Sunday 17 December 2017

ग़ज़ल- बेक़रार सा क्यों है

 २१२२   १२१२    २२
दिल मेरा बेकरार सा क्यों है।
हर तरफ ही गुबार सा क्यों है।।

वो नहीं आयेगा मगर फिर भी।
आंखों को इंतजार सा क्यों है।।

इश्क़ कहते जिसे जमाने में।
एक झूठा करार सा क्यों है।।

आइना क्या कहीं दिखा उनको।
आज वो शर्मसार सा क्यों है।।

कत्ल उसने नहीं किया तो फिर।
पैरहन दागदार सा क्यों है।।

चोट खाकर भी दिल नहीं सँभला।
इश्क़ का फिर बुखार सा क्यों है।।

                   ✍ डॉ पवन मिश्र
गुबार= धूल

Tuesday 12 December 2017

नवगीत- लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है


अब तो आओ कृष्ण धरा ये थर्राती है।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।

द्युत क्रीड़ा में व्यस्त युधिष्ठिर खोया है,
अर्जुन का गांडीव अभी तक सोया है।
दुर्योधन निर्द्वन्द हुआ है फिर देखो,
दुःशासन को शर्म तनिक ना आती है।।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।

धधक रही मानवता की धू धू  होली,
विचरण करती गिद्धों की वहशी टोली।
नारी का सम्मान नहीं अब आँखों में,
भीष्म मौन फिर गांधारी सकुचाती है।।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।

सोने के मृग गली गली अब फिरते हैं,
और जटायू बेबस मर मर गिरते हैं।
लक्ष्मण रेखा लांघ रही देखो सीता,
संत भेष में फिर से रावण घाती है।।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है,
अब तो आओ कृष्ण धरा ये थर्राती।।


           ✍ डॉ पवन मिश्र

Monday 11 December 2017

कुण्डलिया- राजनैतिक व्यंग


पोंगा पंडित बन गया, देखो उनका मेठ।
नौकर जय जय कर रहे, गद्दी बैठा सेठ।।
गद्दी बैठा सेठ, नहीं उसको कुछ आता।
लेने को गुरुमंत्र, भागकर इटली जाता।।
सुनो पवन की बात, शीघ्र उतरेगा चोंगा।
खुल जाएगी पोल, बचेगा कब तक पोंगा।१।

टोपी जालीदार थी, कुछ दिन पहले माथ।
मौका आया ले लिए, एक जनेऊ साथ।।
एक जनेऊ साथ, उमंगे मन में लेकर।
लोकतंत्र की जंग, लड़े हैं गाली देकर।।
जनता को ये लोग, समझते भोली गोपी।
इसीलिये तो रोज, बदलते पगड़ी टोपी।२।

                               ✍ डॉ पवन मिश्र

Sunday 10 December 2017

भोजपुरी गीत- आइल बा परधानी के चुनाव हो


आइल बा परधानी के चुनाव हो।
बाढ़ि गईल केतनन के भाव हो।।

केहू गदहा लेके घूमे,
केहू कूकुर घोड़ा।
केहू दउड़े गांव गांव तक,
केहू थोड़ा थोड़ा।।
हर प्रत्याशी देखावे परभाव हो,
आइल बा परधानी के चुनाव हो।।

कुछ प्रत्याशी पाउच बांटे,
कुछ त बांटे पईसा।
कुछ मीठा मीठा बतिया के,
रंग जमावें अईसा।।
सब दिखलावें झूठ मूठ लगाव हो,
आइल बा परधानी के चुनाव हो।।

वोट के चक्कर में त बबुआ,
सुबह शाम अझुराइल बा।
बाद इलेक्शन के ई नेता,
खोजिहअ कहाँ लुकाइल बा।।
देखिहअ ईहे दी तोहके घाव हो,
आइल बा परधानी के चुनाव हो।।

रमेसर भईया तीन बेर से,
हारत हउवें परधानी।
एक बार त नाम से भउजी,
के भी लड़लें परधानी।।
मोछ पे तबहूँ न दे पवलें ताव हो,
फेर आ गईल परधानी चुनाव हो।।

सन्तो भाभी कहे लगली,
हमके जिन फुसलाईं।
अबकी हम न लड़ब चुनाव,
तनिको मत बहिकाईं।।
हमरा के ना कउनो अब चाव हो,
भाड़ में गईल परधानी चुनाव हो।।

                    ✍ डॉ पवन मिश्र

Thursday 7 December 2017

ग़ज़ल- वो कहें लाख चाहे ये सरकार है

212    212    212    212
वो कहें लाख चाहे ये सरकार है।
मैं कहूँ चापलूसों का दरबार है।।

मेरी लानत मिले रहनुमाओं को उन।
देश ही बेचना जिनका व्यापार है।।

कौम की खाद है वोट की फ़स्ल में।
और कहते उन्हें मुल्क़ से प्यार है।।

सब चुनावी गणित नोट से हल किये।
जीत तो वो गये देश की हार है।।

चट्टे बट्टे सभी एक ही थाल के।
बस सियासत ही है झूठी तकरार है।।

अब बयां क्या करे इस चमन को पवन।
शाख़ पर उल्लुओं की तो भरमार है।।

                          ✍ डॉ पवन मिश्र


Wednesday 6 December 2017

ग़ज़ल- आज फिर उसने कुछ कहा मुझसे

 २१२२    १२१२    २२
आज फिर उसने कुछ कहा मुझसे।
आज फिर उसने कुछ सुना मुझसे।।

बाद मुद्दत के आज बिफ़रा था।
आज दिल खोल कर लड़ा मुझसे।।

जिसकी क़ुर्बत में शाम कटनी थी।
हो गया था वही ख़फ़ा मुझसे।।

दूर दिल से हुए सभी शिकवे।
टूट कर ऐसे वो मिला मुझसे।।

दरमियाँ है फ़क़त मुहब्बत ही।
अब उसे कुछ नहीं गिला मुझसे।।

चांद तारे या वो फ़लक सारा।
बोल क्या चाहिए ? बता मुझसे।।

                  ✍ डॉ पवन मिश्र

क़ुर्बत= सामीप्य
फ़लक= आसमान

Sunday 3 December 2017

ग़ज़ल- मेरी रूह जगाने वाला


छेड़कर मुझको मेरी रूह जगाने वाला।
गुम कहाँ है वो मुझे मुझसे मिलाने वाला।।

तीरगी फ़ैली है हर ओर उदासी लेकर।
कोई तो आए यहां राह दिखाने वाला।।

तेरी नजरों के सिवा और नहीं चारा कुछ।
मैकदे में भी नहीं कोई पिलाने वाला।।

बस ये उम्मीद लिये यार यहां बैठा हूँ।
एक दिन आएगा वो रूठ के जाने वाला।।

बुत बताएंगे भला कैसे जली बस्ती के।
कौन था इनको सरेआम जलाने वाला।।

कब तलक देखें सहम के ये गुलिस्तां जलते।
कोई तो हाथ बढ़े, आये बचाने वाला।।

                                ✍ डॉ पवन मिश्र