Thursday 21 January 2016

ग़ज़ल- चाँद से उनकी निगाहें मिल गयी


चाँद से उनकी निगाहें मिल गई।
देख कर ये चांदनी भी खिल गई।।

उनका आना ज़िन्दगी में जब हुआ।
दो जहाँ की जैसे खुशियाँ मिल गई।।

रुखसती की जब खबर हमको मिली।
पाँव के नीचे जमीने हिल गई।।

तेरे बिन कटता नहीं कोई भी पल।
दिन गया दुश्वार शब बोझिल गई।।

भेड़ जैसे क्यों खड़े हो भीड़ में।
जब ये पूछा तो जुबां ही सिल गई।।

मुश्किलें भी बढ़ रही हैं अब पवन।
तू गया तो रौनके महफ़िल गई।।

                     -डॉ पवन मिश्र

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