Sunday 16 December 2018

ग़ज़ल- बन के जुगनू जगमगाना चाहिये



तीरगी में गर उजाला चाहिये।
बन के जुगनू जगमगाना चाहिये।।

गर ये चाहत है, किनारा चाहिये।
हौसलों को आजमाना चाहिये।।

पेचो ख़म माना बहुत हैं इश्क़ में।
फिर भी सबको इश्क़ होना चाहिये।।

जब दीवारें बोलने घर की लगें।
दोस्तों को घर बुलाना चाहिये।।

दो कदम क्या, चार चल कर आऊंगा।
पर तुम्हे भी ये सलीका चाहिये।।

सख़्त हाथों से नही रिश्ते बनें।
ज़रकशी जैसा सलीका चाहिये।।

टूटकर वो भी मिलेगा धूल में।
ख़ार को भी ये समझना चाहिये।।

आज भी रोटी की ही जद्दोजहद ?
रहनुमा को डूब मरना चाहिये।।

गर्द जिनके जम गई किरदार पर।
आइना उनको दिखाना चाहिये।।

कब तलक यूँ शेर जोड़ोगे मियां।
अब ग़ज़ल में वज़्न आना चाहिये।।

                ✍ *डॉ पवन मिश्र*
तीरगी= अंधेरा
पेचो ख़म= कठिनाइयाँ
ज़रकशी= सोने-चांदी के तारों से होने वाला काम
ख़ार= काँटा

Sunday 2 December 2018

नवगीत- तुम जयघोष समझ बैठे



वेद ऋचाएं अपमानित कर,
कुल को शापित कर बैठे।
और सियारी हुआँ हुआँ को,
तुम जयघोष समझ बैठे।।
तुम जयघोष समझ बैठे।।

मेरा क्या मैं तो वैरागी,
हर दुख-सुख में, मैं प्रतिभागी।
धन-पद की भी चाह नहीं है,
नेह मिलन का मैं अनुरागी।
मैं अपनों सँग मस्त पड़ा था,
तुम बेहोश समझ बैठे।।
और सियारी हुआँ हुआँ को,
तुम जयघोष समझ बैठे।१।

माना हर मोती तुम लाये,
चाटुकार भी कुछ बुलवाये।
प्रेम तन्तु से हमने गूंथा,
तब मोती माला में आये।
मैं रिश्तों का गर्वित माथा,
तुम अफ़सोस समझ बैठे।।
और सियारी हुआँ हुआँ को,
तुम जयघोष समझ बैठे।२।

मन मन्दिर में तुम्हे बिठाकर,
तुम पर सारा नेह लुटाकर।
सोच रहा मैं आज अकिंचन,
क्या पाया है तुमको पाकर।
नकली नोटों के गठ्ठर को,
तुम अधिकोष समझ बैठे।
और सियारी हुआँ हुआँ को,
तुम जयघोष समझ बैठे।३।

चौसर तेरी प्यादे तेरे,
राहु केतु बन करते फेरे।
द्रोण, भीष्म औ विदुर मौन हैं,
पांडु पुत्र को कौरव घेरे।
शकुनी की चालें ना समझीं,
मेरा दोष समझ बैठे।
और सियारी हुआँ हुआँ को,
तुम जयघोष समझ बैठे।४।

डॉ पवन मिश्र

Sunday 11 November 2018

ग़ज़ल- शाइरी कब तक



जमाने की रवायत में मेरी आवारगी कब तक।
ये फक्कड़पन रहे ,देखो रहे, ये शाइरी कब तक।।

तेरे दीदार को तरसी हैं आंखें रात भर मेरी।
मिलन की शबनमी बूँदें लिये तू आएगी कब तक।।

ज़मीं ज़र दे दिया फिर भी पड़ोसी वो नहीं सुधरा।
बहुत कमज़र्फ़ है देखो निभाये दुश्मनी कब तक।।

चुनावी साल में होते तमाशे ही तमाशे हैं।
चलेगी मुल्क में मेरे ख़ुदा ये मसखरी कब तक।।

