तुम जान सको यदि मान सको।
अभिमान व्यथा सब व्यर्थ प्रिये।।
इक मन्त्र सुनो इस जीवन का।
दुःख को सुख को सम मान प्रिये।।
सब की सुनना मति से करना।
यह भान सदा रखना तु प्रिये।।
जग की यह रीति पुरातन है।
दुख रूदन को अब त्याग प्रिये।।
-डॉ पवन मिश्र
शिल्प- 112 मात्राओं की आठ आवृत्ति
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