Sunday 1 April 2018

नवगीत- पुराने मित्र देखे


पुरानी एलबम में कुछ पुराने चित्र देखे।
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।।

यकायक दृश्य कुछ सम्मुख मेरे खिंचने लगे,
वो सूखे फूल बहते अश्रु से सिंचने लगे।
लगा जैसे किसी ने थामकर बोला मुझे,
अबे आ जा सुहाना कुछ दिखाता हूँ तुझे।।
दीवारें हॉस्टल की फांदकर मूवी को जाना,
पकड़ जाने पे झूठा सा कोई किस्सा सुनाना।
खुरचकर बेंच औ दीवार पे वो नाम लिखना,
हमेशा क्लास में पीछे की सीटों पे ही दिखना।।
जली रोटी को लेकर मेस में वो हल्ला मचाना,
जरा सी देर हो तो थालियां चम्मच बजाना।
वो हर छोटी बड़ी मुश्किल में सबका साथ आना,
परीक्षा के दिनों में रात भर पढ़ना पढ़ाना।।
न जाने कितने ही ऐसे सुहाने चित्र देखे,
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।।

मगर रोटी की अब जद्दोजहद में पड़ गए सारे,
छुड़ाकर हाथ फोटो फ्रेम में ही जड़ गए सारे।
समय की डोर से बांधे पखेरू उड़ गए सारे,
हवा जिस ओर की पाई उधर को मुड़ गए सारे।।
मगर क्या मित्रता कमतर हुई दूरी के बढ़ने से ?
पुरानी मूर्तियां धूमिल पड़ीं नवमूर्त गढ़ने से ?
नहीं दूरी मिटा सकती है इस अहसास को यारों,
न कोई भी डिगा सकता है इस विश्वास को यारों।।
समंदर के थपेड़ों से हमें लड़ना सिखाती है,
तमस की रात में अँगुली पकड़ रस्ता सुझाती है।
अरे ये मित्रता हर सांस के सँग याद आती है,
समय की कब्र में भी बैठकर हल्ला मचाती है।।
उसी अहसास में डूबे दिवाने मित्र देखे,
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।

पुरानी एलबम में कुछ पुराने चित्र देखे,
बढ़ी धड़कन, बहे आँसू, पुराने मित्र देखे।।

                           
                           ✍ डॉ पवन मिश्र

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