Saturday 12 December 2015

ग़ज़ल- मेरे दिल में तुम हो


मेरे दिल में तुम हो बताऊँ मैं कैसे।
बहुत कोशिशें की जताऊँ मैं कैसे।।

महकने लगे हैं तेरी इक छुवन से।
निशां उँगलियों के मिटाऊँ मैं कैसे।।

कोई पूछता तो ज़ुबाँ कुछ न कहती।
निगाहें जो बोले छुपाऊँ मैं कैसे।।

घने बादलों में छुपा चाँद मेरा।
जुदाई का ये गम उठाऊँ मैं कैसे।।

खता क्‍या हुई हमसे रूठे हुए है।
खुदा ही बताये मनाऊँ मैं कैसे।।

घुले हो रगों में मेरी सांस जैसे।
अगर चाहूँ भी तो भुलाऊँ मैं कैसे।।

                    -डॉ पवन मिश्र

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