Sunday 19 July 2020

ग़ज़ल- दर्द-ओ-ग़म का ठौर-ठिकाना लगता है


दर्द-ओ-ग़म का ठौर-ठिकाना लगता है।
दिल का ज़ख्मों से याराना लगता है।।

जो भी मिलता है बेगाना लगता है।
आईना जाना-पहचाना लगता है।।

नजरें तो पल भर में मिलती हैं लेकिन।
कहते कहते एक जमाना लगता है।।

मेरे जीवन में तेरा होना हमदम।
सच बोलूं तो इक अफ़साना लगता है।।

हर दस्तक इक हूक उठाती है दिल में।
दरवाजे पर दोस्त पुराना लगता है।।

मुस्कानों में दर्द छुपाते हो तुम भी।
तेरा मेरा एक घराना लगता है।।

                         ✍️ डॉ पवन मिश्र

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