Thursday 25 April 2019

ग़ज़ल- देखो ना


साहब की आई है सत्ता देखो ना।
रंग-ढंग और कपड़ा लत्ता देखो ना।।

दादी पापा भी पहले भरमाते थे।
अब पपुआ बांटेगा भत्ता देखो ना।।

गुरबत और सियासी चालों में फँसकर।
मरने को मजबूर है नत्था देखो ना।।

तुम बिन बगिया सूनी सूनी लगती है।
मुरझाया है पत्ता पत्ता देखो ना।।

मरघट पे बहती नदिया दिखलाती है।
मानव तन कागज़ का गत्ता देखो ना।।

छेड़ नहीं तू शांत पवन को ऐ नादां।
बर्रैया का है ये छत्ता देखो ना।।

                   ✍️ डॉ पवन मिश्र

Monday 22 April 2019

नवगीत- आओ सब मतदान करें


लोकतंत्र का पर्व निराला,
संविधान का ये रखवाला।
दस्तक देकर हमें बुलाये,
देखो वेला बीत न जाये।
पुण्य यज्ञ यह आहुति मांगे,
इसका हम सम्मान करें।
आओ सब मतदान करें।१।

चाचा चाची निकलो घर से,
धूप मिले या पानी बरसे।
आंधी-तूफ़ां कुछ भी आए,
लेकिन लक्ष्य न डिगने पाए।
मतकेन्द्रों तक जाना ही है,
दूर सभी व्यवधान करें।
आओ सब मतदान करें।२।

आज अगर आलस के मारे,
मत देने से चूके प्यारे।
तो अयोग्य चुनकर आएगा,
दोष तुम्हारे सर जाएगा।
आने वाली पीढ़ी के हित,
चलो राष्ट्र निर्माण करें।
आओ सब मतदान करें।३।

अपना मत अपनी मर्जी से,
ना दबाव, ना ही अर्जी से।
जाति-धर्म से ऊपर उठकर,
राष्ट्रवाद सर्वोपरि रखकर।
लोकतंत्र की रक्षा के हित,
चलो सभी प्रस्थान करें।
आओ सब मतदान करें।४।