दुशासन हँस रहा देखो, झपट कर थाम लो गर्दन।
कि कान्हा के भरोसे ही रहोगी द्रौपदी कब तक।।

जलाकर खुद को मैंने रौशनी देने की ठानी है।
कि अब है देखना आखिर रहेगी तीरगी कब तक।।

                                   ✍ *डॉ पवन मिश्र*

Saturday 3 November 2018

कुण्डलिया- पीत पत्रकारिता



डाका, रेप, गिरहकटी, संसद का व्यभिचार।
इन सबसे ही आजकल, भरा रहे अख़बार।।
भरा रहे अखबार, दिखाए हमको दुनिया।
नहीं सुरक्षित आज, बिचारे मुन्ना-मुनिया।।
अखबारों का किन्तु, अर्थ ही असली आका।
कीमत ले हर बार, डालते सच पे डाका।१।

भारत के गणतंत्र के, ये हैं चौथे खम्भ।
लेकिन इनमें भर गया, जाने कैसा दम्भ।।
जाने कैसा दम्भ, समझते खुद को ज्ञानी।
अधजल गगरी लाय, छलकता जाए पानी।।
कहे पवन ये धूर्त, झूठ की लिखें इबारत।
तार तार सम्मान, ज़ख्म ढोता है भारत।२।

                               डॉ पवन मिश्र

Sunday 9 September 2018

ग़ज़ल- तीरगी को रोशनी दरकार है



वो ही चेहरा वो हँसी दरकार है।
तीरगी में रोशनी दरकार है।।

बन के नश्तर याद तेरी चुभ रही।
अब तो मुझको बस तेरी दरकार है।।

अनमनी सी ढो रही है जिस्म बस।
ज़िंदगी को मौत की दरकार है।।

कोख में ही मारते हो बेटियां।
और कहते हो खुशी दरकार है।।

आदमी को आदमी ही मान लें।
बस सियासत से यही दरकार है।।

ऐ ख़ुदा तेरा करम, जो बख़्श दे।
क्या छुपी तुमसे कोई दरकार है।।

कब तलक तुकबन्दियाँ होंगी पवन ?
अब तो तुझसे शाइरी दरकार है।।

                     *डॉ पवन मिश्र*

Thursday 23 August 2018

गीत- हे अटल तुम्हे नमन


(पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को समर्पित गीत)

हे विमल तुम्हे नमन, हे सरल तुम्हे नमन।
युग प्रणेता कर्मयोगि, हे अटल तुम्हे नमन।।

दल कमल के प्राण तुम,
प्रदीप्त नव विहान तुम।
पोखरण के शौर्य हो,
भारती की शान तुम।
कुचक्र के प्रभाव में,
विश्व के दबाव में।
डिगे नहीं झुके नहीं, हे अचल तुम्हे नमन।
युग प्रणेता कर्मयोगि, हे अटल तुम्हे नमन।।

विघ्न थे विकट मगर,
तुम सदा रहे निडर।
कारगिल पहाड़ियों से,
गूंजता है स्वर प्रखर।
भले ही लक्ष्य दूर था,
शत्रु मद में चूर था।
मगर कदम रुके नहीं, हे प्रबल तुम्हे नमन।
युग प्रणेता कर्मयोगि, हे अटल तुम्हे नमन।।

