Sunday 19 July 2020

ग़ज़ल- दर्द-ओ-ग़म का ठौर-ठिकाना लगता है


दर्द-ओ-ग़म का ठौर-ठिकाना लगता है।
दिल का ज़ख्मों से याराना लगता है।।

जो भी मिलता है बेगाना लगता है।
आईना जाना-पहचाना लगता है।।

नजरें तो पल भर में मिलती हैं लेकिन।
कहते कहते एक जमाना लगता है।।

मेरे जीवन में तेरा होना हमदम।
सच बोलूं तो इक अफ़साना लगता है।।

हर दस्तक इक हूक उठाती है दिल में।
दरवाजे पर दोस्त पुराना लगता है।।

मुस्कानों में दर्द छुपाते हो तुम भी।
तेरा मेरा एक घराना लगता है।।

                         ✍️ डॉ पवन मिश्र

Saturday 18 July 2020

गीत- हम शब्दों के जादूगर हैं


हम शब्दों के जादूगर हैं, जादू करने आये हैं।
निष्ठुर हिय हित प्रेम पुष्प की, पौध संग में लाये हैं।।
हम शब्दों के जादूगर हैं, जादू करने आये हैं।।

पलकों की सूखी कोरों को हम चाहें तो नम कर दें।
शब्दों के मरहम से मन की पीड़ाओं को कम कर दें।।
तपते मरुथल पर हमने रिमझिम सावन बरसाये हैं।
हम शब्दों के जादूगर हैं, जादू करने आये हैं।१।

छलक पड़े आँसू तो उनको पल भर में मोती कर दें।
जीवन का नैराश्य मिटाकर आशाओं से हम भर दें।।
अँधियारे से लड़ने देखो कितने जुगनू लाये हैं।
हम शब्दों के जादूगर हैं, जादू करने आये हैं।२।

भौरों का गुंजार सुनाया कांटो का प्रतिकार किया।
एकाकी विरहन को हमने शब्दों का संसार दिया।।
हमने ही तो गीत मिलन के इन कण्ठों से गाये हैं।
हम शब्दों के जादूगर हैं, जादू करने आये हैं।३।
 
                                       ✍️ डॉ पवन मिश्र