Thursday 28 January 2016

ताटंक- इक नापाक पड़ोसी


इक नापाक पड़ोसी की मैं बात बताने आया हूँ।
दिल में इसके जहर भरा है वही दिखाने आया हूँ।१।

काश्मीर की बात है करता ये ढोंगी अन्यायी है।
माँ बेटी की लाज लूटते इसको शर्म न आयी है।।
केसर की धरती पर इसने ख़ूनी फसलें बोई है।
शिवशंकर के आँगन ने खुद की सुन्दरता खोई है।१।

सुलग रही कश्मीरी घाटी इसने ग्रहण लगाया है।
द्रुपद सुता का दुर्योधन बन चीर हरण करवाया है।।
जेहादी चोले में रखके आतंकी भिजवाता है।
खुद के मंसूबो की ख़ातिर बच्चों को मरवाता है।२।

फूलों की घाटी में इसने गन्ध भरी बारूदों की।
सत्तर हूरों की है ख्वाहिश इन जैसे मर्दूदों की।।
पाकिस्तानी आकाओं के कुछ चमचे घाटी में भी।
आस्तीन के सांप के जैसे कुछ अपनी माटी में भी।३।

कश्मीरी गलियों में इनकी शह पर रूदन होता है।
भाड़े के हथियारों के जख्मों को भारत ढोता है।।
उसकी इन घटिया चालों को मैं बतलाने आया हूँ।
इक नापाक पड़ोसी की मैं बात बताने आया हूँ।४।
दिल में इसके जहर भरा है वही दिखाने आया हूँ।।

श्वानों के जाये हैं जो वो सिंहो से टकराते हैं।
अमरीकी दामाद बने वो गिद्धों से मडराते है।।
भूल गया तू तब करगिल पे कैसे चढ़ के बैठा था।
हिम खण्डों में कब्र बनी थी जब तू हमसे ऐंठा था।५।

ढाका में काटा था बाजू अबकी मस्तक तोड़ेंगे।
ना सुधरा तो रावलपिण्डी भारत में हम जोड़ेंगे।।
खाने के लाले हैं फिर भी बन्दूकों से भौंके है।
खुद के घर में आग लगी पर हमको रण में झोंके है।६।

अपनी काली करतूतों से बाज न तू गर आयेगा।
सैतालिस औ पैंसठ आके फिर खुद को दुहरायेगा।।
गर तुझमें साहस है तो अब खुल के आ मैदानों में।
देखें कितनी शक्ति भरी है तुझ जैसे शैतानों में।७।

तोते जैसा रट ले लेकिन काश्मीर नहीं पायेगा।
भारत के बेटों के हाथों फिर तू रौंदा जायेगा।।
काश्मीर का ख़्वाब ना पालो ये समझाने आया हूँ।
इक नापाक पड़ोसी की मैं बात बताने आया हूँ।८।
दिल में इसके जहर भरा है वही दिखाने आया हूँ।।

कब तक इसकी करनी का फल हम पर लादा जायेगा।
क्यूँ मातम का बादल पहले भारत पर ही छायेगा।।
कब तक इसकी करतूतें माँ के कोखों को लूटेगी।
विधवाओं की चूड़ी कब तक भारत भू पर टूटेगी।९।

देश हमारा आखिर कब तक इन दंशों को झेलेगा।
कब तक ये भारत माता के आँचल से यूँ खेलेगा।।
क्यों दिल्ली अब तक ना समझी इसके छद्म प्रपंचो को।
शांति दौर अब बहुत हो चुका खोलो तोप तमंचो को।१०।

चीख रहा इतिहास पुराना भूत नहीं ये बातों के।
इनकी दुम टेढ़ी ही रहती ये तो बस हैं लातों के।।
क्या डरना अमरीका से जब छप्पन इंची सीना है।
कूटनीति के मारे कब तक विष का प्याला पीना है।११।

इसके सच को नंगा कर दो आज भरे बाजारों में।
मानचित्र से ये मिट जाए रह जाए अख़बारो में।।
सोई दिल्ली के सीने में अलख जगाने आया हूँ।
इक नापाक पड़ोसी की मैं बात बताने आया हूँ।१२।
दिल में इसके जहर भरा है वही दिखाने आया हूँ।।