                                डॉ पवन मिश्र

Saturday 11 August 2018

ग़ज़ल- उनकी खुशबू को लिये महकी हवा कब आएगी



उनकी खुशबू को लिये महकी हवा कब आएगी।
टूट कर बरसे जो वो काली घटा कब आएगी।।

दर्द हद से बढ़ रहा इसकी दवा कब आएगी।
ज़िंदगी है पूछती आख़िर क़ज़ा कब आएगी।।

आहटों में ढूंढता आवाजे-पा उनकी ही मैं।
ऐ खुदा दर पे मेरे उनकी सदा कब आएगी।।

सुब्ह से हूँ मयकदे में जाम सारे बे-नशा।
शाम ढलने को है साकी तू बता कब आएगी।।

शर्त हर मंजूर है दीदार को उनके मगर।
देखिये अब इश्क़ में उनकी रज़ा कब आएगी।।

ज़िंदगी की जंग जारी आखिरी सांसों के सँग।
अब भी गर आई न तू तो फिर भला कब आएगी।।

लाश में भी ढूंढ लेते वो सियासत की वजह।
रहनुमा को ऐ ख़ुदा शर्मो हया कब आएगी।।

                              ✍ डॉ पवन मिश्र
आवाजे- पा= पैर की आवाज


Sunday 29 July 2018

बालगीत- काले बादल


काले बादल काले बादल,
मेरी छत पर आओ ना।
गर्मी बढ़ती जाती देखो,
पानी अब बरसाओ ना।

धूप बरसती आसमान से,
झुलसाती है हम सबको।
देखो गर्म हवा भी आकर,
तड़पाती है हम सबको।।
सुनो जुलाई बीत रही है,
अब तो तुम आ जाओ ना।
काले बादल काले बादल,
मेरी छत पर आओ ना।।

फाड़ फाड़ के कागज रक्खे,
हमने नाव बनाने को।
लेकिन नाली सड़कें सूखीं,
जाएं कहाँ चलाने को।।
आखिर क्यों तुम रूठ गए,
इतना तो बतलाओ ना।
काले बादल काले बादल,
मेरी छत पर आओ ना।।
      
✍ अक्षिता मिश्र व डॉ पवन मिश्र

अपनी बात- बड़ी बिटिया (अक्षिता मिश्र) कल कहने लगी कि पापा स्कूल मैगज़ीन के लिये कुछ लिखना है। बस फिर क्या बिटिया बताती गई, पापा लिखते गए। देखते ही देखते 10 मिनट में मेरी काव्य सृजन यात्रा का प्रथम बालगीत सम्मुख था। 

Tuesday 12 June 2018

ताटंक छन्द - कविता और मंच



कलमकार कुछ मंच सजाते, फूहड़ सतही बातों से।
झुलस रही है कविता जिनके, तेजाबी आघातों से।।
बनी द्रौपदी सिसक रही है, मंचो पर हिंदी भाषा।
लील रही साहित्य-सृजन को, धन वैभव की प्रत्याशा।।

पैसों की खन खन ध्वनि सुनकर, काव्य गढ़े नित जाते हैं।
और विदूषक मंचों पर चढ़, लोगों को भरमाते हैं।।
भावों की फूहड़ता से जब, शब्द सजाये जाते हैं।
तब रचनाओं की लाशों पर, मंच बनाये जाते हैं।।

कैसे कह दूँ दुर्योधन ही, चीरहरण का दोषी था।
मौन साध जो भी बैठा था, उस कुकृत्य का पोषी था।।
पन्त निराला जयशंकर हो, तुम्ही सुभद्रा की थाती।
मान घटेगा हिंदी का तो, कैसे फूलेगी छाती।।

मैं दिनकर के पथ का चारण, अपना धर्म निभाऊंगा।
शपथ मुझे हिंदी भाषा की, इसका मान बढ़ाऊंगा।।
मां वाणी का सेवक हूँ मैं, कलम बेच ना पाऊँगा।
भूखा मर जाऊंगा लेकिन, भाँड़ नहीं बन जाऊँगा।।

