Thursday 5 October 2023

ग़ज़ल- इश्क़ की गलियों में आवारों के बीच

इश्क़ की गलियों में आवारों के बीच
फँस गया आकर मैं बीमारों के बीच

आशिकों की भीड़ में रहना है अब
रतजगे करने हैं बेदारों के बीच 

ओढ़ ली खादी मगर हूँ सोचता
कैसे रह पाऊंगा अय्यारों के बीच

आस्तीं में सांप ढेरों पल रहे
जी रहा हूँ उनकी फुंकारों के बीच

अपनी वो आलोचना कैसे सुने
वो तो बैठा है परस्तारों के बीच

अब चमन में अम्न होना चाहिये
आ रहे हैं फूल तलवारों के बीच

जिस घड़ी सर पेश कर देगा पवन
होड़ मच जाएगी दस्तारों के बीच

✍️ डॉ पवन मिश्र

बेदारों- जिन्हें नींद न आती हो, जगे हुए
परस्तारों- प्रशंसको
दस्तारों- दस्तार (पगड़ी) का बहुवचन

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