Saturday 7 September 2019

ग़ज़ल- शेर उनकी याद में हम वस्ल के लिखते रहे



शेर उनकी याद में हम वस्ल के लिखते रहे।
वो मगर बस फासलों पर फासले लिखते रहे।।

वो गए और हिचकियाँ भी आजकल आती नहीं।
एक हम हैं गीत बस उनके लिए लिखते रहे।।

नींद सबकी ले उड़ा वो आख़री हिचकी के सँग।
चैन से वो सो गया हम मरसिए लिखते रहे।।

भीड़ में चर्चा रही, तूफ़ान की, सैलाब की।
हम तो केवल कश्तियों के हौसले लिखते रहे।।

मंज़िले उन कोशिशों को ही अता होती यहां।
हौसलों से जो सफ़र के कायदे लिखते रहे।।

जिंदगी के फ़लसफ़े चल सीख लें उनसे पवन।
अश्क़ आंखों में छिपा जो कहकहे लिखते रहे।।

                              ✍ डॉ पवन मिश्र
वस्ल= मिलन
मरसिए= शोकगीत