहीं ये हँसी ठिठोली।
तन मन दूँ सब रंग, मनाऊँ ऐसी होली।।

                              -डॉ पवन मिश्र

            

Sunday 20 March 2016

ग़ज़ल- आज आएंगे हमरे दुआरे पिया


आज आएंगे हमरे दुआरे पिया।
रंग बरसेंगे चाहत के सारे पिया।।

हो गयी हूँ गुलाबी यही सोच के।
रंग का काम क्या अब बता रे पिया।।

याद में आँसुओं ने जलाया बहुत।
प्यास तन मन की आके बुझा रे पिया।।

इस विरह की अगन में तो तुम भी जले।
सूख के हो गए हो छुआरे पिया।।

जा रहा था बिना रंग फागुन मेरा।
रंग लेकर हैं आये हमारे पिया।।

होश चोली चुनर का किसे अब यहाँ।
डूबना चाहती हूँ डुबा रे पिया।।

बाद होरी के भी जो न छूटे कभी।
रंग ऐसा रँगो अब पियारे पिया।।

रंग में अपने ही रँग दिया है मुझे।
लाखों में एक मेरे दुलारे पिया।।

                    -डॉ पवन मिश्र





Friday 11 March 2016

ग़ज़ल- जाने क्या बात हुई


जाने क्या बात हुई जो न पुकारा उसने।
क्या खता थी कि किया मुझसे किनारा उसने।।

मेरे साये से भी कर ली है बला की दूरी।
वक्त इस कदर अकेले ही गुजारा उसने।।

ये सवालात मेरे हैं कि तग़ाफ़ुल उसका।
क्या हुआ जो कभी देखा न दुबारा उसने।।

चाहता था कि मिले साथ हमेशा उसका।
पर मेरा साथ कई बार नकारा उसने।।

ज़िन्दगी उनके बिना है मेरी बेताब बहुत।
काश जाने का किया होता इशारा उसने।।

लोग अक्सर चले आते हैं दिलासा लेकर।
जब से छीना मेरे जीने का सहारा उसने।।

ये ज़माने का सितम था या कि मर्ज़ी उसकी।
जो यूँ मझधार में क़श्ती से उतारा उसने।।

बाद उसके न दिखी हमको बहारें कोई।
मेरी आँखों को दिया मस्ख़ नज़ारा उसने।।

                              -डॉ पवन मिश्र
मस्ख़= विकृत
तग़ाफ़ुल= उपेक्षा

Tuesday 8 March 2016

ग़ज़ल- बड़ी बेरंग महफ़िल है


बड़ी बेरंग महफ़िल है जरा सी रोशनी भर दो।
तरसती शाम है आकर इसे तुम खुशनुमा कर दो।।

लगा कर आग यूँ दिल में चले जाते हो तड़पा के।
सुलगते ज़िस्म पर थोड़ी फुहारें हुस्न की कर दो।।

बहुत बेचैन रहता हूँ न आती नींद रातों में।
ज़रा मौजूदगी की तुम यहाँ तासीर ही धर दो।।

डसे तन्हाइयां हमको है आलम बेक़रारी का।
बहुत गहरा अँधेरा है तेरे दीदार का फ़र दो।।

नहीं सुनता दीवाना ये तेरे ही ख्वाब में रहता।
हसीं ख्वाबों के जैसी ही मेरी अब जीस्त भी कर दो।।

समन्दर के थपेड़ो सा है मंजर दिल के अंदर का।
ये क़श्ती डूबने को है ज़रा सा आसरा भर दो।।

तुझे भी तो सताती है शबे तन्हाईयां अक्सर।
सुकूँ मिल जायेगा तुमको मेरे ज़ानू पे सर धर दो।।

तेरी आँखों सा गहरा हो तेरी धड़कन सी हो मौजे।
लिए क़श्ती खड़ा हूँ मैं मुझे ऐसा समन्दर दो।।

इसी उम्मीद से आया तेरे दर पे मेरे मौला।
पवन की आरज़ू बस ये कि उनकी दीद का ज़र दो।।

                                       -डॉ पवन मिश्र

फ़र= चमक, प्रकाश          ज़ीस्त= ज़िन्दगी
ज़ानू= गोद                      ज़र= दौलत, सम्पत्ति  

Saturday 5 March 2016

ग़ज़ल- हाले दिल वो ही नहीं सुनते


हाले दिल वो ही नहीं सुनते तो बोलो क्या करें।
अश्क़ आँखों में नहीं रुकते तो बोलो क्या करें।।

बात दिल की वो नहीं कहते तो बोलो क्या करें।
फूल अब लब से नहीं झरते तो बोलो क्या करें।।

वक्त की तासीर है या हम बुरे ठहरे यहाँ।
लोग अब खुल कर नहीं मिलते तो बोलो क्या करें।।

जिनकी ख़ातिर हो गयी मेरी सभी से दुश्मनी।
वो ज़माने का यकीं करते तो बोलो क्या करें।।

सेंकनी थी रोटियाँ तो बस्तियां जलने लगी।
वो खुदा से भी नहीं डरते तो बोलो क्या करें।।

वोट की ख़ातिर लड़ाते आदमी से आदमी।
चाल अक्सर वो यही चलते तो बोलो क्या करें।।

ओढ़ कर चोला जिहादी भूल कर अम्नो वफ़ा।
मुल्क़ से अब वो दग़ा करते तो बोलो क्या करें।।

                                     -डॉ पवन मिश्र

Friday 4 March 2016

ग़ज़ल- क्या कहूँ मेरे दिल में


क्या कहूँ मेरे दिल में छुपा कौन है।
पलकों की कोर पे ये रुका कौन है।।

इश्क में नूर बसता खुदाया का है।
इश्क से इस ज़मी पे जुदा कौन है।।

शाम बेरंग थी रंग किसने भरा।
गुल के जैसे महकता हुआ कौन है।।

मैं उसी मोड़ पर आज भी मुंतजिर।
पूछ लो आईने से गया कौन है।।

माना हमसे तुझे अब मोहब्बत नहीं।
फिर तुझे हिचकियाँ दे रहा कौन है।।

सारे इल्ज़ाम जब कर लिये अपने सर।
अब पवन क्या कहे बेवफा कौन है।।

                        -डॉ पवन मिश्र

मुंतजिर= प्रतीक्षारत





















Tuesday 1 March 2016

ग़ज़ल-उसे मुझसे यही शिकवा गिला है


उसे मुझसे यही शिकवा गिला है।
बताता क्यों नहीं दिल जो दुखा है।।

तुम्हे ही जब नहीं कुछ भी पता है।
किसी को क्या बताऊँ क्या हुआ है।।

मेरे आँखों तले कुछ ख्वाब पलते।
दिखाऊँ कैसे जो मुझको दिखा है।।

बहुत बेचैन कर दी जीस्त उसने।
दिखा के आइना कैसा गया है।।

लड़ा के आदमी को आदमी से।
कहे खुद को बड़ा वो रहनुमा है।।

ख़ुशी घर में ले आया आज चूल्हा।
कई शब बीतने पर ये जला है।।

बराहे रास्त आओ पास मेरे।
बताओ तो ज़रा क्या माजरा है।।

छिपा के अश्क़ आँखों में हँसे वो।
पवन जैसा दीवाना लग रहा है।।

                     -डॉ पवन मिश्र

जीस्त= जिंदगी
बराहे रास्त= सीधे तौर पर, बिना किसी को बीच में डाले हुए