Friday 6 October 2023

ग़ज़ल- उम्र भर द्वेष-राग रखते हैं

उम्र भर द्वेष-राग रखते हैं
लोग दिल में दिमाग रखते हैं

पास आकर समझ सकोगे तुम
फूल हैं हम पराग रखते हैं

तेरे गुण-दोष से परे हैं हम
हम वो चंदन जो नाग रखते हैं

भारती के सपूत हैं हम तो
अपने चिंतन में त्याग रखते हैं

साथ रहते हैं मां-पिता के हम
घर मे काशी-प्रयाग रखते हैं

पल में लोहे को भी जो पिघला दे
हौसलों की वो आग रखते हैं

✍️ डॉ पवन मिश्र

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