Sunday 15 April 2018

दोहे- समसामयिक दोहे


बिलख रही माँ भारती, नेता गाते फाग।
सोन चिरइया जल रही, हरसूँ फैली आग।१।

बगिया में अब क्या बचा, जिस पर होवे नाज।
काँटों को पुचकारते, माली दिखते आज।२।

राजनीति में हो रहा, केर बेर का मेल।
धर्म जाति की ओट में, चले सियासी खेल।३।

कंगूरे इतरा रहे, करते लोग प्रणाम।
दफ़्न हुए जो नींव में, आज हुए गुमनाम।४।

जद में आएंगे सभी, क्यों बैठे अंजान।
धर्मयुद्ध है पार्थ ये, करो शस्त्र संधान।५।

                        
                            ✍ डॉ पवन मिश्र

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