Friday 11 March 2016

ग़ज़ल- जाने क्या बात हुई


जाने क्या बात हुई जो न पुकारा उसने।
क्या खता थी कि किया मुझसे किनारा उसने।।

मेरे साये से भी कर ली है बला की दूरी।
वक्त इस कदर अकेले ही गुजारा उसने।।

ये सवालात मेरे हैं कि तग़ाफ़ुल उसका।
क्या हुआ जो कभी देखा न दुबारा उसने।।

चाहता था कि मिले साथ हमेशा उसका।
पर मेरा साथ कई बार नकारा उसने।।

ज़िन्दगी उनके बिना है मेरी बेताब बहुत।
काश जाने का किया होता इशारा उसने।।

लोग अक्सर चले आते हैं दिलासा लेकर।
जब से छीना मेरे जीने का सहारा उसने।।

ये ज़माने का सितम था या कि मर्ज़ी उसकी।
जो यूँ मझधार में क़श्ती से उतारा उसने।।

बाद उसके न दिखी हमको बहारें कोई।
मेरी आँखों को दिया मस्ख़ नज़ारा उसने।।

                              -डॉ पवन मिश्र
मस्ख़= विकृत
तग़ाफ़ुल= उपेक्षा

No comments:

Post a Comment