Thursday 25 January 2018

त्रिभंगी छन्द- हे कृष्ण मुरारी


हे कृष्ण मुरारी, वंशीधारी, नन्दबिहारी, आओ तो।
प्रभु दे दो दर्शन, रूपाकर्षन, चक्र सुदर्शन, लाओ तो।
नव स्वांग गढ़ रहे, वक्ष चढ़ रहे, दुष्ट बढ़ रहे, धरती पे।
क्यों मौन खड़े हो, दूर अड़े हो, शांत पड़े हो, गलती पे।१।

लेकर दोधारी, हाहाकारी, अत्याचारी, घूम रहा।
अब पतित हुआ जग, न्याय पड़ा मग, पापी के पग, चूम रहा।
सद्मार्ग दिखाओ, अब आ जाओ, नाथ बचाओ, वसुधा को।
अब वंशी त्यागो, चक्र उठाओ, सबक सिखाओ, पशुता को।२।

                             ✍ डॉ पवन मिश्र

शिल्प- 10,8,8,6 में निहित 32 मात्राओं के चार चरण, चरणान्त में गुरु की अनिवार्यता, दो दो चरणों की तुकांतता मान्य


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