Wednesday 2 December 2015

ग़ज़ल- अब मेरे दिल को उनसे अदावत नहीं


अब मेरे दिल को उनसे अदावत नहीं।
वो सितमगर है फिर भी शिकायत नहीं।।

ये अदा खूब है हुस्न वालों की भी।
वादा करके निभाने की आदत नही।।

आज आएंगे वो छत पे मिलने हमें।
चाँद की आज हमको जरूरत नहीं।।

कोई जाके बता दे उन्हें बात ये।
वो नहीं तो मेरे घर में बरकत नहीं।।

रेवड़ी बाँटने में ही मशगूल सब।
रहनुमाओं सुनों ये सियासत नहीं।।

बस्तियां जल गयी रोटियों के लिये।
उनके दिल में कहीं नेक-नीयत नहीं।।

ये सफ़र जीस्त का रायगाँ मत करो।
ये जवानी उमर भर  की नेमत नहीं।।

आँख मूंदें तो सर हो तेरी ज़ानो पे।
इससे ज्यादा पवन की तो हसरत नहीं।।

                          -डॉ पवन मिश्र
अदावत= शत्रुता,   जीस्त= जिंदगी,  
रायगाँ= व्यर्थ,    ज़ानो= गोद

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