Tuesday 8 September 2020

ग़ज़ल- तेरा चहरा कमाल है साक़ी

 

तेरा चहरा कमाल है साक़ी

दूधिया इक हिलाल है साक़ी


एक तुझसे सवाल है साक़ी

दिल में कैसा मलाल है साक़ी


गर नशे का सबब ये मय है तो

फिर तिरा क्या कमाल है साक़ी


है सभी को ख़याल-ए-मैनोशी

मुझको तेरा ख़याल है साक़ी


चांद तारे चराग और जुगनू

सबमें तेरा जमाल है साक़ी


अपने दिल की कहूँ तुझे मैं क्या

तेरे जैसा ही हाल है साक़ी


रोज इक दर्द है नया मिलता

दर्द का ही ये साल है साक़ी


अब तो आकर सुकून दे जाओ

मेरा जीना मुहाल है साक़ी


                ✍️ डॉ पवन मिश्र


हिलाल= चांद

जमाल= खूबसूरती

ख़याल-ए-मैनोशी= शराब पीने का ख़याल


Sunday 6 September 2020

ग़ज़ल- ढल गया जब शबाब से पानी


ढल गया जब शबाब से पानी

क्यूँ बहा तब नकाब से पानी


वक्त रहते अगर सँभल जाते

फिर न ढलता गुराब से पानी


इक छलावा है इश्क़ की दुनिया

कौन लाया सराब से पानी ??


तेरी आँखों में क्यूँ छलक आया?

आज मेरे जवाब से पानी


ये जो मोती रुके हैं पलकों पे

क्यूं है तेरे हिसाब से पानी?


उसकी रहमत पे शक नहीं करना

सबको देता हिसाब से पानी 


उसकी ग़ज़लों में कौन शामिल है?

बह रहा क्यूँ किताब से पानी 


ख़ार के साथ की सजा है ये

रिस रहा है गुलाब से पानी 


कोशिशें बन्द होंगी तब मेरी

जब मिलेगा तुराब से पानी


उसका आना पवन लगे है यूँ

जैसे बरसे सहाब से पानी


             ✍️ डॉ पवन मिश्र


गुराब= मान-सम्मान

सराब= मृगतृष्णा

तुराब= जमीन

सहाब= बादल