Monday 18 January 2016

ताटंक छन्द- हे मानव अब तो सँभलो


हे मानव अब तो सँभलो तुम, कब तक भटकोगे यूँ ही।
मानवता की कब्र बना के, कब तक रह लोगे यूँ ही।१।

कर्तव्य जला के राख किये, अधिकारों की भठ्ठी में।
देख सजोया क्या तूने है, अपनी खाली मुठ्ठी में।२।

अपनी सारी युक्ति लगा दी, धन-वैभव को पाने में।
सारा जीवन व्यर्थ किया बस, भंगुर-अर्थ कमाने में।३।

सुबह शाम का भोजन तो सब, पशु भी पा ही जाते हैं।
ये ही लक्ष्य हमारा तो हम, मानव क्यों कहलाते हैं।४।

जीवन मूल्यों की बलि देते, हाथों को अब टोको तो।
पतन द्वार तक जा पहुँचे हो, पैरों को अब रोको तो।५।

अर्थ उपासक बन कर के तू, क्या अर्जित कर पाया है।
सोच सको तो सोचो अब तक, क्या खोया क्या पाया है।६।

                                    -डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 16,14 मात्राओं पर यति तथा पदांत में तीन गुरु

No comments:

Post a Comment