                                       डॉ पवन मिश्र

Sunday 10 June 2018

ग़ज़ल- कई दिन से



मैं हूँ खुद से ख़फ़ा कई दिन से।
सिलसिला चल रहा कई दिन से।।

मेरे कमरे में आइना था इक।
वो भी है लापता कई दिन से।।

दिल ये बेजार इश्क़ से है अब।
सिसकियाँ ले रहा कई दिन से।।

कुछ गलतफहमियां हुईं शायद।
बढ़ रहा फ़ासला कई दिन से।।

ज़ह्र, नफरत, घुटन लिए सँग में।
चल रही है हवा कई दिन से।।

मुन्तज़िर है पवन चले आओ।
तक रहा रास्ता कई दिन से।।

          ✍ डॉ पवन मिश्र

Wednesday 6 June 2018

गीत- पूर्णिमा की रात



पूर्णिमा की रात देखो आ गई।
चांदनी चहुँ ओर नभ पर छा गई।।

रोज अपने हौसलों से कुछ कदम,
चांदनी को साथ लेकर वो चला।
तम की गहरी कालिमा को लील कर,
वो उजाले के लिये खुद ही जला।।
बिन थके चलता रहा लड़ता रहा,
चांद की यह बात मुझको भा गई।
पूर्णिमा की रात देखो आ गई।।

लग रहा मानों जलधि भी व्यग्र है,
ज्वार बन लहरें यही बतला रहीं।
नभ समेटे अपनी बांहों में यहां,
रश्मियां तारों की भी मुस्का रहीं।।
कवि अकिंचन को भी देखो चांदनी,
रूप नव इक काव्य का दिखला गई।
पूर्णिमा की रात देखो आ गई,
चांदनी चहुँ ओर नभ पर छा गई।।
                  
                 डॉ पवन मिश्र

Sunday 13 May 2018

ग़ज़ल- इश्क में अक्सर गलत इक फैसला साबित हुए


इश्क में अक्सर गलत इक फैसला साबित हुए।
हम वफ़ा करते रहे और बेवफ़ा साबित हुए।।

उनकी नज़रों में हमेशा इक ख़ता साबित हुए।
इक दफ़ा की बात छोड़ो बारहा साबित हुए।।

जूझते है जो भरोसा करके खुद आमाल पर।
डूबती कश्ती के वो ही नाख़ुदा साबित हुए।।

उम्र भर दमड़ी कमाई साथ फिर भी कुछ न था।
जब खुदा का नूर फैला बेनवा साबित हुए।।

ऐ ख़ुदा किस मोड़ पे जाएगी अब ये जिंदगी।
हमसफ़र समझा था जिनको रहनुमा साबित हुए।।**

लोग कतराने लगे हैं तबसे मिलने में पवन।
जब से हम लोगों की ख़ातिर आइना साबित हुए।।

                                       ✍ *डॉ पवन मिश्र*
** मुजफ्फर हनफ़ी साहब का मिसरा

बारहा= बार-बार, हमेशा
आमाल= कर्म
नाख़ुदा= नाविक, कर्णधार
बेनवा= कंगाल, भिखारी

Tuesday 8 May 2018

ग़ज़ल- बजबजाती नालियों में रह रहा है आदमी


बजबजाती नालियों में रह रहा है आदमी।
मौन है देखो सियासत सह रहा है आदमी।।

उस खुदा ने क्या अता कर दीं जरा सी नेमतें।
आज अपने को खुदा ही कह रहा है आदमी।।

ख़ौफ़ का मंज़र ज़माने में है दिखता आजकल।
आदमी के ज़ुल्म देखो सह रहा है आदमी।।

छोड़कर अपनी जड़ों को जबसे उड़ने ये लगा।
ताश के पत्तों के जैसे ढह रहा है आदमी।।

आँख पर पट्टी चढ़ाए ज़रपरस्ती की पवन।
किस हवा के साथ देखो बह रहा है आदमी।।


                               ✍ *डॉ पवन मिश्र*
ज़रपरस्ती= पैसे की पूजा करना

Wednesday 25 April 2018

ग़ज़ल- सियासत क्यों सिखाती है महज तकरार की बातें


कभी मंदिर कभी मस्ज़िद कभी प्रतिकार की बातें।
सियासत क्यों सिखाती है महज तकरार की बातें।।

कभी तकरार की बातें कभी इनकार की बातें।
अरे सँगदिल कभी तो टूट कर कह प्यार की बातें।।

नहीं लगता कहीं ये दिल नजारों में नहीं रंगत।
मुझे बस याद आती हैं मेरे दिलदार की बातें।।

कहूँ कुछ भी करूँ कुछ भी तुम्हें बस दाद देनी है।
यही फरमान आया है सुनो सरकार की बातें।।

