Tuesday 16 April 2024

बाल कविताएं

 1)
मेरी प्यारी प्यारी अम्मा
जग में सबसे न्यारी अम्मा
मुझ पर सारा प्यार लुटाती
लड्डू पेड़ा मुझे खिलाती
रोज कहानी मुझे सुनाती
लोरी गाकर मुझे सुलाती
2)
रंग बिरंगी तितली रानी
मुझको लगती बड़ी सुहानी
दिन भर फूलों पर मंडराती
मानो उनसे रंग चुराती
इसको देखूं तो ललचाऊँ
मन करता है सँग उड़ जाऊं
3)
सुबह सुबह मेरी खिड़की पर
हर दिन है आती गौरैया 
फुदक-फुदक कर घर आंगन में
खुशियां बिखराती गौरैया
चावल के दाने चुग चुग कर
फुर से उड़ जाती गौरैया
4)
जगमग जगमग दीपों वाली
दीवाली की रात निराली
बंटी झूमे बबली झूमे
जैसे जैसे चरखी घूमे
खील बताशे गट्टे खाते
सारे बच्चे धूम मचाते
5)
सुबह सवेरे सूरज चाचू
हमें जगाने आते हैं
अपनी किरणों से धरती का
हर कोना चमकाते हैं
रोज सवेरे जल्दी आकर
सबमें जोश जगाते हैं
अंधेरे से हर दम लड़ना
सीख यही सिखलाते हैं
6)
चंदा मामा मुझे बताओ
दूर गगन क्यों बसते हो
किससे तुमको डर लगता जो
दिन भर छुपकर रहते हो
मेरी इतनी बात मान लो
मुझको गले लगा जाओ
तारों की टोली को लेकर
मेरी छत पर आ जाओ
7)
पथ चाहे हो दुर्गम लेकिन
नदिया बहती रहती है
कल-कल कल-कल करते करते
हँस कर संकट सहती है
चलते जाओ चलते जाओ
बात यही बस कहती है
8)
काले बादल काले बादल
मेरी छत पर आओ ना
गर्मी बढ़ती जाती देखो
पानी अब बरसाओ ना
सुनो जुलाई बीत रही है
अब तो तुम आ जाओ ना
आखिर क्यों रूठे हो हमसे
इतना तो बतलाओ ना
9)
चलें घूमने हम सब मेला
देखेंगे जादू का खेला
ऊंचे ऊंचे झूले होंगे
गुब्बारे भी फूले होंगे
ठंडी कुल्फी, गरम जलेबी
खुश है बंटी, खुश है बेबी
10)
सुबह ईश का ध्यान धरें हम
केवल अच्छे काम करें हम
सबसे मीठी वाणी बोलें
रिश्तों में मीठापन घोलें
सच का साथ कभी ना छोड़ें
दिल से दिल का रिश्ता जोड़ें
11)
अपना प्यारा भारत देश 
सबसे न्यारा भारत देश
हम सब इसकी हैं संतान
सदा रखेंगे इसका मान
सकल विश्व में है पहचान
जय जय भारत देश महान

✍️ डॉ पवन मिश्र

Sunday 7 April 2024

ग़ज़ल- कीजिए रोशन उमीदी का चराग़

कीजिये रोशन उमीदी का चराग़
हौसलों का, ख़ुशनसीबी का चराग़

कोशिशों का तेल पाकर ही सदा
जगमगाता कामयाबी का चराग़

तीरगी में ही रहा सारा अवध
राम आए तो जला घी का चराग़

आँख तो इज़हार करती है मगर
होंठ पे रक्खा खमोशी का चराग़

हश्र तक मैं मुन्तज़िर उनका रहा
फिर बुझा मेरी यक़ीनी का चराग़

मुफ़लिसी का दर्द क्या समझेगा वो
घर में जिसके है अमीरी का चराग़

ऐ पवन कोशिश यही करनी तुझे
बुझ न पाए कोई नेकी का चराग़

✍️ डॉ पवन मिश्र

Sunday 17 March 2024

ग़ज़ल- तुम्हारे घर जो बरकत आ रही है

तुम्हारे घर जो बरकत आ रही है
वो बेटी की बदौलत आ रही है

तुम्हारे साथ का शायद असर है
बदन में कुछ हरारत आ रही है

छुआ जबसे है तुमने यार मुझको
रकीबों की शिकायत आ रही है

सुकूँ से नींद लेना चाहता हूँ
मगर उनको शरारत आ रही है

बना है जो मेरी नींदों का दुश्मन
उसी से बू-ए-रिफ़ाक़त आ रही है

चुनावी साल है तो रहनुमा को
गरीबों पर मुहब्बत आ रही है

✍️ डॉ पवन मिश्र

बू-ए-रिफ़ाक़त- दोस्ती की महक

Sunday 3 March 2024

ग़ज़ल- हर घड़ी अन्याय का प्रतिकार होना चाहिये

हर घड़ी अन्याय का प्रतिकार होना चाहिये
क्रूरता के वक्ष पर चढ़ वार होना चाहिये

मूक दर्शक बन के कब तक देखना विस्तार को
जंगली बेलों का अब उपचार होना चाहिये

झूठ के विज्ञापनों का शोर कब तक हम सुनें
सत्य के संवाद का अख़बार होना चाहिये

यदि हो वाणीपुत्र तो फिर राग दरबारी तजो
लेखनी में आपकी अंगार होना चाहिये

थक गया हूँ लड़ते लड़ते ज़िंदगी की जंग मैं
इस लड़ाई में भी इक इतवार होना चाहिये

मात्र मेरी भावना से बन नहीं पाएगी बात
आपकी आंखों में भी तो प्यार होना चाहिये

लिबलिबा व्यक्तित्व लेकर जी रहे तो व्यर्थ है
रीढ़ की हड्डी पे कुछ तो भार होना चाहिए

