Saturday 14 October 2023

गीत- स्नेह सम्मिलन ५

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा भिवानी हेर।

राम-लखन का रस्ता देखें, ज्यों शबरी के बेर।।

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा भिवानी हेर।।


एक वर्ष के बाद आई है, नेह-मिलन की वेला।

हरियाणा में खूब सजेगा वाणीजन का मेला।।

लोकगीत की धुन पर सारे नाचेंगे-झूमेंगे।

ज्वार बाजरा ग्वार फली का स्वाद सभी चक्खेंगे।।

जल्दी से अब टिकट करा लो हो न जाये देर।

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा भिवानी हेर।।


पहली बार किशनपुर वाले भूल गए क्या वो पल,

एकडला के गन्नों का रस वो यमुना का कल-कल।

याद नहीं क्या प्रथम मिलन की नेह भरी वो बतिया,

जौ मकई की सोंधी रोटी वो अमरूद की बगिया।।

वाणी के उस प्रथम मंच से खूब दहाड़े शेर,

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा भिवानी हेर।।


दूजी बार गए ददरा अब्दुल हमीद के गांव,

अबकी बार थी अमराई और उसकी ठंडी छाँव।

चटक धूप में सभी मगन थे नेह की चादर ताने,

ढोल मंजीरे से उल्लासित कजरी के दीवाने।।

उमड़ घुमड़ कर वही भाव फिर हमें रहा है टेर,

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा भिवानी हेर।।


उसके बाद सभी वाणीजन पहुंचे थे इक मरुथर,

कुछ ने पकड़ी ट्रेन हावड़ा कुछ ने थामी मरुधर।

ग्राम उदासर ने अद्भुत सत्कार किया था सबका,

राजस्थानी भोजन था और था वाणी का तबका।।

अद्भुत मंच सजा था उस दिन नगर था बीकानेर,

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा भिवानी हेर।।


याद करो वो चौथी बारी, गंगा तट का रंग

बाबा भोले की नगरी में हुआ था जब हुड़दंग।

कतकी मेला के पहले ही मिले थे जब दीवाने,

शमा जलाने स्नेह मिलन की आए थे परवाने।।

ढोल-मँजीरा हरमोनियम को, बैठे थे सब घेर।

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा भिवानी हेर।।

राम-लखन का रस्ता देखें, ज्यों शबरी के बेर।।

स्नेह सम्मिलन तुम्हे पुकारे, रहा भिवानी हेर।।


                                  ✍ डॉ पवन मिश्र


Monday 9 October 2023

ग़ज़ल- जीवन तुमसे ही है मधुबन

जीवन तुमसे ही है मधुबन
वरना तो है निर्जन कानन

एक तरफ है सारी दुनिया
एक तरफ है तुम सँग जीवन

तेरी एक छुवन से प्रियतम
तन-मन हो जाता चन्दनवन

याद तुम्हारी जब आती है
आंखों से झरता है सावन

दरवाजे की हर आहट पर
बढ़ जाती है हिय की धड़कन

रूप अनूप नहीं है लेकिन
प्रेम पवन का निश्छल पावन

✍️ डॉ पवन मिश्र

Saturday 7 October 2023

ग़ज़ल- उलझन, तड़पन, विलपन, क्रंदन

उलझन, तड़पन, विलपन, क्रंदन 
निर्धन का बस इतना जीवन

भरी जेब वाले क्या जानें
खाली जेबों का भारीपन

बारिश की बूंदें जब आतीं
याद बहुत आता है बचपन

हाथ बढ़ाकर इन शहरों ने
गांव किये हैं लगभग निर्जन

दरवाजे की रौनक गायब
खाली खूंटा ढूंढे गोधन

उम्र बढ़े ज्यों-ज्यों बच्चों की
बँटता जाता घर का आँगन

✍️ डॉ पवन मिश्र

Friday 6 October 2023

ग़ज़ल- उम्र भर द्वेष-राग रखते हैं

उम्र भर द्वेष-राग रखते हैं
लोग दिल में दिमाग रखते हैं

पास आकर समझ सकोगे तुम
फूल हैं हम पराग रखते हैं

तेरे गुण-दोष से परे हैं हम
हम वो चंदन जो नाग रखते हैं

भारती के सपूत हैं हम तो
अपने चिंतन में त्याग रखते हैं

साथ रहते हैं मां-पिता के हम
घर मे काशी-प्रयाग रखते हैं

पल में लोहे को भी जो पिघला दे
हौसलों की वो आग रखते हैं

✍️ डॉ पवन मिश्र

Thursday 5 October 2023

ग़ज़ल- इश्क़ की गलियों में आवारों के बीच

इश्क़ की गलियों में आवारों के बीच
फँस गया आकर मैं बीमारों के बीच

आशिकों की भीड़ में रहना है अब
रतजगे करने हैं बेदारों के बीच 

ओढ़ ली खादी मगर हूँ सोचता
कैसे रह पाऊंगा अय्यारों के बीच

आस्तीं में सांप ढेरों पल रहे
जी रहा हूँ उनकी फुंकारों के बीच

अपनी वो आलोचना कैसे सुने
वो तो बैठा है परस्तारों के बीच

अब चमन में अम्न होना चाहिये
आ रहे हैं फूल तलवारों के बीच

जिस घड़ी सर पेश कर देगा पवन
होड़ मच जाएगी दस्तारों के बीच

✍️ डॉ पवन मिश्र

बेदारों- जिन्हें नींद न आती हो, जगे हुए
परस्तारों- प्रशंसको
दस्तारों- दस्तार (पगड़ी) का बहुवचन

Sunday 1 October 2023

ग़ज़ल- वो लड़की करीब और आने लगी

वो लड़की करीब और आने लगी
मेरी धड़कनों में समाने लगी

ठिठुरती हुई रात बेबस बनी
वो सांसों से सांसे मिलाने लगी

बरसने को मुझपे वो तैयार है
घने मेघ सी नभ पे छाने लगी

न मैकद न सागर न कोई सुबू
लबों से ही मय वो पिलाने लगी

मुहब्बत का ऐसा हुआ है असर
मेरे गीत वो गुनगुनाने लगी

नहीं उसके जैसा कोई दूसरा
मेरी दीद मुझको बताने लगी

मिला साथ उसका है जबसे सुनो
मुझे जिंदगी रास आने लगी

सफर में बढ़ी धूप जैसे ही कुछ
अचानक ही मां याद आने लगी

ख़यालों में मेरे वो आकर पवन
हसीं एक दुनिया बसाने लगी

✍️ डॉ पवन मिश्र