वतन के वास्ते कर्तव्य अपने भूल बैठा है।
लिए झंडे फ़क़त करता है वो अधिकार की बातें।।

सियासतदां यहां मशगूल हैं बस ज़रपरस्ती में।
कहाँ फ़ुर्सत इन्हें जो सुन सकें लाचार की बातें।।

गरीबी भी मिटेगी अम्न भी अब मुल्क में होगा।
चुनावी साल है प्यारे सुनो सरकार की बातें।।

तेरी मीज़ान में ताकत नहीं जो तौल पाएगी।
मेरी ग़ज़लें बताएंगी मेरे किरदार की बातें।।

                                 ✍ *डॉ पवन मिश्र*

सँगदिल= पत्थर दिल
ज़रपरस्ती= धन का लोभ
मीज़ान= तराजू

Sunday 15 April 2018

दोहे- समसामयिक दोहे


बिलख रही माँ भारती, नेता गाते फाग।
सोन चिरइया जल रही, हरसूँ फैली आग।१।

बगिया में अब क्या बचा, जिस पर होवे नाज।
काँटों को पुचकारते, माली दिखते आज।२।

राजनीति में हो रहा, केर बेर का मेल।
धर्म जाति की ओट में, चले सियासी खेल।३।

कंगूरे इतरा रहे, करते लोग प्रणाम।
दफ़्न हुए जो नींव में, आज हुए गुमनाम।४।

जद में आएंगे सभी, क्यों बैठे अंजान।
धर्मयुद्ध है पार्थ ये, करो शस्त्र संधान।५।

                        
                            ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday 8 April 2018

ग़ज़ल- तेरी तस्वीर से बातें की हैं


तू न आया तेरी तस्वीर से बातें की हैं।
तीरगी में भी युँ तन्वीर से बातें की हैं।।

इस जमाने की निगाहों में गुनहगारी की।
मैंने जब भी मेरी उस हीर से बातें की हैं।।

अब तो ज़ानों पे मेरे सर को रखो, बात करो।
अब तलक तो तेरी तस्वीर से बातें की हैं।।

शिकव ए ग़ैर में मशगूल सभी हैं लेकिन।
क्या कभी अपनी ही तक़्सीर से बातें की हैं?

मौत का ख़ौफ़ भला उसको पवन क्या होगा?
जिसने ताउम्र ही शमशीर से बातें की हैं।।


                            ✍ *डॉ पवन मिश्र*
तीरगी= अंधेरा
तन्वीर= उजाला, नूर
ज़ानों= घुटना, गोद
शिकव ए ग़ैर= गैर की शिकायत
तक़्सीर= कमी, भूल

Sunday 1 April 2018

नवगीत- पुराने मित्र देखे


पुरानी एलबम में कुछ पुराने चित्र देखे।
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।।

यकायक दृश्य कुछ सम्मुख मेरे खिंचने लगे,
वो सूखे फूल बहते अश्रु से सिंचने लगे।
लगा जैसे किसी ने थामकर बोला मुझे,
अबे आ जा सुहाना कुछ दिखाता हूँ तुझे।।
दीवारें हॉस्टल की फांदकर मूवी को जाना,
पकड़ जाने पे झूठा सा कोई किस्सा सुनाना।
खुरचकर बेंच औ दीवार पे वो नाम लिखना,
हमेशा क्लास में पीछे की सीटों पे ही दिखना।।
जली रोटी को लेकर मेस में वो हल्ला मचाना,
जरा सी देर हो तो थालियां चम्मच बजाना।
वो हर छोटी बड़ी मुश्किल में सबका साथ आना,
परीक्षा के दिनों में रात भर पढ़ना पढ़ाना।।
न जाने कितने ही ऐसे सुहाने चित्र देखे,
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।।