✍️ डॉ पवन मिश्र

Saturday 24 February 2024

ग़ज़ल- प्रतीक्षा है तुम्हारे आगमन की

ये रातें अब नहीं कटतीं तपन की
प्रतीक्षा है तुम्हारे आगमन की

अधर को चाह है अधरों की तेरे
नयन को रूप-रस के आचमन की

मिलन ही प्रेम का है सत्य अंतिम
नही है बाध्यता जीवन-मरण की

दिखेगा आप के भीतर ही स्रष्टा
मिलेगी दृष्टि जब अंतर्नयन की

कभी समझे नहीं रामत्व क्या है
कथाएं कह रहे बस वनगमन की

बुराई ही दिखे जिनको चतुर्दिक
जरूरत है उन्हें स्व-आकलन की

कदाचित भूल जाएं लोग मुझको
तुम्हे तो याद आएगी पवन की ??

✍️ डॉ पवन मिश्र





ग़ज़ल- अगर हो सोच ही जब अतिक्रमण की

अगर हो सोच ही जब अतिक्रमण की
कहाँ फिर बात होगी आचरण की

कलुष अंतःकरण में बढ़ रहा है
मगर चिन्ता उन्हें बस आवरण की

गहन निद्रा में सब डूबे हुए हैं
मशालें कौन थामे जागरण की

रहेगा लोभ का रावण जहां भी
बनेगी योजना सीता हरण की

विचारों के लिये लड़ना ही होगा
कठिन वेला है मित्रों संक्रमण की

कई ढांचे कथाएं कह रहे हैं
हमारी अस्मिता पर आक्रमण की

✍️ डॉ पवन मिश्र

Friday 19 January 2024

कविता- रामलला की प्राण प्रतिष्ठा

(अयोध्या में रामलला की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा के वर्तमान हालात के सम्बंध में मत्त सवैया छन्द आधारित अभिव्यक्ति)


धर्म प्राण है राजनीति का

राजनीति और राष्ट्रनीति का

लेकिन कुत्सित खद्दरधारी

लोकतंत्र के कुछ व्यापारी

राजनीति सुविधा की करते

नई-नई परिभाषा गढ़ते

पहले राम नहीं थे इनके

इस हित काम नहीं थे इनके

लेकिन अब वोटों के कारण

राम राम करते ये रावण

भर ललाट पर चंदन पोते

राजनीति का दुखड़ा रोते

लेकिन उनको ये बतलाओ

कोई तो जाकर समझाओ

छोड़ो सारी कारस्तानी

का बरसा जब कृषी सुखानी


तुमको भी तो समय मिला था

रजवाड़े में निलय मिला था

अपने पाप जरा धो लेते

पुण्य बीज कुछ तो बो लेते

भक्तों के कुछ दुख हर लेते

कुछ तो रामकाज कर लेते

लेकिन नीयत के तुम कारे

मुस्लिम तुष्टिकरण के मारे

हिन्दू हिय को तोड़ा तुमने

मंदिर से मुख मोड़ा तुमने

जबरन तुमने डाला ताला

राम काल्पनिक हैं, कह डाला


रक्षित करते रहे सदा तुम

पोषित करते रहे सदा तुम

ढांचे जैसी एक बला को

रखा टेंट में रामलला को


भारत माता के बच्चों पर

कारसेवकों के जत्थों पर

गोली तक चलवाई तुमने

सरयू लाल कराई तुमने

तुम कहते थे पाप नहीं है

कोई पश्चाताप नहीं है

फिर क्यूं खोज रहे आमंत्रण

अवधपुरी से मिले निमंत्रण

दम्भ हुआ सारा छू-मंतर

मंदिर बनते ही यह अंतर?


लेकिन जनता जान चुकी है

छल-प्रपंच पहचान चुकी है

रामधाम पर उसका हक है

रामलला का जो सेवक है

वर्षों से जो तपा-खपा है

निस दिन जिसने राम जपा है

मंदिर हित बलिदान दिया है

श्रम-धन छोड़ो प्राण दिया है

मुगलों को झुठलाया जिसने

मंदिर वहीं बनाया जिसने


बात एक बस यही सही है

जनता भी कह रही यही है

अब तक जो बस रहा राम का

श्रेय उसी को रामधाम का

अपने शीश नवाकर बोलो

दोनों हाथ उठाकर बोलो

भगवत वत्सल का ही नाम

जय-जय जय-जय जय श्री राम


✍️ डॉ पवन मिश्र