Saturday 24 February 2024

ग़ज़ल- प्रतीक्षा है तुम्हारे आगमन की

ये रातें अब नहीं कटतीं तपन की
प्रतीक्षा है तुम्हारे आगमन की

अधर को चाह है अधरों की तेरे
नयन को रूप-रस के आचमन की

मिलन ही प्रेम का है सत्य अंतिम
नही है बाध्यता जीवन-मरण की

दिखेगा आप के भीतर ही स्रष्टा
मिलेगी दृष्टि जब अंतर्नयन की

कभी समझे नहीं रामत्व क्या है
कथाएं कह रहे बस वनगमन की

बुराई ही दिखे जिनको चतुर्दिक
जरूरत है उन्हें स्व-आकलन की

कदाचित भूल जाएं लोग मुझको
तुम्हे तो याद आएगी पवन की ??

✍️ डॉ पवन मिश्र





ग़ज़ल- अगर हो सोच ही जब अतिक्रमण की

अगर हो सोच ही जब अतिक्रमण की
कहाँ फिर बात होगी आचरण की

कलुष अंतःकरण में बढ़ रहा है
मगर चिन्ता उन्हें बस आवरण की

गहन निद्रा में सब डूबे हुए हैं
मशालें कौन थामे जागरण की

रहेगा लोभ का रावण जहां भी
बनेगी योजना सीता हरण की

विचारों के लिये लड़ना ही होगा
कठिन वेला है मित्रों संक्रमण की

कई ढांचे कथाएं कह रहे हैं
हमारी अस्मिता पर आक्रमण की

✍️ डॉ पवन मिश्र