मगर रोटी की अब जद्दोजहद में पड़ गए सारे,
छुड़ाकर हाथ फोटो फ्रेम में ही जड़ गए सारे।
समय की डोर से बांधे पखेरू उड़ गए सारे,
हवा जिस ओर की पाई उधर को मुड़ गए सारे।।
मगर क्या मित्रता कमतर हुई दूरी के बढ़ने से ?
पुरानी मूर्तियां धूमिल पड़ीं नवमूर्त गढ़ने से ?
नहीं दूरी मिटा सकती है इस अहसास को यारों,
न कोई भी डिगा सकता है इस विश्वास को यारों।।
समंदर के थपेड़ों से हमें लड़ना सिखाती है,
तमस की रात में अँगुली पकड़ रस्ता सुझाती है।
अरे ये मित्रता हर सांस के सँग याद आती है,
समय की कब्र में भी बैठकर हल्ला मचाती है।।
उसी अहसास में डूबे दिवाने मित्र देखे,
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।

पुरानी एलबम में कुछ पुराने चित्र देखे,
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।।

                           
                           ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday 18 March 2018

जवानी- शक्ति छन्द आधारित मुक्तक


अगर इंकलाबी कहानी नहीं,
लहू में तुम्हारे रवानी नहीं।
डराती अगर हो पराजय तुम्हें,
सुनो मित्र वो फिर जवानी नहीं।१।


चलो यार माना बहुत ख़ार हैं,
चमन जल रहा कोटि अंगार हैं।
मगर ये जवानी मिली किसलिए,
तरुण के यही शुभ्र श्रृंगार हैं।२।

        ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday 11 March 2018

ग़ज़ल- छुप के बैठे हैं कमीने पाक में


छुप के बैठे हैं कमीने पाक में।
दम किये हिन्दोस्तां की नाक में।।

जाग जा सोई हुई दिल्ली मेरी।
अब दरिन्दों को मिला दे ख़ाक में।।

कल सुना इक लाश वोटर की मिली।
भेड़िये से रहनुमा हैं ताक में।।

दोस्तों दिल्ली चलो, दिखलाऊँगा।
गीदड़ों को शेर की पोशाक में।।

रौंदने वालों से कलियां कह रहीं।
क्यूँ मिला डाला हमें यूँ ख़ाक में।।

वक्त आने पर बताएगा पवन।
जिंदगी उलझी अभी अश्बाक में।।

             ✍ *डॉ पवन मिश्र*


अश्बाक= बहुत से जाल

मजाहिया ग़ज़ल- वो करेंगे दम हमारी नाक में


क्या पता था हम हैं जिनकी ताक में।
वो करेंगे दम हमारी नाक में।।

अहलिया की ख्वाहिशें थमती नहीं।
वो उड़े हैं अर्श में, हम ख़ाक में।।

यूं बहस होने लगी बीवी से कल।
ज्यों छिड़ा हो युद्ध भारत पाक में।।

घर के भीतर खौफ़ का माहौल है।
आजकल बेलन ही बस इदराक में।।

हद है मैं भी ढूंढता था आज तक।
कोकिला को एक मादा काक में।।

हाल मत पूछो मियाँ मटका बना।
वो कुम्हारिन बन घुमाती चाक में।।


                  ✍ डॉ पवन मिश्र

अहलिया= बीवी
इदराक= सोच

Sunday 4 March 2018

दोहे- पूर्वोत्तर विस चुनाव परिणाम (2018) और यूपी के वर्तमान सियासी माहौल के संदर्भ में


अबकी होली क्या कहें, जियरा का हम हाल।
भगवा हुइगा देश सब, हरा बचा ना लाल।१।
जोगीरा सा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा

पूर्वोत्तर की तपन से, यूपी भी बेहाल।
हाथी खोजे साइकिल, हाथ हुआ कंगाल।२।
जोगीरा सा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा

बुआ भतीजा संग में, खिचड़ी रहे पकाय।
कच्ची हांडी देखकर, नमो खड़ा मुस्काय।३।
जोगीरा सा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा

नीला लाल बना रहे, देखो कैसा मेल।
काला ही परिणाम तय, देख सियासी खेल।४।
जोगीरा सा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा

