Saturday 7 October 2023

ग़ज़ल- उलझन, तड़पन, विलपन, क्रंदन

उलझन, तड़पन, विलपन, क्रंदन 
निर्धन का बस इतना जीवन

भरी जेब वाले क्या जानें
खाली जेबों का भारीपन

बारिश की बूंदें जब आतीं
याद बहुत आता है बचपन

हाथ बढ़ाकर इन शहरों ने
गांव किये हैं लगभग निर्जन

दरवाजे की रौनक गायब
खाली खूंटा ढूंढे गोधन

उम्र बढ़े ज्यों-ज्यों बच्चों की
बँटता जाता घर का आँगन

✍️ डॉ पवन मिश्र

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