Sunday 11 March 2018

ग़ज़ल- छुप के बैठे हैं कमीने पाक में


छुप के बैठे हैं कमीने पाक में।
दम किये हिन्दोस्तां की नाक में।।

जाग जा सोई हुई दिल्ली मेरी।
अब दरिन्दों को मिला दे ख़ाक में।।

कल सुना इक लाश वोटर की मिली।
भेड़िये से रहनुमा हैं ताक में।।

दोस्तों दिल्ली चलो, दिखलाऊँगा।
गीदड़ों को शेर की पोशाक में।।

रौंदने वालों से कलियां कह रहीं।
क्यूँ मिला डाला हमें यूँ ख़ाक में।।

वक्त आने पर बताएगा पवन।
जिंदगी उलझी अभी अश्बाक में।।

             ✍ *डॉ पवन मिश्र*


अश्बाक= बहुत से जाल

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