बताओ क्या कोई काहिल कभी मंजिल से मिलता है ?
समंदर चीरने वाला ही तो साहिल से मिलता है।।
यहां बेताबियां बेदारगी बेशक मिले लेकिन।
मुहब्बत में सुकूं यारों बड़ी मुश्किल से मिलता है।।
नहीं रहता है अब वो मुत्मइन मेरे नजरिये से।
वो शायद आजकल मेरे किसी मुकबिल से मिलता है।।
निगाहें उसकी कातिल हैं सबब हमको पता लेकिन।
करें क्या हम सुकूं हमको उसी कातिल से मिलता है।।
दिखावा कर नहीं पाता नवाज़िश का किसी से भी।
पवन जिससे भी मिलता है हमेशा दिल से मिलता है।।
✍️ डॉ पवन मिश्र
मुत्मइन= सहमत
मुकबिल= विरोधी