Monday 30 November 2015

ग़ज़ल- क्यों यहां बचपन बिलखता जा रहा है


क्यों यहां बचपन बिलखता जा रहा है।
क्या हुआ जो वो सिसकता जा रहा है।।

बाँध लेना चाहता हूँ मुठ्ठियों में।
रेत जैसा जो फिसलता जा रहा है।।

रोक पाना अब उसे मुमकिन नहीं है।
आँच में मेरी पिघलता जा रहा है।।

शब्द भी अब तो नहीं हैं पास मेरे।
रूप तेरा यूँ निखरता जा रहा है।।

थाम लेना चाहता हूँ हाथ फिर से।
जानता हूँ वो बिखरता जा रहा है।।

                      -डॉ पवन मिश्र

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