Sunday 27 November 2022

दोहे- प्रेम

 प्रेम विषय अध्यात्म का, एक अनन्ताकाश।

दैहिक इसमें कुछ नहीं, अंतर्मन की प्यास।१।


प्रेम पुण्य पावन प्रखर, ज्यों गंगा की धार।

क्षुद्र स्वार्थ हित दुष्टजन, करते बस व्यभिचार।२।


लिए छलावा प्रेम का, करते लव जेहाद।

नहीं धरा पर और हैं, इनके सम जल्लाद।३।


सूटकेस का कभी तो, फ्रिज का कभी प्रयोग।

तथाकथित प्रेमी फिरें, मन में लेकर रोग।४।


श्रद्धा मन में थी नहीं, कैसे रखता मान।

पैंतिस टुकड़ों में मिली, एक बाप की जान।५।


प्रतिक्षण होता जा रहा, कब तक देखें ह्रास।

नैतिक मूल्यों के लिये, मिलकर करें प्रयास।६।


सम्बन्धों में प्रेम हो, सबका हो सम्मान।

सुता पुत्र को दीजिये, नैतिकता का ज्ञान।७।


                              ✍️ डॉ पवन मिश्र








Saturday 19 November 2022

ग़ज़ल- अलहदा भी था लेकिन


वो सबके साथ भी था अलहदा भी था लेकिन

भला भी था वो ज़रा सा बुरा भी था लेकिन


नहीं भले वो कभी खुल के कह सका मुझसे

दबी-दबी सी ज़बाँ में कहा भी था लेकिन


रिवाज़ो रस्म की ख़ातिर जुदा हुआ मुझसे

विदा के वक्त वो कुछ पल रुका भी था लेकिन


शब-ए-फ़िराक़ थी कुछ कह नहीं सके दोनों

शब-ए-विसाल का चर्चा हुआ भी था लेकिन


उसे लगा कि नहीं दरमियां बचा अब कुछ

सुलगती ऑंखों में पानी बचा भी था लेकिन


भले ही आज न आये वो दीद में मेरी

इसी जगह वो मुझे कल दिखा भी था लेकिन


नहीं मिला जो मुझे साथ उम्र भर तो क्या

वो कल तलक मेरा हमदम रहा भी था लेकिन

                                ✍️ डॉ पवन मिश्र



शब-ए-फ़िराक़- जुदाई की रात

शब-ए-विसाल- मिलन की रात