                                     ✍️ डॉ पवन मिश्र




Tuesday 26 January 2016

ग़ज़ल- इक़रार है इज़हार है


इकरार है इजहार है।
तो फिर कहाँ तकरार है।।

आँखे झुकी हैं शर्म से।
होठों को पर इनकार है।।

मीज़ान पर धर दी कलम।
कहता कि वो फ़नकार है।।

बोझिल शबों के साये में।
अब जिंदगी दुश्वार है।।

फरमान लेके तुगलकी।
जिद पे अड़ी सरकार है।।

करते नहीं वो साजिशें।
जिनको वतन से प्यार है।।

        -डॉ पवन मिश्र

मीज़ान= तराजू




Monday 25 January 2016

गंगोदक सवैया- हे प्रिये मान लो


हे प्रिये मान लो बात ये जान लो।
प्रीत की रीत को यूँ निभाते रहो।।

कालिमा रात की भी रहेगी नहीं।
राह में दीप कोई जलाते रहो।।

साथ कोई रहे या न हो साथ में।
साथ मेरे पगों को बढ़ाते रहो।।

स्वप्न पालो इसी मोतियों के तले
नीर को आँख से क्यों बहाते रहो।।

                   -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- चार चार पर यति के साथ आठ रगण अर्थात् २१२×8

Saturday 23 January 2016

ग़ज़ल- तेरे आने से दिल बहलता है


तेरे आने से दिल बहलता है।
तिश्नगी को सुकून मिलता है।।

देख कर हुस्न वो सरे महफिल।
देखें कैसे कोई सँभलता है।।

मेरा ग़म भी तेरा दीवाना है।
तेरे पहलू में आ पिघलता है।।

कोई रौशन करे शमा को भी।
तन्हा परवाना कबसे जलता है।।

जा ब जा तू मिले हमे हरपल।
आँखों में ख़्वाब ये ही पलता है।।

                    -डॉ पवन मिश्र

तिश्नगी= प्यास
जा ब जा= जगह जगह, जहाँ-तहाँ

Friday 22 January 2016

ताटंक छन्द- अब जाग जवानी देर न कर

अब जाग जवानी देर न कर, आग लगा दे पानी में।
पापी सारे जल मर जायें, अपनी भरी जवानी में।।

देश घिरा है संकट में अब, अरिदल घात लगाये हैं।
देख जरा इन दुष्टों को जो, घर तक में घुस आये हैं।।

मानवता को लील रही अब, अन्यायी काली छाया।
अत्याचारी पनप रहे पर, तुझको होश नहीं आया।।

मोह-पाश अब काट फेंक दे, कर्तव्यों की आरी से।
हाथ बढ़ाये शत्रु अगर तो, कर दे वार दुधारी से।।

तिलक लगा ले माथे पर अब, खड्ग उठा ले हाथो में।
समय आ गया है उठकर अब,ज्वार बसा ले सांसो में।।

मत भूल जवानी क्या है तू, पीठ किये क्यों विघ्नों से।
सम्पूर्ण विश्व है दुविधा में, राह दिखा पदचिन्हों से।।

                                        -डॉ पवन मिश्र

Thursday 21 January 2016

ग़ज़ल- चाँद से उनकी निगाहें मिल गयी


चाँद से उनकी निगाहें मिल गई।
देख कर ये चांदनी भी खिल गई।।

उनका आना ज़िन्दगी में जब हुआ।
दो जहाँ की जैसे खुशियाँ मिल गई।।

रुखसती की जब खबर हमको मिली।
पाँव के नीचे जमीने हिल गई।।

तेरे बिन कटता नहीं कोई भी पल।
दिन गया दुश्वार शब बोझिल गई।।

भेड़ जैसे क्यों खड़े हो भीड़ में।
जब ये पूछा तो जुबां ही सिल गई।।

मुश्किलें भी बढ़ रही हैं अब पवन।
तू गया तो रौनके महफ़िल गई।।

                     -डॉ पवन मिश्र

Wednesday 20 January 2016

दुर्मिल सवैया- मति में सबके बस स्वार्थ भरा


मति में सबके बस स्वार्थ भरा।
यह देश चला किस ओर अहो।।

कलियाँ खुद मालिन नोच रहा।
फिर कौन चुने अब कंट कहो।।

नत माथ यही विनती प्रभु जी।
तम की गहरी अब रात न हो।।

अब ज्ञान सरोवर रूप बना।
सबके हिय में करतार बहो।।

                 -डॉ पवन मिश्र

Monday 18 January 2016

ताटंक छन्द- हे मानव अब तो सँभलो


हे मानव अब तो सँभलो तुम, कब तक भटकोगे यूँ ही।
मानवता की कब्र बना के, कब तक रह लोगे यूँ ही।१।

कर्तव्य जला के राख किये, अधिकारों की भठ्ठी में।
देख सजोया क्या तूने है, अपनी खाली मुठ्ठी में।२।

अपनी सारी युक्ति लगा दी, धन-वैभव को पाने में।
सारा जीवन व्यर्थ किया बस, भंगुर-अर्थ कमाने में।३।

