Sunday 17 March 2024

ग़ज़ल- तुम्हारे घर जो बरकत आ रही है

तुम्हारे घर जो बरकत आ रही है
वो बेटी की बदौलत आ रही है

तुम्हारे साथ का शायद असर है
बदन में कुछ हरारत आ रही है

छुआ जबसे है तुमने यार मुझको
रकीबों की शिकायत आ रही है

सुकूँ से नींद लेना चाहता हूँ
मगर उनको शरारत आ रही है

बना है जो मेरी नींदों का दुश्मन
उसी से बू-ए-रिफ़ाक़त आ रही है

चुनावी साल है तो रहनुमा को
गरीबों पर मुहब्बत आ रही है

✍️ डॉ पवन मिश्र

बू-ए-रिफ़ाक़त- दोस्ती की महक

No comments:

Post a Comment