Sunday 13 May 2018

ग़ज़ल- इश्क में अक्सर गलत इक फैसला साबित हुए


इश्क में अक्सर गलत इक फैसला साबित हुए।
हम वफ़ा करते रहे और बेवफ़ा साबित हुए।।

उनकी नज़रों में हमेशा इक ख़ता साबित हुए।
इक दफ़ा की बात छोड़ो बारहा साबित हुए।।

जूझते है जो भरोसा करके खुद आमाल पर।
डूबती कश्ती के वो ही नाख़ुदा साबित हुए।।

उम्र भर दमड़ी कमाई साथ फिर भी कुछ न था।
जब खुदा का नूर फैला बेनवा साबित हुए।।

ऐ ख़ुदा किस मोड़ पे जाएगी अब ये जिंदगी।
हमसफ़र समझा था जिनको रहनुमा साबित हुए।।**

लोग कतराने लगे हैं तबसे मिलने में पवन।
जब से हम लोगों की ख़ातिर आइना साबित हुए।।

                                       ✍ *डॉ पवन मिश्र*
** मुजफ्फर हनफ़ी साहब का मिसरा

बारहा= बार-बार, हमेशा
आमाल= कर्म
नाख़ुदा= नाविक, कर्णधार
बेनवा= कंगाल, भिखारी

Tuesday 8 May 2018

ग़ज़ल- बजबजाती नालियों में रह रहा है आदमी


बजबजाती नालियों में रह रहा है आदमी।
मौन है देखो सियासत सह रहा है आदमी।।

उस खुदा ने क्या अता कर दीं जरा सी नेमतें।
आज अपने को खुदा ही कह रहा है आदमी।।

ख़ौफ़ का मंज़र ज़माने में है दिखता आजकल।
आदमी के ज़ुल्म देखो सह रहा है आदमी।।

छोड़कर अपनी जड़ों को जबसे उड़ने ये लगा।
ताश के पत्तों के जैसे ढह रहा है आदमी।।

आँख पर पट्टी चढ़ाए ज़रपरस्ती की पवन।
किस हवा के साथ देखो बह रहा है आदमी।।


                               ✍ *डॉ पवन मिश्र*
ज़रपरस्ती= पैसे की पूजा करना