Sunday 2 August 2020

ग़ज़ल- इस चमन का हर नज़ारा और है


इस चमन का हर नज़ारा और है।
मुस्कुराना पर तुम्हारा और है।।

चांदनी शब का सितारा और है।
यार तेरा गोशवारा और है।।

मखमली तकिया भी रक्खा है मगर।
तेरे काँधे का सहारा और है।।

कुछ न बोले बस झुका दी है नज़र।
अबकी आँखों का इशारा और है।।

ज़िंदगी में जबसे आई हो मेरी।
सच कहूँ हर सू नज़ारा और है।।

ज़र ज़मीं रुतबा तुम्हीं रक्खो हुज़ूर।
हम दिवानों का असारा और है।।

टूटकर जिनके लिए बिखरा था मैं।
उनकी रातों का सितारा और है।।

तुम जो चाहो तो ठहर जाओ यहीं।
मेरी कश्ती का किनारा और है।

बंदिशों में घिर गये हो यार तुम।
रास्ता अब तो तुम्हारा और है।।

ख़ुद के भीतर देखता हूँ आजकल।
दीद में मेरी नज़ारा और है।।

                         ✍️ डॉ पवन मिश्र

गोशवारा= कान का कुंडल
हर सू= हर तरफ
असारा= बंधन

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