Sunday 24 July 2016

कुण्डलिया- आया सावन झूम के

आया सावन झूम के, पुरवाई के संग।
सोंधी ज्यों महकी धरा, महका हर इक अंग।।
महका हर इक अंग, लगे पेड़ो में झूले।
स्वागत हे ऋतुराज, पुष्प सरसों के फूले।।
कहे पवन ये मास, बहुत मनभावन आया।
तन मन की सुध लेन, सुनो ये सावन आया।१।

अब तक मानो थी धरा, बिन वस्त्रों की नार।
हरियाली साड़ी लिये, सावन आया द्वार।।
सावन आया द्वार, मिटाने सारी तृष्णा।
मधुर मिलन का रास, कि जैसे राधा कृष्णा।।
करें सभी आनन्द, रहे ये मौसम जब तक।
हर बगिया मुस्काय ,तरसती थी जो अब तक।२।

                                  ✍डॉ पवन मिश्र

Sunday 17 July 2016

सियासत छोड़ कर घाटी सँवारें


सियासत छोड़ कर घाटी सँवारें।
मेरे कश्मीर को ग़म से उबारें।।

छुपे किरदार जो दाढ़ी के पीछे।
तकाज़ा वक्त का उनको नकारें।।

फ़िज़ाओं में है बस बारूद फैला।
हुई काफ़ूर शबनम की फुहारें।।

मिटाये बाग़ जब खुद बाग़बाँ ही।
मदद की चाह में किसको पुकारें।।

लहू की फ़स्ल जब से बो रहे वो।
ख़िजाँ हावी हुई गुम हैं बहारें।।

भटकना छोड़ कर मोमिन मेरी सुन।
चलो केशर की क्यारी फिर सँवारें।।
                 
                     ✍ डॉ पवन मिश्र

ख़िजाँ= पतझड़
मोमिन= मुस्लिम युवक

चलों ऐसा करें रिश्ता सँवारें


चलो ऐसा करें रिश्ता सँवारें।
धुली सी चाँदनी में शब गुज़ारें।।

सफ़र की तयशुदा मंजिल वही है ।
मगर फिर भी चलो रस्ते बुहारें।।

मुक़द्दर में हमारे तिश्नगी है।
मिलेंगी कब हमें रिमझिम फुहारें।।

बनी परछाइयाँ भी अजनबी अब।
अँधेरी राह है किसको पुकारें।।

खड़ी कर ली थी तुमने दरमियां जो।
दरकती क्यों नहीं हैं वो दिवारें।।

पवन की कोशिशें जारी रहेंगी।
कि जब तक आ नहीं जाती बहारें।।

                    ✍ डॉ पवन मिश्र

Wednesday 13 July 2016

चौपाई- अद्भुत छवि मनमोहन जी की


अद्भुत छवि मनमोहन जी की,
करहुँ आरती सोहन जी की।
लाल अधर पर मुरली साजे,
कानन कुण्डल सहित विराजे।१।

पुष्प माल वक्षस्थल शोभे,
मोर मुकुट मस्तक पर लोभे।
मृगनैनन में काजल रेखा,
अप्रतिम ऐसा रूप न देखा।२।

पीत तिलक अति सुंदर लागे,
हर्षित गोप वृन्द बड़ भागे।
चक्र सुदर्शन कर में धारे,
मातु यशोदा रूप निहारे।३।

कनक समान देह अति मोहे,
मन्द हँसी मुखड़े पर सोहे।
हाथ जोड़ सब खड़े दुआरे
क्लेश हरो हे नन्द दुलारे।४।

               ✍डॉ पवन मिश्र


Saturday 9 July 2016

कुण्डलिया- भैय्या बक बक कम करो


भैय्या बक बक कम करो, मानो हमरी बात।
सोच समझ कर बोलिये, पड़ि जायेगी लात।।
पड़ि जायेगी लात, जीभ पर संयम धर लो।
बिन विचार नहि बोल, आज यह निश्चय कर लो।।
कहे पवन ये बात, करोगे दैय्या दैय्या।
लाख टके की बात, सोच के बोलो भैय्या।१।

कूपहिं के सब मेंढकी, करें बकैती लाख।
लप लप मारे अगन की , तीरे खाली राख।।
तीरे खाली राख, शेर बस बातों के ही।
दो कौड़ी औकात, असल में पिद्दी से ही।।
सुनो पवन की बात, दिखे बस चलनी सूपहिं।
उथले उथले लोग, दिखावें खुद को कूपहिं।२।

                                     ✍डॉ पवन मिश्र


Friday 8 July 2016

ग़ज़ल- बात करनी नहीं तो बुलाते हो क्यों


बात करनी नही तो बुलाते हो क्यों।
वक्त बेवक्त मुझको सताते हो क्यों।।

दिल की आवाज को अनसुना करके तुम।
अजनबी की तरह पेश आते हो क्यों।।

मेरा किरदार है कुछ नहीं तेरे बिन।
जानते हो तो फिर दूर जाते हो क्यों।।

कोई परदा नहीं दरमियां जब सनम।
अश्क़ आँखों के हमसे छुपाते हो क्यों।।

रंग औ नूर ही जब चमन ने दिया।
नोच कर गुल ख़ियाबां मिटाते हो क्यों।।

बस्तियाँ पूछती रहनुमाओं से अब।
वोट पाने को घर तुम जलाते हो क्यों।।

लो पवन आ गया रूबरू अब कहो।
बात कुछ भी नहीं तो बढ़ाते हो क्यों।।

                           ✍ डॉ पवन मिश्र

खियाबाँ= बाग़



Thursday 7 July 2016

महाभुजंगप्रयात छन्द- यही कामना है प्रिये


यही कामना है प्रिये आज मेरी,
जुदा हो सभी से हमारी कहानी।
नहीं साथ ये जिस्म है तो हुआ क्या,
सदा संग होगी तुम्हारी निशानी।
अँधेरा घनेरा कभी जो डराये,
करो याद वो रात जो थी सुहानी।
भले दूर जाओ यहाँ से कहीं भी,
कभी भूल जाना न बातें पुरानी।१।

तुम्हारी अदाएं हमे याद सारी,
निगाहें चुरा के बहाने बनाना।
कभी तल्ख़ बातें कभी प्रेम पींगें,
कभी रूठ जाना कभी मान जाना।
अविश्वास की बात होगी कभी ना,
भले लाख बाते बनाये जमाना।
भुलाया मुझे है तुम्हारे जिया ने,
खुदा भी कहे तो न माने दिवाना।२।

                    ✍डॉ पवन मिश्र

शिल्प- आठ यगण (१२२*८)

Sunday 3 July 2016

ग़ज़ल- इश्क रहमत है खुद की


इश्क रहमत है खुदा की जिसने समझाया मुझे।
पा लिया उसको अगर, फिर और क्या पाना मुझे।।

सूझता कुछ भी न था बस तीरगी ही तीरगी।
आ गया वो नूर लेकर मिल गया रस्ता मुझे।।

ख़्वाब आँखों को दिखा कर अश्क़ क्यूँ वो दे गया।
सोचता हूँ मैं ये अक्सर क्यूँ वो टकराया मुझे।।

इश्क की बातें बहुत करता था जो शामो शहर।
छोड़ कर इक मोड़ पर वो कर गया तन्हा मुझे।।

वक्त ने जब भर दिया उससे मिले हर जख़्म को।
बेवफा हमदम वही फिर याद है आया मुझे।।

                       ✍ डॉ पवन मिश्र