Sunday 3 December 2017

ग़ज़ल- मेरी रूह जगाने वाला


छेड़कर मुझको मेरी रूह जगाने वाला।
गुम कहाँ है वो मुझे मुझसे मिलाने वाला।।

तीरगी फ़ैली है हर ओर उदासी लेकर।
कोई तो आए यहां राह दिखाने वाला।।

तेरी नजरों के सिवा और नहीं चारा कुछ।
मैकदे में भी नहीं कोई पिलाने वाला।।

बस ये उम्मीद लिये यार यहां बैठा हूँ।
एक दिन आएगा वो रूठ के जाने वाला।।

बुत बताएंगे भला कैसे जली बस्ती के।
कौन था इनको सरेआम जलाने वाला।।

कब तलक देखें सहम के ये गुलिस्तां जलते।
कोई तो हाथ बढ़े, आये बचाने वाला।।

                                ✍ डॉ पवन मिश्र

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