Sunday 29 July 2018

बालगीत- काले बादल


काले बादल काले बादल,
मेरी छत पर आओ ना।
गर्मी बढ़ती जाती देखो,
पानी अब बरसाओ ना।

धूप बरसती आसमान से,
झुलसाती है हम सबको।
देखो गर्म हवा भी आकर,
तड़पाती है हम सबको।।
सुनो जुलाई बीत रही है,
अब तो तुम आ जाओ ना।
काले बादल काले बादल,
मेरी छत पर आओ ना।।

फाड़ फाड़ के कागज रक्खे,
हमने नाव बनाने को।
लेकिन नाली सड़कें सूखीं,
जाएं कहाँ चलाने को।।
आखिर क्यों तुम रूठ गए,
इतना तो बतलाओ ना।
काले बादल काले बादल,
मेरी छत पर आओ ना।।
      
✍ अक्षिता मिश्र व डॉ पवन मिश्र

अपनी बात- बड़ी बिटिया (अक्षिता मिश्र) कल कहने लगी कि पापा स्कूल मैगज़ीन के लिये कुछ लिखना है। बस फिर क्या बिटिया बताती गई, पापा लिखते गए। देखते ही देखते 10 मिनट में मेरी काव्य सृजन यात्रा का प्रथम बालगीत सम्मुख था।