सुबह शाम का भोजन तो सब, पशु भी पा ही जाते हैं।
ये ही लक्ष्य हमारा तो हम, मानव क्यों कहलाते हैं।४।

जीवन मूल्यों की बलि देते, हाथों को अब टोको तो।
पतन द्वार तक जा पहुँचे हो, पैरों को अब रोको तो।५।

अर्थ उपासक बन कर के तू, क्या अर्जित कर पाया है।
सोच सको तो सोचो अब तक, क्या खोया क्या पाया है।६।

                                    -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 16,14 मात्राओं पर यति तथा पदांत में तीन गुरु

Saturday 16 January 2016

ग़ज़ल- चैन मिलता हमें एक पल का नहीं


चैन मिलता हमें एक पल का नहीं।
अश्क़ रुकते नहीं जख़्म भरता नहीं।।

जो दुखायेंगे दिल अपने माँ बाप का।
माफ़ उनको खुदा भी करेगा नहीं।।

छोड़ दे आप मेरा वतन शौक से।
मुल्क पर आपको जब भरोसा नहीं।।

जिंदगी साथ में थी बहुत पुर सुकूँ।
बाद तेरे मिला एक लम्हा नहीं।।

मेरे किरदार की तो वजह तुम ही थे।
बिन तुम्हारे जियेंगे ये सोचा नहीं।।

शब जली साथ में दिन भी तपता रहा।
उसके बिन एक भी पल गुजरता नहीं।।

है शिकायत हमें आज भी आपसे।
खुद ही रुकते अगर हमने रोका नहीं।।

                    -डॉ पवन मिश्र

पुर सुकूँ= सुकून भरी, शांतिमय

Wednesday 13 January 2016

ग़ज़ल- चाँद भी क्या किसी से डरता है


चाँद भी क्या किसी से डरता है।
दूर क्यों आसमाँ में रहता है।।

बेबदल है बहुत अदा उसकी।
आँखों से दिल में वो उतरता है।।

रू ब रू आओ तो कहूँ कुछ मैं।
तेरा पर्दा हमे अखरता है।।

दफ़्न जज्बात हैं मगर फिर भी।
बन के धड़कन वो ही धड़कता है।।

तू नहीं है मगर ये दिल देखो।
वक्त बे वक्त याद करता है।।

            -डॉ पवन मिश्र

बेबदल= अद्वितीय

देश का मुकुट हमारा


देश का मुकुट हमारा, प्राणों से जो हमको प्यारा।
ऐसे कश्मीर के लिए वो बेकरार है।।
समझाओ उसे जा बात से या लात से कि।
उसकी सारी कोशिशें तो अब बेकार है।१।

ढीढ बन पीठ पर करे है बार बार वार।
शूकरों की फ़ौज का वो बना सरदार है।।
खुद के हालात किये बिना लाठी लंगड़े सी
अपनी दशा का तो वो खुद जिम्मेदार है।२।

भारतीय शावकों का सामना करेगा कैसे।
रक्त नहीं नब्ज़ में तो खौलता अंगार है।।
इनकी समानता करेंगे कैसे वो नापाक।
जिनकी शिराओं में तो पानी की बहार है।३।

इकहत्तर में तो उखाड़ ही दिया था एक बाजू।
अबकी बाजी तेरे शीश की लगाएंगे।।
भारती का हर सपूत देख रहा स्वप्न यही।
कब इस्लामाबाद में तिरंगा फहराएंगे।४।

मन के ज्वार कब तक रहेंगे मन ही में।
कभी तो ये घटा जैसे घोर गहराएंगे।।
भड़केगी अग्नि जब हर गली कूचे से तो।
देखे दिल्ली वाले इसे कैसे रोक पाएंगे।५।

                          -डॉ पवन मिश्र

Sunday 10 January 2016

सार छन्द- राजनीति की बातें


सुन लो भैया सुन लो भैया, राजनीति की बातें।
बातों की ही खाते हैं सब, बातें ही दिन रातें।१।

सुन लो भैया सुन लो भैया, ऊ है बड़का नेता।
मुख में राम बगल में छूरी, जो अपने रख लेता।२।

सुन लो भैया सुन लो भैया, इनकी कारस्तानी।
करना-धरना कुछौ नहीं बस, जारी जंग जुबानी।३।

सुन लो भैया सुन लो भैया, सब मौसेरे भाई।
माल बाँट के आपस में सब, ढोंगी करे लड़ाई।४।

सुन लो भैया सुन लो भैया, पैसा के ये लोभी।
पल भर में ईमान बेच दें, दाम मिले बस जो भी।५।

