Saturday 5 March 2016

ग़ज़ल- हाले दिल वो ही नहीं सुनते


हाले दिल वो ही नहीं सुनते तो बोलो क्या करें।
अश्क़ आँखों में नहीं रुकते तो बोलो क्या करें।।

बात दिल की वो नहीं कहते तो बोलो क्या करें।
फूल अब लब से नहीं झरते तो बोलो क्या करें।।

वक्त की तासीर है या हम बुरे ठहरे यहाँ।
लोग अब खुल कर नहीं मिलते तो बोलो क्या करें।।

जिनकी ख़ातिर हो गयी मेरी सभी से दुश्मनी।
वो ज़माने का यकीं करते तो बोलो क्या करें।।

सेंकनी थी रोटियाँ तो बस्तियां जलने लगी।
वो खुदा से भी नहीं डरते तो बोलो क्या करें।।

वोट की ख़ातिर लड़ाते आदमी से आदमी।
चाल अक्सर वो यही चलते तो बोलो क्या करें।।

ओढ़ कर चोला जिहादी भूल कर अम्नो वफ़ा।
मुल्क़ से अब वो दग़ा करते तो बोलो क्या करें।।

                                     -डॉ पवन मिश्र

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