Tuesday 15 December 2015

मुक्तक


वो मेरी है मैं उसका हूँ यही एहसास है दिल में।
वो हरपल साथ हो मेरे यही इक आस है दिल में।।
अभी हैं बंदिशे तुम पर जमाने के रिवाज़ों की।
क्षितिज के पार मिलना है यही विश्वास है दिल में।।

न तो तन्हाइयां डसती न ही अँगड़ाइयां रोती।
कभी आलम न ये आता अगर तुम पास में होती।।
सिमट जाता तेरे आगोश में लेकर मैं सारे गम।
मिटा के सारे गम मेरे नई खुशियों को तुम बोती।।

मैं तुमको याद करने के बहाने ढूँढ लेता हूँ।
पुराने एलबम को ही मैं अक्सर चूम लेता हूँ।।
गुजरता है शहर का डाकिया मेरी गली से जब ।
कोई पूछे या न पूछे मैं उसको पूछ लेता हूँ।।

मेरे जीवन की बगिया में फूलों सा महकना तुम।
घटा घनघोर जब छाये तो बिजुरी सा चमकना तुम।।
यही है कामना तुमसे मेरे प्रियतम मेरे हमदम।
मैं वँशी कृष्ण की लाऊँ तो राधा सा मचलना तुम।।

                                  -डॉ पवन मिश्र

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