सुन लो भैया सुन लो भैया, ये मेढ़क बरसाती।
इनकी बारिश बड़ी अनोखी, पांच साल में आती।६।

सुन लो भैया सुन लो भैया, ईश्वर दया दिखाये।
सन्मति इनको आ जाये तो, देश स्वर्ग बन जाये।७।

                                        -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 16,14 मात्राओं पर यति तथा पदांत में दो गुरु।






Saturday 9 January 2016

ग़ज़ल- वक्त की तासीर देखो


वक्त की तासीर देखो।
ख़ाक में जागीर देखो।।

भूख से बच्चे बिलखते।
उनकी क्या तकसीर देखो।।

रहनुमा खुद ही भटकते।
मुल्क की तकदीर देखो।।

बन के ठेकेदार देते।
मज़हबी तकफीर देखो।।

खुद को जेहादी बताना।
कुफ़्र की तकबीर देखो।।

नीव में जिसके पसीना।
उसकी तुम तामीर देखो।।

             -डॉ पवन मिश्र

तासीर= मिजाज, स्वभाव    तकसीर= दोष, भूल
तकफीर= मुसलमान पर कुफ़्र का फतवा लगाना
कुफ़्र= धर्म विरूद्ध                तामीर= बनावट
तकबीर= अल्लाहो अकबर कहना

Thursday 7 January 2016

दुर्मिल सवैया- छल दम्भ बढ़ा

   
छल दम्भ बढ़ा जग में इतना।
निज स्वार्थ बिना अब स्नेह नहीं।।

सब भाग रहे धन वैभव को।
परमारथ को अब देह नहीं।।

मनुपुत्र सभी मद चूर हुए।
मिलता अब कोय सनेह नहीं।।

हर अंतस डूब रहा तम में।
मनदीपक में अब नेह नहीं।।

             डॉ पवन मिश्र

शिल्प- आठ सगण (११२×8)




Wednesday 6 January 2016

ताटंक छन्द- पठानकोट आक्रमण के सन्दर्भ में


उस नापाक पड़ोसी ने फिर, भारत को ललकारा है।
घात लगा के कुछ श्वानों ने, फिर सिंहो को मारा है।।
अपनी कुत्सित चालों का फिर, उसने दिया इशारा है।
विश्व गुरू बन जाये भारत, उसको नहीं गवारा है।।

दिल्ली वाले मौन बने क्यों, अब तो अपनी बारी है।
शांति पाठ ही होवे हरदम, ऐसी क्या लाचारी है।।
निर्णय करलो अबकी उसको, सीखें ऐसी दी जायें।
मानचित्र ले हाथों में वो, ढूंढे अपनी सीमायें।।

                                     -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 16,14 मात्राओं पर यति तथा पदांत में तीन गुरु

Tuesday 5 January 2016

मदिरा सवैया- दूर गए मनमोहन तो


दूर गए मनमोहन तो, अब नैनन चैन कहाँ रहिये।
पीर बसी हिय गोपिन के, अब कौन उपाय प्रभो कहिये।।
नाथ अनाथ बनाय चले, कर जोरि कहे हमरी सुनिये।
भक्त करें बिनती तुमसे, अब तो बृज धाम चले चलिये।।

आकुल व्याकुल लोग सभी, खग कूजत ना अब कानन में।
रोअत आँखिन, धूमिल से तन, कान्ति नहीं अब आनन में।।
खार हुआ जमुना जल भी, बहु पीर भरी दुखिया जन में।
हे चितचोर हृदेश सुनो, अब धीर भरो सबके मन में।।

                                           - डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 7 भगण (२११×७)+१ गुरू, सामान्यतः 10,12 वर्णों पर यति। 

Monday 4 January 2016

कुण्डलिया- सब मिल साथ रहे सदा


सब मिल साथ रहे सदा, मन में यही विचार।
ईश भजन करते रहे, पूरे हो सब कार।।
पूरे हो सब कार, किसी की आस न टूटे।
मस्त मगन सब रहे, किसी का साथ न छूटे।।
पवन करे अरदास, सितारे चमके झिलमिल।
गहरे तम की रात, मिटावें आओ सब मिल।१।

समरथ हे प्रभु आप हो, पूर्ण करो हर काज।
शीश नवाये हूँ खड़ा, दर्शन दीजो आज।।
दर्शन दीजो आज, पुकारूँ निस दिन तुमको।
कष्टों को हर नाथ, मिटाओ गहरे तम को।।
करे प्रार्थना पवन, दिखा दो हमको सतपथ।
तुम बिन कौन उपाय, प्रभो तुम सबसे समरथ।२।

                                  -डॉ पवन मिश्र