तपती दुपहरिया मिटी, आयी महकी शाम।
सब बोलो दिल खोलकर, जय जय जय श्री राम।५।
जोगीरा सा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा

                                
                            ✍ डॉ पवन मिश्र

Friday 26 January 2018

मुक्तक- वन्दे मातरम


प्राण है विहान है ये गान वन्दे मातरम,
मान है महान है ये गान वन्दे मातरम।
मातु भारती की पुण्य साधना का मंत्र ये,
आन बान शान है ये गान वन्दे मातरम।१।

भीरुता का दाह है ये गान वन्दे मातरम,
शौर्य का गवाह है ये गान वन्दे मातरम।
सुप्त देश भावना से जम चुकी शिराओं में,
रक्त का प्रवाह है ये गान वन्दे मातरम।२।

                              ✍ डॉ पवन मिश्र

Thursday 25 January 2018

त्रिभंगी छन्द- हे कृष्ण मुरारी


हे कृष्ण मुरारी, वंशीधारी, नन्दबिहारी, आओ तो।
प्रभु दे दो दर्शन, रूपाकर्षन, चक्र सुदर्शन, लाओ तो।
नव स्वांग गढ़ रहे, वक्ष चढ़ रहे, दुष्ट बढ़ रहे, धरती पे।
क्यों मौन खड़े हो, दूर अड़े हो, शांत पड़े हो, गलती पे।१।

लेकर दोधारी, हाहाकारी, अत्याचारी, घूम रहा।
अब पतित हुआ जग, न्याय पड़ा मग, पापी के पग, चूम रहा।
सद्मार्ग दिखाओ, अब आ जाओ, नाथ बचाओ, वसुधा को।
अब वंशी त्यागो, चक्र उठाओ, सबक सिखाओ, पशुता को।२।

                             ✍ डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 10,8,8,6 में निहित 32 मात्राओं के चार चरण, चरणान्त में गुरु की अनिवार्यता, दो दो चरणों की तुकांतता मान्य


Sunday 21 January 2018

ग़ज़ल- करो कोशिश तो पत्थर टूटता है

१२२२    १२२२     १२२
करो कोशिश तो पत्थर टूटता है।
मेरी मानों तो अक्सर टूटता है।।

हवाई ही महल जो बस बनाते।
उन्हीं आंखों का मंजर टूटता है।।

अजब है इश्क़ की दुनिया दीवानों।
यहां अश्कों से पत्थर टूटता है।।

वफ़ा ही है हमारे दिल में लेकिन।
बताओ क्यूं ये अक्सर टूटता है।।

दरकती हैं जो ईंटें नींव की तो।
कहूँ क्या यार हर घर टूटता है।।

सुखनवर जानता है ये सलीका।
कलम से ही तो खंजर टूटता है।।

                ✍ *डॉ पवन मिश्र*

सुखनवर= कवि

Sunday 14 January 2018

गीत- वाणी यायावरी परिवार (व्हाट्सएप समूह) के सम्मिलन हेतु विशेष

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।।

पकड़ो गाड़ी हावड़ा या प्रताप या मरुधर,
चाहे दिल्ली होकर आओ राह तके है मरुथर।
माह फरवरी की ग्यारह को मिलना है दीवानों,
शमा जली है स्नेह मिलन की आ जाओ परवानों।।
जल्दी से अब टिकट करा लो हो न जाये देर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।।

पहली बार किशनपुर वाले भूल गए क्या वो पल,
एकडला के गन्नों का रस वो यमुना का कल-कल।
याद नहीं क्या प्रथम मिलन की नेह भरी वो बतिया,
जौ मकई की सोंधी रोटी वो अमरूद की बगिया।।
वाणी के उस प्रथम मंच से खूब दहाड़े शेर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।।

दूजी बार गए ददरा अब्दुल हमीद के गांव,
अबकी बार थी अमराई और उसकी ठंडी छाँव।
चटक धूप में सभी मगन थे नेह की चादर ताने,
ढोल मंजीरे से उल्लासित कजरी के दीवाने।।
उमड़ घुमड़ कर वही भाव फिर हमें रहा है टेर,
स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, चलो रे बीकानेर।।

