Sunday 19 April 2020

अप्प दीपो भव- कोरोना संकट काल

अप्प दीपो भव

          आइये, आज आप सबको एक कहानी सुनाता हूँ, एक सत्य घटना। कोरोना संकट और इस लॉकडाउन से उपज रहे भय और नैराश्य के वातावरण में इसकी महती आवश्यकता भी है। आज जब लॉक डाउन में हम सभी घरों में हैं। तो धीरे धीरे विचारों में एक शून्यता हावी होती जा रही है। यदि हमारे बच्चे या अन्य परिवारी जन किसी कारण वश कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर किसी और शहर में फँस गए हैं तो एक अजीब सी हताशा और घबराहट मन मे पनपने लग रही है।
     कहानी है मानसी सारस्वत की। १९ वर्षीया यह बेटी यूँ तो मूलरूप से कानपुर, उ0प्र0 की निवासी है लेकिन शिक्षा ग्रहण की दृष्टि से गत २ वर्षों से कनाडा में है। इनके पिता संजय सारस्वत जी, जो कि पं0 दीनदयाल विद्यालय, कानपुर के छात्र रहे हैं, वो वर्तमान में मुंबई में कार्यरत हैं।
  कोरोना संकट के कारण लॉक डाउन की घोषणा और फिर हवाई जहाजों की उड़ानों के निरस्तीकरण के कारण मानसी कनाडा से भारत नहीं आ पाईं। जिस हॉस्टल में मानसी रहती थी, वो खाली करा लिया गया था। लेकिन माता-पिता से कोसों दूर, दूसरे देश में बिल्कुल अकेले होते हुए भी मानसी घबराई नहीं। उसने अकेले ही प्रयास पूर्वक पहले अपने रहने का प्रबंध किया और फिर अपनी पूरी सकारात्मक ऊर्जा को यह विचार करने में लगा दिया कि इस संकट काल में वह दूसरे लोगों की क्या और कैसे सहायता कर सकती है ?
  उसने निर्णय लिया कि वो अपने स्तर से धन संग्रह करेगी और अपने पैतृक जनपद कानपुर के कम से कम १५ ऐसे असहाय परिवारों के लिये पूरे महीने के राशन की व्यवस्था करेगी, जिनकी आजीविका का साधन इस लॉक डाउन के कारण छिन गया है। जो रोज पानी पीने के लिये रोज ही कुंआ खोदते थे। इस दिशा में उसने प्रयास प्रारम्भ किये, एक प्रकल्प प्रारम्भ किया, मिशन सहारा।
 अपने पिता से चर्चा के बाद जमीन पर इस योजना को मूर्त रूप देने के लिये युगभारती संस्था से सम्पर्क किया, जो पूर्व से ही ऐसे परिवारों को चिन्हित कर राशन वितरण का कार्य नियमित रूप से कर रही थी। नव-शक्ति का संचार हुआ और युगभारती आज मानसी जी के प्रयासों को अमली जामा पहनाते हुए उन परिवारों तक राशन पहुंचाने का कार्य कर रही है। आज मिशन सहारा और युगभारती संस्था ऐसे जरूरतमंद परिवारों के मासिक राशन व्यवस्था हेतु कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही है।
             इस पूरी कहानी को साझा करने के पीछे मन्तव्य मात्र यह है कि सोचिये एक लड़की जो अपने परिवार से, अपने देश से कोसों दूर है, अकेली है, जिसका हॉस्टल भी बन्द हो गया है। हम और हमारे बच्चों की तरह ही लॉक डाउन में बन्द है। लेकिन उसने स्वयं पर न तो किसी भय को हावी होने दिया न लूडो, कैरम या यूट्यूब के शोर में खुद को गुम कर लिया। उसकी भीतरी शक्ति और परिवार के संस्कार ने इस संकट काल से उसे मजबूती से लड़ने की प्रेरणा दी और आज वो पूरे समाज के लिये एक प्रेरणा बनकर उभरी है।
 क्या हम सब ये नहीं कर सकते? क्या हमारे बच्चे ऐसा प्रयास नहीं कर सकते ? आवश्यकता स्वयं की अंतर्निहित शक्तियों को पहचानने की है। तय हमें करना है कि इस संकटकाल में हमारा चरित्र किस प्रकार से उभर कर आये और विचार करें कि हम अपने समाज के लिये क्या कर सकते हैं? सिर्फ सरकारों के माथे सारी जिम्मेदारी छोड़कर चादर तान लेंगे तो से यह काल राष्ट्र और मानवता की दृष्टि से और भयावह ही होता जाएगा।
  हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः। तो आइए कोरोना विषाणु तंतु से युद्ध में हम सभी एक दूसरे के साथ पूरी मजबूती से खड़े हों। वसुधैव कुटुंबकम की परिकल्पना को पुस्तकों से बाहर निकाल यथार्थ की जमीन पर जीने का समय है ये। सर्वे भवन्तु सुखिनः और ॐ सहनाववतु, सहनौभुनक्तु के परिपालन का काल है ये। उदाहरण बनने की शुरुआत हमें अपने से ही करनी होगी। तभी हम दूसरों को प्रेरित कर एक सूत्र में बांध पाएंगे....
           
                तीरगी में गर उजाला चाहिये।
                बन के जुगुनू जगमगाना चाहिये।।
     
                                     ✍डॉ पवन मिश्र
                                        कानपुर, उ0प्र0

Thursday 9 April 2020

कुण्डलिया- कोरोना


जगतपिता से प्रार्थना, करूँ आज करजोर।
तम कोरोना का मिटे, दिखे सुहानी भोर।।
दिखे सुहानी भोर, न ऐसी विपदा आवे।
कृपा करो करतार, महामारी मिट जावे।
त्राहि त्राहि कर लोग, हुए आकुल चिंता से।
करे पवन अरदास, विधाता-जगतपिता से।१।

कोरोना है मानता, बस ये ही अनुबंध।
सामाजिक दूरी रखो, घर को कर लो बन्द।
घर को कर लो बन्द, गर्म पानी ही पीना।
गांठ बांध लो बात, संयमित जीवन जीना।
कहे पवन कविराय, हाथ साबुन से धोना।
लापरवाही छोड़, मिटेगा तब कोरोना।२।

कोरोना के कोढ़ में, लगा ख़ाज का रोग।
भारत को छलने लगे, कुछ षडयंत्री लोग।।
कुछ षडयंत्री लोग, वायरस के जो वाहक।
मानवता पर आज, थूकते ये नालायक।।
किया संक्रमित देश, देश का हर इक कोना।
चिंतित है सरकार, मिटे कैसे कोरोना।३।

सारा जग बेहाल है, कोरोना विकराल।
कठिन समस्या बन गया, संकट का यह काल।।
संकट का यह काल, लीलता मानव जीवन।
त्रस्त सभी हैं आज, धनी हो या हो निर्धन।
लेकिन दृढ़ विश्वास, छँटेगा ये अँधियारा।
कोरोना से मुक्त, शीघ्र होगा जग सारा।४।

                             ✍️ डॉ पवन मिश्र