Monday 30 November 2015

ग़ज़ल- क्यों यहां बचपन बिलखता जा रहा है


क्यों यहां बचपन बिलखता जा रहा है।
क्या हुआ जो वो सिसकता जा रहा है।।

बाँध लेना चाहता हूँ मुठ्ठियों में।
रेत जैसा जो फिसलता जा रहा है।।

रोक पाना अब उसे मुमकिन नहीं है।
आँच में मेरी पिघलता जा रहा है।।

शब्द भी अब तो नहीं हैं पास मेरे।
रूप तेरा यूँ निखरता जा रहा है।।

थाम लेना चाहता हूँ हाथ फिर से।
जानता हूँ वो बिखरता जा रहा है।।

                      -डॉ पवन मिश्र

Saturday 28 November 2015

ग़ज़ल- इश्तहारों की चमक में खो गयी है


इश्तहारों की चमक में खो गयी है।
ज़िन्दगी अख़बार सी अब हो गयी है।।

रंग खादी का चढ़ेगा खूब अब तो।
आदमीयत छोड़ जो उनको गयी है।।

ये तमाशा और भी होगा जवाँ अब
श्वान के पाले में हड्डी जो गयी है।।

मैं ही क्या, अब आसमां भी है परेशां।
चाँद भी गुमसुम है जबसे वो गयी है।।

अब तो लगता है मिलेंगी राहतें कुछ।
चाँदनी कल ज़ख्म मेरे धो गयी है।।

दिल की बस्ती में बड़ी रानाइयां हैं।
रोशनी की फ़स्ल गोया बो गयी है।।

                      -डॉ पवन मिश्र
रानाइयां= चमक,    गोया= मानो

Tuesday 10 November 2015

अबकी ऐसी हो दीवाली


दीपक ऐसा जो तम हर ले।
अंतस को भी जगमग कर दे।।
हर मुखड़े पे दमके लाली।
अबकी ऐसी हो दीवाली।।

रंगबिरंगी फुलझड़ियों सी।
खुशियाँ नाचे जब चरखी सी।।
रौशन हो सब राहें काली।
अबकी ऐसी हो दीवाली।।

रसगुल्लों से मीठे रिश्ते।
प्रेम समर्पण जिनमे बसते।।
शोभित पुष्पों से हर डाली।
अबकी ऐसी हो दीवाली।।

देश मेरा ख को भी छू ले।
उन्नति के पथ पर ही हो ले।।
विश्व गुरु की छटा निराली।
अबकी ऐसी हो दीवाली।।

              -डॉ पवन मिश्र
ख= आकाश

Monday 9 November 2015

दुर्मिल सवैया- हर बार हमी कहते तुमसे


हर बार हमी कहते तुमसे।
कुछ तो तुम भी दिन रात कहो।।

प्रिय मान सको कहना यदि तो।
निज अश्रु त्यजो अभिमान करो।।

यह जीवन प्रेम समर्पण है।
बस प्रीत क रीत निभाय चलो।।

इस जीवन का सपना तुम ही।
कवि मैं हमरी कविता तुम हो।।

               -डॉ पवन मिश्र

दुर्मिल सवैया-112 मात्राओं की आठ आवृत्ति

Sunday 8 November 2015

ग़ज़ल- ऐ खुदा अहसान तेरा


ऐ खुदा अहसान तेरा मानता हूँ।
ये खियाबां हो इरम मैं चाहता हूँ।।

दफ़्न कर दो सारे शिकवे दरमियां के।
सिलसिला बातों का फिर से मांगता हूँ।।

कोरे कागज़ पे लिखा हर भाव उसने।
उसकी आँखों की ही भाषा बांचता हूँ।।

इश्क का दरिया उफनता जा रहा है।
शौक कुछ ऐसे ही तो मैं पालता हूँ।।

दौर है मुश्किल मगर थोड़ा सँभलना।
इस अदावत की वजह मैं जानता हूँ।।

हाथ में झंडे लिये काफ़िर खड़े हैं।
भीड़ की सच्चाई मैं पहचानता हूँ।।

कुछ नहीं है और ख्वाहिश अब पवन की।
जेब खाली करके खुशियाँ बांटता हूँ।।

                        -डॉ पवन मिश्र

खियाबां= बाग़, इरम= जन्नत

Thursday 5 November 2015

ग़ज़ल- मेरे दिल को तो थोड़ा चहक जाने दो


मेरे दिल को तो थोड़ा चहक जाने दो।
यारा हमको भी थोड़ा महक जाने दो।।

कब तलक ये नज़र तरसे दीदार को।
रोको मत रुख़ से पर्दा सरक जाने दो।।

मैकदे में कहाँ साकी तुमसा कोई।
आँखों के जाम थोड़ा छलक जाने दो।।

तेरी चाहत के मारे चले आये हैं।
अपनी बाँहों में हमको बहक जाने दो।।

जिनकी वजहों से हैं तंग आँगन मेरे।
इन दीवारों को थोड़ा दरक जाने दो।।

                   -डॉ पवन मिश्र

Tuesday 3 November 2015

ताटंक छन्द- शांति पाठ की बात अनर्गल



शांति पाठ की बात अनर्गल, समय यही प्रतिकारों का।
शीश कलम कर के ले आओ, धरती के गद्दारों का।।
भूल गए इतिहास पड़ोसी, भान नहीं है हारों का।
कूटनीति को त्याग समय है, हर हर के जयकारों का।।

रक्त भरे माँ के आँचल को, पुत्र न अब सह पायेगा।
सीने में धधक रही ज्वाला, शान्त नही रह पायेगा।।
बहुत हो गया छद्म वार अब, शत्रु न कुछ कह पायेगा।
अपने दूषित कर्मों का फल, निश्चित ही वह पायेगा।।

हो जाने दो घमासान अब, रणभेरी बज जाने दो।
अस्त्र शस्त्र तैयार धरे हैं, वीरों को सज जाने दो।।
फ़ौज खड़ी है बकरों की तो, गरज़ सिंह को जाने दो।
स्वांग रचाता पौरुष का जो, उसको तो लज जाने दो।।

अपनी हर कुत्सित करनी पे, उसको अब पछताना है।
बहुत दे चुके क्षमादान अब, रौद्र रूप दिखलाना है।।
त्याग कृष्ण की वंशी को अब, चक्र सुदर्शन लाना है।
मानचित्र में पाक न होगा, अबकी हमने ठाना है।।


                                          -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 16 और 14 मात्राओं पर यति के साथ अंत में तीन गुरुओं की अनिवार्यता

Monday 2 November 2015

पञ्चचामर छन्द- अजीब सी हवा चली


अजीब सी हवा चली,
समाज छिन्न भिन्न है।

पुकार सृष्टि की सुनो,
दिखे कि तू अभिन्न है।

न चाँद है न चांदनी,
चकोर तो विभिन्न हैं।

प्रभो करो कृपा सदा,
सभी मनुष्य खिन्न हैं।

        -डॉ पवन मिश्र

चार चार पर यति समेत लघु गुरु की आठ आवृत्ति