Sunday 11 June 2023

ग़ज़ल- मुहब्बत में उदासी हिज़्र तन्हाई ही पाए हैं

 मुहब्बत में उदासी हिज़्र तन्हाई ही पाए हैं

यही गर्द-ए-सफ़र हम आज अपने साथ लाए हैं


ख़ुलूस-ए-यार मिल जाता तो भी कुछ सब्र हो जाता

मगर राह-ए-मुहब्बत से तही दस्त आज आए हैं


न छेड़ो दास्तां कोई अभी सब ज़ख्म हैं ताजे 

बड़ी मुश्किल से हमने अश्क़ आंखों में छुपाए हैं


पुराने ख़त, ये सूखे फूल, ये तस्वीर के टुकड़े

तुम्हें हम याद रखने के बहाने ढूंढ लाए हैं


सुना है बज़्म में तेरी हजारों लोग हैं लेकिन

हमारे दश्त में तो बस तेरी यादों के साए हैं


सबब तुमको मुहब्बत का बताएं और क्या यारो

जिन्हें चाहा था शिद्दत से उन्हीं के हम सताए हैं


✍️ डॉ पवन मिश्र


हिज़्र- जुदाई

गर्द- धूल

ख़ुलूस- निष्कपटता, हार्दिक सम्बन्ध

तही- खाली

दस्त- हाथ

बज़्म- महफ़िल

दश्त- निर्जन स्थान, बयाबान, जंगल

ग़ज़ल- बनाया रहनुमा जिनको उन्हीं के हम सताए हैं

बनाया रहनुमा जिनको उन्हीं के हम सताए हैं

जिताया था जिन्हें हमने उन्हीं से मात खाए हैं


जुगलबंदी सियासत में अजब सी हो रही देखो

जो कल तक धुर विरोधी थे वही सब साथ आए हैं


क़ज़ा आएगी जब मिलने नुमायां हो ही जायेगा

जिन्हें अपना समझते हो वो सब के सब पराए हैं


इन्हें कमतर समझकर ज्ञान देना भूल ही होगी

ये बच्चे आजकल के दौर के सीखे सिखाए हैं


बड़े जबसे हुए बच्चे बहुत सँकरा हुआ आंगन

अजब हालात बूढ़े बाप के जीवन में आए हैं


करोना और उसपे शह्र की बेदर्द दीवारें

तभी तो गांव के कच्चे घरौंदे याद आए हैं


अक़ीदत है इबादत है मुहब्बत एक नेमत है

मगर वहशी दरिंदों ने इसे नश्तर चुभाए हैं


✍️ डॉ पवन मिश्र


क़ज़ा- मृत्यु

नुमायां- स्पष्ट

अक़ीदत- भरोसा

इबादत- प्रार्थना