                                  ✍ डॉ पवन मिश्र

Saturday 13 January 2018

गीत- उत्तरायण हो रहे रवि को नमन (मकर संक्रांति विशेष)


शुभ रश्मियों का हो रहा है आगमन,
किस विधि से आज कर लूँ आचमन।
पुन्य वेला में निरखती ये धरा है,
उत्तरायण हो रहे रवि को नमन।।

प्राणियों में प्रेम का संचार हो,
बस परस्पर मेल का व्यवहार हो।
हम बढ़ें तुम भी बढ़ो यह भाव हो,
आचरण हो शुद्ध औ सद्भाव हो।।
अब नहीं टूटन रहे ना ही चुभन,
उत्तरायण हो रहे रवि को नमन।।

मैं अकिंचन राह दिखलाओ प्रभो,
मूढ़ मति हूँ ज्ञान भर जाओ प्रभो।
स्वार्थ का तम बढ़ रहा संसार में,
हर नाव देखो फंस गई मंझधार में।।
हे दिवाकर पाप का कर दो शमन,
उत्तरायण हो रहे रवि को नमन।।

                  ✍ डॉ पवन मिश्र

Thursday 11 January 2018

ग़ज़ल- सुनो जिस रोज मेरे इश्क का सूरज ये निकलेगा


सुनो जिस रोज मेरे इश्क़ का सूरज ये निकलेगा।
अरे वो संगदिल आकर मेरी बाहों में पिघलेगा।।

मेरे भोले से इस दिल को दिखाते ख्वाब हो कोरे।
बताओ बस उमीदों से भला कब तक ये बहलेगा।।

चमकना काम है उसका वो देगा नूर ही सबको।
अँधेरे की कहाँ हिम्मत मेरे जुगनू को निगलेगा।।

बहुत हल्ला हुआ यारों चलो अब जंग हम छेड़ें।
रगों में बंद ही बस कब तलक ये ज्वार उबलेगा।।

भले कितनी मुहब्बत से उसे अमृत पिलाओ तुम।
सपोला है तो काटेगा वो हरदम ज़ह्र उगलेगा।।

न जाओ मैकदे में छोड़कर मुझको मेरे साकी।
पवन ये लड़खड़ाया तो बता फिर कैसे सँभलेगा।।


                               ✍ *डॉ पवन मिश्र*

संगदिल= पत्थर दिल

Sunday 7 January 2018

ग़ज़ल- झूठे वादों से बहलाया जाता है


झूठे वादों से बहलाया जाता है।
और सियासत को चमकाया जाता है।।

मन्दिर-मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम को लेकर।
कितना झूठा पाठ पढ़ाया जाता है ?

जन्नत के कुछ ख़्वाब दिखा कर मोमिन को।
बस नफ़रत का ज़ह्र पिलाया जाता है।।

दिल के भीतर शक-ओ-शुब्हा की मिट्टी से।
दीवारों को सख़्त बनाया जाता है।।

आज सियासत में ऊंचाई पाने को।
जिंदा लोगों को दफ़नाया जाता है।।

गुल को ख़ौफ़ज़दा रखने की नीयत से।
वहशी काँटों को पनपाया जाता है।।

                   ✍ *डॉ पवन मिश्र*


मोमिन= मुस्लिम युवक

ग़ज़ल- ख़्वाब दिखा कर पास बुलाया जाता है


ख्वाब दिखा कर पास बुलाया जाता है।
फिर आशिक को खूब सताया जाता है।।

झूठे किस्से लैला मजनू के कहकर।
लोगों को कितना भरमाया जाता है।।

मैख़ाने में जाने वाले क्या जानें ?
आंखों से भी जाम पिलाया जाता है।।

जलने से पहले  परवाना यूं बोला।
देखो ऐसे इश्क़ निभाया जाता है।।

एक सुखनवर को देखा तब ये जाना।
टूटे दिल से भी तो गाया जाता है।।


                     ✍ *डॉ पवन मिश्र*