       ✍️ डॉ पवन मिश्र


Friday 5 April 2019

श्री मुरलीधाम मन्दिर, कोटरा, उन्नाव


चलिये आज आप सभी को ले चलते हैं, उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के कोटरा ग्राम स्थित मुरलीधर मन्दिर। माखी थानाक्षेत्र का यह गांव ब्लॉक मुख्यालय मियागंज से लगभग 11 किमी दूर स्थित है।
हुआ यूं कि ३१ मार्च दिन रविवार को एक पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अंतर्गत पं दीनदयाल विद्यालय, कानपुर के पूर्व छात्रों की संस्था युगभारती के अपने कुछ अग्रजों और अनुजों संग आचार्य श्री ओमशंकर त्रिपाठी जी के ग्राम सरौहां, उन्नाव जाना हुआ। आचार्य जी के यहां क्षेत्र के सभ्रांत व्यक्तियों से मिलना हुआ। समाज और राष्ट्र के सम्बंध में चर्चा परिचर्चा के दौरान ही जिक्र हुआ पास के गांव कोटरा स्थित एक अति प्राचीन मंदिर मुरलीधर धाम का। ग्राम के प्रधान श्री रामसुमेर जी साथ ही बैठे थे। हम सभी में उस मंदिर के दर्शन की उत्कंठा बढ़ती ही जा रही थी। भोजन आदि के बाद आचार्य श्री से आशीर्वाद ग्रहण कर हम लोग बढ़ चले कोटरा गांव की तरफ।
 रामसुमेर जी मोटरसाइकिल पर थे और उनके पीछे चारपहिया वाहन पर हम लोग। कुछ ही देर में हम सभी कोटरा के मुरलीधर मन्दिर के समक्ष थे। लम्बी सी जीर्ण शीर्ण चाहरदीवारी, टूटा फूटा मुख्य द्वार। हालांकि गेरुए, सफेद रंग से हुई ताजी पुताई काफी हद तक बदहाली को छुपाने का प्रयास कर रही थी। सच कहूं तो पुराने खंडहर जैसा ही कुछ भान हो रहा था। चाहरदीवारी के बाहर कुछ समाधियों के भग्नावशेष हमारी और हमारी सरकारों की जिम्मेदारियों की एक बानगी सुना रही थीं। खैर...
     लोगों ने बताया कि यह एक अति प्राचीन मंदिर है। इसे ध्वस्त करने का असफल प्रयास औरंगजेब के द्वारा किया गया था। लोकमान्यता तो यह भी है कि इसी मंदिर में गोस्वामी तुलसीदास जी बहुत समय तक रहे तथा उनकी हस्तलिखित कृति बहुत समय तक यहां रखी हुई थी। समय के प्रवाह में उस दुर्लभ धरोहर को रक्षित न किया जा सका। वर्तमान में उसके प्रतिरूप के तौर पर मुद्रित रामचरित मानस की एक पुरानी फटेहाल प्रति लाल कपड़े में पोटली की तरह बांध कर रखी हुई है। हालांकि इन मान्यताओं के ऐतिहासिक और पुरातात्विक तथ्य अलग चर्चा और शोध के विषय हैं। खैर...
        हम सभी ने पूरी श्रद्धा से मन्दिर में प्रवेश किया। सामने ही एक बड़ा सा कुंआ था, जिसपर किसी ने 'जै गंगा मइया' लिखा हुआ था। पूछने पर पता चला कि वर्षों पहले मां गंगा स्वयं ही वहां थीं और मान्यता है कि उस कुंए में मां गंगा का ही जल है। आज भी कार्तिक पूर्णिमा के सुअवसर पर वहां बहुत बड़ा मेला लगता है और सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु आकर कुंए के जल से स्नान करते हैं। हमने भी कुंए से जल निकाला और उस शीतल जल को माथे से लगाया। ततपश्चात मन्दिर के मुख्य भवन में हम सभी ने प्रवेश किया। जिसपर सामान्य से हस्तलेख से किसी ने 'श्री मुरलीधर' लिख रखा था। बाईँ तरफ ही मानस की मुद्रित प्रति रखी हुई थी जिसका जिक्र मैं पूर्व में कर चुका हूं। इसके आगे एक छोटा सा द्वार और था जिसमें प्रवेश कर हम बरामदे में आये। बाईँ तरफ छोटे से मन्दिर में एक शिवलिंग था और उसके बगल में बहुत छोटा सा झरोखानुमा द्वार, जिस पर लिखा था ' जय माँ गंगा द्वार'। लोगों ने बताया कि यहीं से एक गुप्त रास्ता जमीन के भीतर से होता हुआ बाहर स्थित कुंए तक गया है। लेकिन आजतक किसी ने भी इसमें प्रवेश करने का साहस नही दिखाया। मैंने झांक कर देखा तो सुरंगनुमा एक अंध कूप सा महसूस तो हुआ लेकिन समयाभाव और भय मिश्रित मनोदशा से प्रणाम करके बाहर आना ही मुनासिब लगा।
 अब हम बरामदा पार करके एक कक्ष में प्रवेश कर रहे थे। मन्दिर का बायां हिस्सा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। दीवारें फट चुकी हैं। उस कक्ष की छत गुम्बदनुमा थी, सुंदर सी नक्काशी भी उकेरी हुई थी लेकिन बाईँ तरफ की दीवार तो दीवार, ऊपर तक छत भी फ़टी हुई थी। सामने ही मन्दिर का मुख्य कक्ष था और सफेद सँगमरमर की राधा कृष्ण की मोहक मूर्ति थी। अनके प्रकार के शंख आदि भी सीढ़ियों पर रखे हुए थे। हम सबने श्रद्धापूर्वक दर्शन किये, भगवान को भोग चढ़ाया। बाईँ तरफ छोटा सा पुराना एक दरवाजा लगा था। पता चला कि उसके भीतर सीढियां हैं जो पीछे स्थित ऊंचे से गुम्बद में ऊपर बने हुए कक्ष तक जाती हैं। चूंकि देर हो रही थी और हमें अभी माखी गांव स्थित टीकादस हनुमान जी के दर्शन भी करने थे अतः हमलोगों ने सीढ़ियों से ऊपर जाने का विचार त्याग दिया। मन्दिर के पीछे के हिस्से से वो ऊंचा सा गुम्बद स्प्ष्ट दिख रहा था ऐसा लग रहा था मानो वह अपनी भव्यता और प्राचीनता पर इठलाता हुआ शीश ताने खड़ा है। 
दर्शन करके लौट तो आये हम सभी लेकिन मस्तिष्क में यह प्रश्न अभी भी कौंध रहा है कि हम और हमारी सरकारें अपनी पुरातन सम्पदा के प्रति और जागरूक क्यों नही हो रहे। क्या पूर्वजों की इन धरोहरों को रक्षित करने के प्रयास सरकारों द्वारा किये जायेंगे ?? निश्चित रूप से किये जाने चाहिये इसलिये उत्तर प्रदेश सरकार से मेरा इतना ही कहना है कि उन्नाव जनपद में कोटरा स्थित श्री मुरलीधर धाम आपकी बाट जोह रहा है। 
                                                      ✍️ डॉ पवन मिश्र